दक्षिण भारत के तमिलनाडु में मट्टू पोंगल का विशेष महत्व है। जिस प्रकार उत्तर भारत में नववर्ष की शुरुआत चैत्र प्रतिपदा से होती है उसी प्रकार दक्षिण भारत में सूर्य के उत्तरायण होने वाले दिन पोंगल से ही नववर्ष का आरंभ माना जाता है। वहीं पोंगल के तीसरे दिन को 'मट्टू पोंगल' के नाम से जाना जाता है। मट्टू अर्थात नंदी या बैल की पूजा की जाती है। इस दिन, पशुधन, गायों को सजाकर उनकी पूजा की जाती है। यह दिन फसलों के उत्पादन में मदद करने वाले खेत, जानवरों को धन्यवाद देने के लिए मनाया जाता है। ऐसा कहा जाता है कि भगवान कृष्ण को सदैव गायों से विशेष प्रेम रहा है, इसलिए उन्हें गोपाल अर्थात् गायों के चरवाहा के रूप में भी जाना जाता है। इस दिन भक्त भगवान कृष्ण को प्रसन्न करने के लिए विभिन्न अनुष्ठान करते हैं, जिनमें गौ पूजन, कृष्ण तुलसी पुष्पांजलि, और मट्टू पोंगल हवन को विशेष रूप से फलदायी माना गया है। मान्यता है कि मट्टू पोंगल पर भगवान कृष्ण की दिव्य कृपा प्राप्त करके समृद्धि, प्रचुरता, आध्यात्मिक शक्ति और बुराई पर विजय पाने का आशीष पाया जा सकता है।
एक पौराणिक कथा के अनुसार इंद्र देव ने अपने अहंकार में आकर ग्वालों और गोपियों को कड़ा दंड देने का निश्चय किया। उन्होंने पृथ्वी पर भारी बारिश और भयंकर तूफान भेजा, जो तीन दिनों तक लगातार जारी रहा। इससे पहले, भगवान कृष्ण ने ग्वालों को इंद्र की पूजा छोड़कर गोवर्धन पर्वत की पूजा करने को कहा था। इंद्र इस बात से क्रोधित हुए और विनाशकारी बारिश शुरू कर दी। तब श्रीकृष्ण ने अपनी छोटी उंगली पर गोवर्धन पर्वत उठाकर सबको सुरक्षित रखा। यह लीला देखकर इंद्र ने अपनी गलती मानी और भगवान श्रीकृष्ण से क्षमा मांगकर उनके दिव्य स्वरूप को नमन किया। इस घटना के बाद से इंद्र की पूजा के स्थान पर प्रकृति, अन्न और गायों के प्रति आभार प्रकट करने के लिए पोंगल का त्योहार मनाने की परंपरा शुरू हुई। इसीलिए मट्टू पोंगल तमिल नववर्ष के शुभ अवसर पर एट्टेलुथुपेरुमल मंदिर में यह पूजा आयोजित की जा रही है। श्री मंदिर के माध्यम से इस अनुष्ठान में भाग लेकर भगवान श्री कृष्ण की दिव्य कृपा प्राप्त करें।