🙏 एक दुर्लभ पूजा जहाँ शिव जी खुद भक्त बनकर श्रीकृष्ण की स्तुति करते हैं। इस जन्माष्टमी की पावन रात, दोनों के संयुक्त आशीर्वाद का अनुभव करें।
जन्माष्टमी को सनातन धर्म में एक अत्यंत पवित्र और आनंदमय दिन माना जाता है क्योंकि यह भगवान विष्णु के आठवें अवतार, भगवान श्री कृष्ण के दिव्य जन्मोत्सव का प्रतीक है। पवित्र ग्रंथों के अनुसार, भगवान कृष्ण का जन्म मथुरा में मध्यरात्रि में देवकी और वासुदेव के यहाँ दुष्ट राजा कंस से मुक्ति दिलाने और धर्म की पुनर्स्थापना के लिए हुआ था। कृष्ण केवल अंधकार के संहारक ही नहीं थे - वे प्रेम, ज्ञान और दिव्य लीला के भी स्वामी थे। बचपन में, उन्होंने अपनी लीलाओं से, जैसे गोकुल के हर घर से माखन चुराना, लोगों का दिल जीत लिया और हमें याद दिलाया कि आनंद, शरारत और भक्ति एक साथ सद्भाव में रह सकते हैं।
जैसे महाभारत युद्ध के समय उन्होंने अर्जुन को गीता का ज्ञान देकर उसे समझ और शक्ति दी, वैसे ही जन्माष्टमी पर होने वाली यह पूजा भी जीवन में स्थिरता और मार्गदर्शन पाने का माध्यम बन सकती है। इस पूजा को खास बनाता है शिव और कृष्ण भक्ति का एक साथ जुड़ना। ब्रह्म वैवर्त पुराण में बताया गया है कि शिव जी ने खुद एक बार श्रीकृष्ण की स्तुति में "शंभूकृत श्रीकृष्ण स्तोत्र" की रचना की थी। इस स्तोत्र में शिव जी श्रीकृष्ण को संसार का स्वामी, आनंद देने वाले और पापों का नाश करने वाला बताते हैं। वे कहते हैं कि जो भी इस स्तोत्र का श्रद्धा से पाठ करेगा, उसे दुःख, हार और नकारात्मकता से राहत मिलेगी और ज्ञान, समृद्धि और सफलता मिलेगी।
यह पूजा मथुरा के श्री दीर्घ विष्णु मंदिर में होगी, जहाँ श्रीकृष्ण का जन्म हुआ था। यहाँ इस स्तोत्र का जाप रुद्राभिषेक के साथ किया जाएगा जो शिव जी को प्रिय होता है। मान्यता है कि इस दिन श्रीकृष्ण और शिव दोनों की पूजा करने से दोनों का आशीर्वाद मिलता है श्रीकृष्ण प्रेम, आनंद और मेल-जोल देते हैं, जबकि शिव हर बाधा को दूर कर मन की शांति और सुरक्षा देते हैं।
इस खास पूजा में श्री मंदिर के माध्यम से भाग लीजिए और अपने जीवन में हरि और हर – दोनों की ऊर्जा को बुलाकर शांति, स्थिरता और सच्चे सुख का अनुभव कीजिए।