सनातन परंपरा में कार्तिक शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा, जिसे देव दीपावली कहा जाता है, अत्यंत पवित्र और दिव्य तिथि मानी जाती है। ऐसा विश्वास है कि देवउठनी एकादशी को भगवान श्री विष्णु योगनिद्रा से जागने के बाद, इस दिन देवता स्वयं पृथ्वी पर अवतरित होकर गंगा तटों पर दीप प्रज्ज्वलित करते हैं। इसी कारण कार्तिक पूर्णिमा का दिन देवों और पितरों दोनों की कृपा प्राप्त करने के लिए सर्वोत्तम माना गया है। इस पावन तिथि पर किए गए अनुष्ठान पूर्वजों की आत्मा की शांति, परिवारिक कलह के निवारण और जीवन में सकारात्मक ऊर्जा के संचार के लिए अत्यंत प्रभावी माने जाते हैं। इसी अवसर पर गया में दो प्रमुख पितृ अनुष्ठान आयोजित किए जा रहे हैं-
🔹 पितृ शांति पूजा: यह पूजा दिवंगत आत्माओं की शांति और उनके आशीर्वाद की प्राप्ति के लिए की जाती है। वैदिक मंत्रों और तर्पण विधि से पूर्वजों को सम्मान अर्पित किया जाता है। ऐसा माना जाता है कि इससे परिवार में शांति, संतुलन और मानसिक स्थिरता आती है।
🔹 गया पिंड दान: गया तीर्थ पर किया गया पिंडदान अत्यंत पुण्यदायी माना गया है। इसमें श्रद्धा से तिल, चावल और कुशा से बने पवित्र पिंड पितरों को अर्पित किए जाते हैं। ऐसा विश्वास है कि इससे पितृ दोष शांत होता है और परिवार में सुख, स्वास्थ्य और समृद्धि बढ़ती है।
📖 गया तीर्थ की महिमा: गरुड़ पुराण के अनुसार, भगवान विष्णु ने गयासुर के शरीर को ही पवित्र तीर्थ में परिवर्तित किया था। तभी से यहां किए गए पिंडदान और पितृ शांति कर्म आत्मा को मोक्ष और परिवार को कल्याण प्रदान करने वाले माने जाते हैं।
🌕 इस कार्तिक पूर्णिमा (देव दीपावली) पर गया में संपन्न होने वाली पितृ शांति पूजा और गया पिंड दान में सम्मिलित होकर आप अपने पूर्वजों की आत्मा को श्रद्धांजलि अर्पित कर सकते हैं और अपने परिवार में शांति, सौभाग्य और सकारात्मक ऊर्जा का अनुभव पा सकते हैं। 🙏