सावन के आखिरी दिन यानी पूर्णिमा को आयोजित विशेष अनुष्ठान की मदद से पाएं ऐसा दिव्य आशीर्वाद, जो जीवन में व्याप्त नकारात्मकता से दिला सकता है आपको भी राहत🙏
ऐसा माना जाता है कि जब पूर्वजों की इच्छाएं अधूरी रह जाती हैं या उनके कर्मों का कोई प्रभाव वंशजों पर आता है, तो उस स्थिति को पितृ दोष कहा जाता है। यह दोष व्यक्ति के जीवन में बार-बार आने वाली रुकावटों, अस्थिरता, विवाह में देरी, संतान संबंधी समस्याओं और पारिवारिक कलह का कारण बन सकता है। कई बार ऐसा भी होता है कि बिना किसी स्पष्ट कारण के ही कार्य असफल हो जाते हैं, मन परेशान रहता है या आर्थिक संकट बना रहता है। इन सबका संबंध पितृ दोष से जोड़ा जाता है। ऐसे समय में सावन का महीना, विशेष रूप से इसका अंतिम दिन यानी सावन पूर्णिमा, पितृ दोष शांति के लिए एक अत्यंत शुभ अवसर प्रदान करता है। इस दिन भगवान शिव के अघोर रूप की साधना करने से उन अदृश्य और अनजाने कारणों को शांत करने में सहायता मिलती है, जो जीवन में बाधाएं उत्पन्न करते हैं। अघोर शिव को तंत्र और गूढ़ साधनाओं के अधिपति माना गया है, जो मृत्यु, भय, रोग और पूर्वजों से जुड़े दोषों को शांत करने में समर्थ माने जाते हैं।
इस दिन अघोर मंत्रों का जाप, पिंडदान, तर्पण और पितृ तृप्ति के विशेष अनुष्ठान किए जाते हैं। अघोर मंत्र, शिव के उस स्वरूप से जुड़े होते हैं जो मृत्यु, भय, रोग और बाधाओं से परे है, और जिनकी साधना व्यक्ति को नकारात्मक शक्तियों से राहत मिलती है। यह पूजा न केवल पितरों की आत्मा को शांति देती है, बल्कि वंशजों के जीवन में स्थिरता, सुख और मानसिक संतुलन भी लाने में सहायक मानी जाती है। यदि आपके जीवन में बार-बार अज्ञात रुकावटें आ रही हैं, कोई भी प्रयास बिना कारण विफल हो रहा है या मन बेचैन रहता है, तो यह सावन पूर्णिमा एक श्रेष्ठ अवसर है शिव कृपा और पितृ शांति प्राप्त करने का। इस दिन श्रद्धा और विधिपूर्वक की गई साधना, अदृश्य कारणों से उत्पन्न कष्टों को शांत करने का माध्यम बन सकती है और जीवन में नए मार्ग खोल सकती है।
श्री मंदिर के माध्यम से इस विशेष अनुष्ठान में भाग लें।