😔 क्या आपको लगता है कि आपकी ज़िंदगी अटकी हुई है, लगातार देरी और डर से घिरी हुई है?
सीधे शब्दों में, जब किसी की जन्मकुंडली में सभी ग्रह राहु और केतु के बीच आ जाते हैं, तो इसे कालसर्प दोष कहते हैं। ऐसा लगता है मानो किसी के भाग्य को एक अदृश्य नाग ने जकड़ लिया हो, जिससे बार-बार संघर्ष और असफलता का सामना करना पड़ता है। ऐसे गहरे बैठे दोष से राहत पाने के लिए दिव्य आशीर्वाद और पूर्वजों की कृपा दोनों की आवश्यकता होती है।
इसी कारण महालया अमावस्या को इस पूजा के लिए चुना जाता है। यह पितृ पक्ष का सबसे महत्वपूर्ण और आखिरी दिन है, जब हम अपने पूर्वजों को याद करते हैं और विधि-विधान से विदा करते हैं। इस दिन की विशेषता यह है कि यह उन सभी पूर्वजों को तर्पण देने का अवसर है, जिनकी पुण्यतिथि हमें याद नहीं।
महाभारत के महान योद्धा कर्ण की कथा इस महत्व को समझाती है। स्वर्ग पहुंचने पर कर्ण को भोजन की जगह सोना दिया गया। यमराज ने बताया कि जीवनभर दान देने के बावजूद उन्होंने पूर्वजों के लिए कभी अन्न का दान नहीं किया था। उन्हें 15 दिन के लिए धरती पर लौटने का अवसर मिला, जहां उन्होंने श्राद्ध अनुष्ठान किए और अपने कुल को शांति दिलाई। यह कथा सिखाती है कि पूर्वजों की कृपा से ही जीवन की बड़ी बाधाएं दूर हो सकती हैं।
कालसर्प दोष से राहत के लिए इन शक्तिशाली पितृ आशीर्वादों को त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग पर भगवान शिव की दिव्य शक्ति के साथ जोड़ा गया है। भगवान शिव महाकाल हैं — समय और नियति के स्वामी, जो सभी ग्रहों को नियंत्रित करने की शक्ति रखते हैं। इस पवित्र दिन त्र्यंबकेश्वर पर कालसर्प दोष शांति पूजा करने से भक्त को दोहरी कृपा मिलती है — पूर्वजों की आत्माओं से और स्वयं भगवान से। यह संयुक्त प्रार्थना भय, मानसिक अस्थिरता और जीवन की अड़चनों को दूर करने में सहायक मानी जाती है।
इस महालया अमावस्या पर श्रीमंदिर के माध्यम से इस दिव्य अनुष्ठान में शामिल हों और भगवान शिव की कृपा से जीवन की रुकावटों से मुक्ति व गहन मानसिक शांति प्राप्त करें।