🌿 क्या आप अपने पितरों की आत्मा की शांति और पितृ दोष से मुक्ति का मार्ग खोज रहे हैं?
🌸 एकादशी पर गोकर्ण में त्रिपिंडी श्राद्ध, पिंड दान और तिल तर्पण कर पूर्वजों की कृपा प्राप्त करें।
सनातन धर्म में पितृ पक्ष अपने पूर्वजों को स्मरण करने और उनके प्रति कृतज्ञता अर्पित करने का सबसे विशेष काल माना गया है। यह 16 दिन पूर्वजों की आत्मा की शांति और तृप्ति के लिए श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान करने की परंपरा से जुड़ा है। पितृ पक्ष की उत्पत्ति से जुड़ी सबसे प्रसिद्ध कथा महाभारत के महान योद्धा कर्ण की है। कर्ण जब युद्ध में वीरगति को प्राप्त कर स्वर्ग लोक पहुंचे, तो उन्हें भोजन के स्थान पर सोना और रत्न मिले। इंद्र देव ने बताया कि जीवन भर उन्होंने सोने का दान तो किया, किंतु कभी अन्न और जल का दान नहीं किया, न ही अपने पितरों के लिए श्राद्ध और तर्पण किया। यह सुनकर कर्ण ने अपनी गलती सुधारने की इच्छा जताई और उन्हें 15 दिनों के लिए पृथ्वी पर लौटने का अवसर मिला।
इस अवधि में कर्ण ने श्रद्धापूर्वक अपने पितरों के लिए श्राद्ध, तर्पण और अन्न-जल का दान किया। तभी से इन दिनों को पितृ पक्ष के रूप में मनाने की परंपरा आरंभ हुई, जो पितरों की शांति और वंशजों के कल्याण के लिए अनिवार्य मानी जाती है। हालांकि पितृ पक्ष की प्रत्येक तिथि का अपना महत्व है, लेकिन एकादशी विशेष रूप से पुण्यदायिनी मानी गई है। विष्णु भगवान की आराधना और तर्पण से जुड़ी इस तिथि पर किए गए श्राद्ध और दान से पितरों की आत्मा को विशेष शांति और गति प्राप्त हो सकती है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन का किया गया तर्पण और दान अनंत पीढ़ियों तक पुण्यफल देने वाला होता है।
इसीलिए पितृ पक्ष की एकादशी पर गोकर्ण में विशेष पूजा-अर्चना का आयोजन होता है। गोकर्ण, जिसे दक्षिण का काशी कहा जाता है, पितृ कर्मों के लिए अत्यंत पवित्र स्थल है। स्कंद पुराण सहित अनेक ग्रंथों में वर्णित है कि यहाँ किया गया श्राद्ध और तर्पण साधारण से कई गुना फलदायी होता है। विशेषकर पितृ पक्ष की एकादशी पर गोकर्ण में पिंडदान, तिल तर्पण, नारायण बलि और त्रिपिंडी श्राद्ध करने से पितरों की आत्मा को दिव्य तृप्ति और मोक्ष मिलता है। ऐसा माना जाता है कि गोकर्ण में किए गए इन कर्मकांडों से न केवल पितरों की आत्मा को शांति मिलती है, बल्कि वंशजों के जीवन में स्थिरता, सुख-समृद्धि और आध्यात्मिक संतुलन भी आता है।
आप भी इस अनुष्ठान से श्री मंदिर के माध्यम से जुड़ सकते हैं।
इसी के साथ यदि आपको अपने किसी दिवंगत-पूर्वज की तिथि याद नहीं तो महालया (सर्वपितृ) अमावस्या पर हो रहे अनुष्ठानों में भाग लेकर पुण्य के भागी बनें।