हिंदू धर्म में पूर्णिमा का दिन अत्यंत पवित्र और शुभ माना जाता है। यह दिन आध्यात्मिक अनुष्ठानों और देवी-देवताओं के आशीर्वाद प्राप्त करने का विशेष अवसर होता है। वर्ष 2025 की आखिरी पूर्णिमा का भी यही महत्व है, क्योंकि इसे साल भर की ऊर्जा को संतुलित करने और आने वाले वर्ष के लिए सकारात्मक शुरुआत का अवसर माना जाता है। शास्त्रों के अनुसार, पूर्णिमा के दिन देवी दुर्गा की पूजा करना अत्यंत फलदायक होता है। इस दिन भक्त और देवी के बीच संबंध और मजबूत हो जाता है। देवी दुर्गा के दस रूपों को महाविद्याएँ कहा जाता है, जो सभी आध्यात्मिक सिद्धियों को प्रदान करने वाली मानी जाती हैं। इन महाविद्याओं में से आठवीं महाविद्या माँ बगलामुखी हैं।
मान्यताओं के अनुसार उनकी पूजा से शत्रुओं का नाश होता है, जीवन में आने वाली बाधाएँ दूर होती हैं और सुरक्षा की प्राप्ति होती है। इसी तरह, देवी प्रत्यंगिरा, जो आदि शक्ति का शक्तिशाली रूप हैं, उनकी पूजा से नकारात्मक ऊर्जा समाप्त होती है और जीवन में शांति, सुरक्षा और समृद्धि आती है। इसलिए साल की आखिरी पूर्णिमा पर माँ बगलामुखी और देवी प्रत्यंगिरा की पूजा का विशेष महत्व है। इस दिन विशेष अनुष्ठानों का आयोजन किया जाता है, जिसमें बगलामुखी-प्रत्यंगिरा कवच पाठ सबसे महत्वपूर्ण होता है। इस पाठ में पवित्र मंत्रों का उच्चारण करके देवी की शक्तियों को आमंत्रित किया जाता है।
ऐसा माना जाता है कि साल की आखिरी पूर्णिमा पर यह कवच पाठ करने से पूरे वर्ष की नकारात्मकता समाप्त होती है और आने वाले वर्ष में शक्ति, साहस और सुरक्षा की ऊर्जा मिलती है। यह शक्ति बगलामुखी मूल मंत्र जाप और हवन से और भी अधिक बढ़ जाती है। वर्ष 2025 की आखिरी पूर्णिमा के शुभ अवसर पर हरिद्वार स्थित माँ बगलामुखी मंदिर में 36 विद्वान ब्राह्मणों द्वारा यह विशेष महानुष्ठान आयोजित किया जाएगा। आप भी इस पवित्र आयोजन में भाग लेकर माँ बगलामुखी-प्रत्यंगिरा कवच पाठ, 1,25,000 बगलामुखी मूल मंत्र जाप और हवन में सम्मिलित होकर देवी का संयुक्त आशीर्वाद प्राप्त कर सकते हैं।