ज्योतिर्लिंग, भगवान शिव की शक्ति का सबसे ऊंचा और पवित्र रूप माना जाता है। ये हमारे जीवन को बदलने की ताकत रखते हैं। बारह प्रसिद्ध ज्योतिर्लिंगों में से घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग आखिरी है, लेकिन इसे सबसे ज्यादा खास और आध्यात्मिक रूप से शक्तिशाली माना गया है। यह महाराष्ट्र में देवगिरी पहाड़ियों के पास स्थित है और यह जगह भक्ति, ईर्ष्या और भगवान की कृपा से जुड़ी एक पौराणिक कथा के लिए जानी जाती है। बहुत पहले सुधर्मा नाम के एक ब्राह्मण और उसकी पत्नी सुदाहा देवगिरी में रहते थे। वे दोनों संतान की इच्छा रखते थे लेकिन उन्हें संतान नहीं हो रही थी। सुदाहा ने अपनी छोटी बहन घुश्मा से सुधर्मा का विवाह करवा दिया। घुश्मा भगवान शिव की बहुत बड़ी भक्त थीं। वह हर दिन 101 मिट्टी के शिवलिंग बनाकर भगवान शिव की पूजा करती थीं और फिर उन्हें पास के तालाब में विसर्जित कर देती थीं।
भगवान शिव उनकी सच्ची भक्ति से खुश हुए और उन्हें एक बेटे का आशीर्वाद दिया। लेकिन यह देखकर सुदाहा को जलन होने लगी। ईर्ष्या में आकर सुदाहा ने घुश्मा के बेटे को मार डाला और उसका शरीर उसी तालाब में फेंक दिया जहाँ घुश्मा शिवलिंग विसर्जित करती थीं। जब घुश्मा को यह भयानक खबर मिली, तब भी वह टूटीं नहीं। उन्होंने भगवान पर अपना विश्वास बनाए रखा और रोज़ की तरह पूजा करती रहीं। उनकी सच्ची आस्था देखकर भगवान शिव खुद प्रकट हुए, उनके बेटे को वापस जीवन दिया और उन्हें आशीर्वाद दिया। घुश्मा ने भगवान से सुदाहा को माफ करने की विनती की और भगवान से कहा कि वे हमेशा के लिए वहीं पर रहें। तब भगवान शिव ने कहा, "मैं तुम्हारे नाम पर घुश्मेश्वर के रूप में यहाँ वास करूँगा।" और इसी से घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग की स्थापना हुई।
सोमवती अमावस्या, यानी जब अमावस्या सोमवार के दिन आती है, तब यह स्थान बहुत ही पवित्र और शक्तिशाली माना जाता है। इस दिन यहाँ शिव रुद्राभिषेक और रुद्र होम जैसे खास पूजन किए जाते हैं। इन पूजा विधियों में जल, दूध, दही, घी, शहद और शक्कर से अभिषेक किया जाता है और अग्नि में रुद्र मंत्रों के साथ आहुति दी जाती है। ऐसा माना जाता है कि इस पूजा से पितरों को शांति मिलती है, परिवार के झगड़े सुलझते हैं और घर में सुख-शांति बनी रहती है। आप भी श्री मंदिर के माध्यम से इस खास पूजा में हिस्सा लें और भगवान शिव की कृपा पाएं।