⚖️ ऋषि पिप्पलपाद द्वारा रचित शनि स्तोत्र कैसे दिला सकता है साढ़ेसाती जैसे दोषों से रक्षा?
ऋषि पिप्पलपाद एक महान तपस्वी और वेदों के जानकार थे, जिन्हें प्रश्न उपनिषद के लेखक के तौर पर भी जाना जाता है, जो 10 उपनिषद में से एक है। बताया जाता है कि वे पिप्पल वृक्ष के नीचे ध्यान करते थे, जिससे उनका नाम ‘पिप्पलपाद’ हो गया। ऋषि पिप्पलपाद धर्म, ध्यान और साधना के प्रतीक माने गए, जिनका लिखा शनि स्तोत्र विद्वानों के बीच बड़ा महत्व रखता है।
इस शनिवार साल की आखिरी शनि अमावस्या है, जिसमें यदि ऋषि पिप्पलपाद द्वारा रचित शनि स्तोत्र का पाठ, तिल-तेल अभिषेक के साथ किया जाए तो गहरे शनिदोष शांत हो सकते हैं। शनि अमावस्या, अमावस्या तिथि को पड़ती है, जब चंद्रमा सूर्य के साथ होता है और नकारात्मक ऊर्जा का असर सबसे ज्यादा होता है। इस ख़ास दिन विशेष रूप से दान, तेल अर्पण और शनि मंत्रों का जाप किया जाता है, जिससे शनि के अशुभ प्रभावों से राहत की दिशा मिल सके।
2025 के इस दुर्लभ और आखिरी अवसर पर श्री मंदिर द्वारा उज्जैन के श्री नवग्रह शनि मंदिर में ऋषि पिप्पलपाद द्वारा रचित शनि स्तोत्र और तिल-तेल अभिषेक का आयोजन होने जा रहा है। यह स्तोत्र शनिदेव की पूजा और अनुष्ठान के दौरान अत्यंत प्रभावी माना गया है। यह स्तोत्र राजा नल और पिप्पलाद ऋषि की कथा से जुड़ा है, जिन्होंने शनि की पीड़ा से मुक्ति पाने के लिए इसका पाठ किया था. यह शनि के न्यायपूर्ण और कठोर स्वभाव को संतुलित करता है, जिससे व्यक्ति के जीवन में संतुलन और शांति आ सके। इसका पाठ विशेष रूप से शनि अमावस्या जैसे अवसरों पर किया जाता है। मान्यता है कि यह अनुष्ठान व्यक्ति को शनि के महादोषों से राहत दे सकता है और जीवन में सुख, सफलता और समृद्धि के नए रास्ते बना सकता है।
शनि महादशा और साढ़ेसाती:
शनि महादशा व्यक्ति के जीवन में साढ़े सात वर्षों का एक समय चक्र होता है, जिसमें शनि की स्थिति के आधार पर शुभ और अशुभ प्रभाव आते-जाते हैं। वहीं, साढ़ेसाती शनि का वह समय है जब शनि, अपनी स्थिति के अनुसार, कुंडली के ढाई घरों में संक्रमण करता है। इस समय व्यक्ति को कठिनाइयों, तनाव, शारीरिक परेशानियों और वित्तीय संकट का सामना करना पड़ सकता है। शनि अमावस्या पर इस अनुष्ठान में तिल-तेल अभिषेक एक ख़ास पूजा विधि है, जिसमें तिल के तेल से शनिदेव पर अभिषेक किया जाता है। मान्यता है कि ‘कर्म और न्याय के देवता’ इन अनुष्ठानों से प्रसन्न होते हैं और भक्तों के जीवन से साढ़ेसाती-ढय्या जैसे दुर्लभ दोष पुण्यों में बदलने शुरू हो जाते हैं।