सनातन धर्म में अमावस्या तिथि बहुत पवित्र और शुभ मानी जाती है। यह साल की आखिरी अमावस्या भी है, और ऐसा विश्वास है कि इस दिन की गई पूजा से पूर्वजों की आत्मा को शांति मिलती है। माना जाता है कि भगवान श्री विष्णु की कृपा से इस दिन जीवन में रुकी हुई ऊर्जा फिर से चलने लगती है और वातावरण में सकारात्मकता बढ़ती है। यह तिथि आत्मिक शुद्धि, परिवार में संतुलन और पूर्वजों के प्रति सम्मान दिखाने का विशेष अवसर मानी जाती है। इस दिन किए गए कर्मकांड परिवार, कुल और समाज में सुख, शांति और समृद्धि लाने में प्रभावी माने जाते हैं।
गया में अमावस्या के इस शुभ अवसर पर ये पवित्र अनुष्ठान किए जाते हैं:
1. गया त्रिपिंडी श्राद्ध – इसमें तिल, चावल और कुश से बने पिंड तीन पीढ़ियों—पिता, पितामह और प्रपितामह—को अर्पित किए जाते हैं। इसका उद्देश्य पूर्वजों की आत्मा को तृप्त करना और उनके आशीर्वाद से परिवार में सुख, स्वास्थ्य और स्थिरता पाना होता है। यह अपने कुल के प्रति कृतज्ञता दिखाने का प्रतीक माना जाता है।
2. तिल तर्पण – इसमें तिल, जल और मंत्रों के साथ तर्पण किया जाता है। यह नकारात्मक ऊर्जा को दूर करने और पूर्वजों की कृपा पाने का एक तरीका माना जाता है। इससे घर-परिवार में सकारात्मक ऊर्जा, शांति और संतुलन आता है।
गया तीर्थ की पवित्र कथा -
गरुड़ पुराण के अनुसार, ‘गया’ नाम का एक असुर कठोर तप करके बहुत शक्तिशाली हो गया था, जिससे देवताओं और मनुष्यों को परेशानी होने लगी। तब भगवान विष्णु ने उसके शरीर में प्रवेश कर उसे शांत किया और उसके शरीर को ही एक पवित्र तीर्थ बना दिया। इसी कारण गया को श्राद्ध और पितृ-कर्म के लिए अत्यंत शुभ स्थान माना जाता है। यहां श्रद्धा और आस्था से किया गया तर्पण, पूर्वजों की आत्मा को शांति और मोक्ष दिलाने वाला माना गया है।
साल 2025 की आखिरी अमावस्या तिथि पर आप भी इन पवित्र कर्मों में शामिल होकर अपने पूर्वजों का सम्मान कर सकते हैं और जीवन में सुख, शांति और सकारात्मक ऊर्जा का अनुभव कर सकते हैं।