वैदिक ज्योतिष में राहु और केतु को छाया ग्रह माना जाता है। ये दोनों ग्रह जीवन में अनिश्चितता, भय, चिंता और अचानक आने वाले उतार-चढ़ाव का कारण बनते हैं। राहु मन को भ्रमित करता है, अस्थिरता और मानसिक तनाव लाता है, जबकि केतु आध्यात्मिक भ्रम, संबंधों में दूरी और हानि का कारक बनता है। इनके अशुभ प्रभाव से व्यक्ति को मानसिक उलझन, आर्थिक संकट, रोग, संतान से जुड़ी समस्याएँ और सामाजिक संघर्ष का सामना करना पड़ता है। खासकर जब राहु-केतु दोष या कालसर्प योग सक्रिय होता है, तब जीवन में अवरोध और बाधाएँ और भी गहरी हो जाती हैं।
आर्द्रा नक्षत्र के स्वामी राहु है और देवता भगवान शिव के रुद्र स्वरुप हैं। यह नक्षत्र तूफ़ान, परिवर्तन और नई शुरुआत का प्रतीक है। जब राहु इसी नक्षत्र में सक्रिय होता है, तो उसका प्रभाव तीव्र हो जाता है, जिससे जातक को मानसिक बेचैनी, तनाव और अव्यवस्था का सामना करना पड़ता है। इसी कारण आर्द्रा नक्षत्र के दौरान राहु-केतु दोष शांति के लिए किए जाने वाले अनुष्ठान को विशेष रूप से फलदायी माना जाता है।
राहु पैठाणी मंदिर में आयोजित राहु-केतु पीड़ा शांति हवन एवं अथर्ववेदोक्त सर्प सूक्त पाठ इसी उद्देश्य से किया जाता है। इस हवन में विशेष सामग्री के साथ राहु-केतु के मंत्रों का उच्चारण किया जाता है, जिससे उनके दुष्प्रभाव कम होते हैं और जीवन में संतुलन आता है। साथ ही, अथर्ववेद में वर्णित सर्प सूक्त का पाठ किया जाता है, जो कालसर्प योग और राहु-केतु दोष से उत्पन्न समस्याओं जैसे भय, रोग, आर्थिक संकट और बाधाओं को कम करने में सहायक माना जाता है।
श्री मंदिर के माध्यम से भक्त इस राहु-केतु पीड़ा शांति हवन एवं सर्प सूक्त पाठ में सम्मिलित होकर अपने जीवन में राहु-केतु दोषों से राहत प्राप्त कर सकते हैं और स्थिरता, सफलता तथा सकारात्मक ऊर्जा ला सकते हैं।