सनातन धर्म में गोवत्स द्वादशी का विशेष महत्व है। हर वर्ष कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की द्वादशी तिथि को गोवत्स द्वादशी मनाई जाती है। इसे बछ बारस के नाम से भी जाना जाता है। यह तिथि गौ माता की पूजा के लिए समर्पित है। पौराणिक मान्यता के अनुसार, भगवान श्री कृष्ण के जन्म के बाद माता यशोदा ने इसी तिथि पर गौ माता के दर्शन कर पूजा अर्चना की थी। भविष्य पुराण के अनुसार गौमाता कि पीछे भाग में ब्रह्म का वास है, गले में विष्णु का, मुख में रुद्र का, मध्य में समस्त देवताओं और रोमकूपों में महर्षिगण, पूंछ में अनंत नाग, खूरों में समस्त पर्वत, गौमूत्र में गंगादि नदियां, गौमय में लक्ष्मी और नेत्रों में सूर्य-चन्द्र विराजित हैं। इसलिए माना जाता है कि इस तिथि पर गौ माता की पूजा करने से सभी देवी-देवताओं का आशीर्वाद प्राप्त होता है। भक्त गोवत्स तिथि पर गौ माता का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए कई तरह के दिव्य अनुष्ठान करते हैं, जिनमें से गौ वात्सल्य षोडश पूजन, गौ अलंकार एवं अभिषेक भी शामिल है।
इस अनुष्ठान में गौ माता की षोडशोपचार विधि अर्थात 16 प्रकार से पूजा की जाती है, इस दौरान उन्हें पुष्प, कुमकुम, वस्त्र आदि अर्पित किए जाते हैं। इसके बाद गौ माता का अभिषेक कर उन्हें अलंकारित किया जाता है। मान्यता है कि गोवत्स द्वादशी पर गौ वात्सल्य षोडश पूजन, गौ अलंकार एवं अभिषेक करने से परिवार में सुख-समृद्धि और एकता का आशीर्वाद प्राप्त होता है। यदि यह पूजा किसी विशेष मुर्हूत में की जाए तो यह कई गुना अधिक फलदायी हो सकती है। गोवत्स द्वादशी तिथि पर शाम 06:07 मिनट से रात 08:37 बजे तक प्रदोष काल मुहूर्त लग रहा है। जो इस पूजा के लिए सबसे शुभ समय है। इसलिए गोवत्स द्वादशी तिथि पर प्रदोष काल गोवत्स द्वादशी मुहूर्त के शुभ समय के दौरान दक्षिण भारत के एट्टेलुथुपेरुमल मंदिर में गौ वात्सल्य षोडश पूजन, गौ अलंकार एवं अभिषेक का आयोजन किया जा रहा है। श्री मंदिर के माध्यम से इस पूजा में भाग लें और गौ माता द्वारा परिवार में सुख-समृद्धि और एकता का आशीर्वाद प्राप्त करें।