हिंदु धर्म में राधा अष्टमी का विशेष महत्व है। हर वर्ष भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की अष्टमी को राधा अष्टमी के रूप में मनाया जाता है। मान्यता है कि इस दिन वृंदावन की रानी और देवी लक्ष्मी का अवतार मानी जाने वाली राधा रानी का जन्म हुआ था। श्रीमद्भागवत के अनुसार, राधा रानी ने अपनी सखियों (गोपियों) के साथ मिलकर श्री कृष्ण को पति के रूप में पाने के लिए माँ कात्यायनी की पूजा की थी। इसी परंपरा के तहत आज भी अविवाहित और विवाहित लोग माँ कात्यायनी शक्तिपीठ मंदिर में अपने इच्छित जीवनसाथी और वैवाहिक जीवन में सुख-शांति के लिए प्रार्थना करते हैं। राधा अष्टमी के शुभ अवसर पर मां कात्यायनी शक्तिपीठ में पूजा करना शुभ माना गया है, क्योंकि माँ कात्यायनी देवी दुर्गा के रूपों में से एक हैं और उन्हें रिश्तों और विवाह से जुड़ी इच्छाओं को पूरा करने के लिए जाना जाता है।
माँ कात्यायनी शक्तिपीठ भगवान कृष्ण की जन्मस्थली मथुरा में स्थित 51 शक्तिपीठों में से एक है। माना जाता है कि इसी पवित्र स्थल पर देवी सती के बाल गिरे थे। पुराणों के अनुसार राधा अष्टमी के पावन अवसर पर, माँ कात्यायनी की पूजा के साथ भगवान शिव की पूजा करने से सुखी और समृद्ध वैवाहिक जीवन का आशीर्वाद मिलता है। माना जाता है कि मां कात्यायनी अष्टकम स्तोत्र पाठ, भोग आरती और भूतेश्वर पंचाक्षरी मंत्र जाप करने से रिश्तों में आनंद की प्राप्ति होती है और विवादों को सुलझाने का आशीर्वाद प्राप्त होता है। इसलिए राधा अष्टमी की शुभ तिथि पर शक्तिपीठ मां कात्यायनी मंदिर में माँ कात्यायनी अष्टकम स्तोत्र पाठ, भोग आरती एवं भूतेश्वर पंचाक्षरी मंत्र जाप का आयोजन किया जा रहा है। श्री मंदिर के माध्यम से इस पूजा में भाग लें और मां कात्यायनी का दिव्य आशीष प्राप्त करें।