🌺विवाह पंचमी वह पावन तिथि है, जिस दिन भगवान श्रीराम और मां सीता का दिव्य विवाह संपन्न हुआ था। यह दिन आदर्श दांपत्य, प्रेम और समर्पण के प्रतीक के रूप में मनाया जाता है। इस अवसर पर केवल सीता-राम की ही नहीं, बल्कि लक्ष्मी-नारायण और शिव-पार्वती की भी संयुक्त आराधना करने की परंपरा है, क्योंकि ये तीनों दिव्य युगल सृष्टि के 3 मूल आधारों- समृद्धि, संरक्षण और संतुलन का प्रतिनिधित्व करती हैं।
लक्ष्मी-नारायण की पूजा से घर-परिवार में धन, सौभाग्य और स्थिरता का आशीर्वाद माना जाता है। माता लक्ष्मी के सौम्य स्वरूप और भगवान नारायण की करुणा से वैवाहिक जीवन में सम्मान, मधुरता और परस्पर सहयोग की भावना बढ़ती है।
शिव-पार्वती की उपासना से दिव्य युगल के बीच धैर्य, समझ, क्षमा और एक-दूसरे के प्रति दृढ़ समर्पण विकसित होने की मान्यता है। शिव-पार्वती का विवाह तप, प्रेम और समानता के आदर्श को दर्शाता है।
सीता-राम की पूजा, विवाह पंचमी का मुख्य केंद्र है। उनके दांपत्य में मर्यादा, पवित्रता और कर्तव्य का सर्वोच्च भाव है। इस दिन सीता-राम विवाह कथा सुनने और पूजा करने से विवाह में आ रही बाधाएं शांत होती हैं और योग्य जीवनसाथी की प्राप्ति में बाधा बन रहे मंगल दोष दूर होने शुरू हो जाते हैं।
🌺🙏 मान्यता है कि इस ख़ास दिन की आराधना दांपत्य जीवन को सुखमय, संतुलित और शुभ बनाने की शक्ति रखती है।
🔱 भगवान शिव-गौरी के विवाह से जुड़ा है मंदिर का महत्व
यह अनुष्ठान त्रियुगीनारायण मंदिर, उत्तराखंड में होने जा रहा है, जो केदारनाथ धाम के करीब स्थित एक प्राचीन और पवित्र मंदिर है। मान्यता है कि यहीं भगवान शिव और माता पार्वती का दिव्य विवाह हुआ था, जिसके साक्षी स्वयं भगवान विष्णु बने थे। मंदिर परिसर में आज भी ‘अखंड धूनी’ प्रज्वलित है, जिसे त्रेता युग से निरंतर जलती हुई माना जाता है। भक्त विश्वास रखते हैं कि इस धूनी की पवित्र ज्वाला से प्राप्त अग्नि, भस्म या राख से वैवाहिक जीवन में सौहार्द, स्थिरता और मांगलिक दोषों की शांति का आशीर्वाद मिलता है। यहां तीनों महायुगल जोड़ियों की महा आरती होगी, जो विवाह पंचमी जैसे शुभ संयोग में एक दुर्लभ अवसर है।
🌺 श्री मंदिर द्वारा इस अनुष्ठान में भाग लेने का मौका हाथ से न जाने दें।