क्या आपको लगता है कि कड़ी मेहनत के बावजूद सफलता हमेशा हाथ से फिसल जाती है? जीवन में रुकावटें और बेचैनी बनी रहती हैं? ज्योतिष शास्त्र में इसे कालसर्प दोष कहा गया है। जब जन्मकुंडली के सभी ग्रह राहु और केतु के बीच आ जाते हैं, तो यह विशेष योग बनता है। इसे एक अदृश्य नाग के समान माना जाता है, जो जीवन के हर क्षेत्र – परिवार, करियर और मानसिक शांति – में बाधाएँ उत्पन्न करता है। इस दोष के कारण अचानक संघर्ष और देरी का सामना करना पड़ सकता है। इससे व्यक्ति लगातार चिंता और भय का अनुभव करता है। इन सब कठिनाइयों से राहत पाने के लिए सर्वोत्तम उपाय है भगवान शिव की शरण लेना।
धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, नागराज वासुकि, जो भगवान शिव के गले का आभूषण हैं, देवासुर मंथन के बाद थके और घायल होकर महादेव की शरण में आए थे। तब भगवान शिव ने उन्हें अपने गले में स्थान दिया। यह कथा दर्शाती है कि महादेव समस्त नागों के अधिपति हैं, जिनमें राहु और केतु भी सम्मिलित हैं। इसी कारण शिव की उपासना कालसर्प दोष से मुक्ति का प्रभावी उपाय मानी जाती है।
त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग में की जाने वाली कालसर्प दोष शांति पूजा इस दोष के निवारण हेतु अत्यंत श्रद्धा से की जाती है। पूजन से पहले श्रद्धालु पवित्र गोदावरी नदी में स्नान करते हैं, जिसे पाप और कर्म बंधनों को धोने वाला माना गया है। इसके बाद त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग की विशेष पूजा होती है, जहाँ भगवान ब्रह्मा, विष्णु और महेश – तीनों का स्वरूप विराजमान है। इस त्रिमूर्ति की आराधना कर भक्त दोषों से मुक्ति और शांति, सफलता तथा सुख-समृद्धि का आशीर्वाद प्राप्त करने की प्रार्थना करते हैं। अमावस्या जैसे विशेष दिन पर किया गया यह पूजन पूर्व जन्म के कर्मों को शांति देने और कालसर्प दोष के दुष्प्रभाव को कम करने हेतु किया जाता है।
🔸 श्री मंदिर के माध्यम से इस विशेष पूजा में सम्मिलित होकर भगवान शिव की कृपा के लिए प्रार्थना करें और जीवन में शांति एवं संतुलन का अनुभव करें।