वैदिक पंचांग के अनुसार, कार्तिक अमावस्या यानी दिवाली की रात अत्यंत शुभ और आध्यात्मिक दृष्टि से शक्तिशाली मानी जाती है। जब सूर्य, जो आत्मा का प्रतीक है, और चंद्रमा, जो मन का प्रतीक है, एक साथ आते हैं, तो यह मिलन आत्मा और मन के संतुलन का समय होता है। इस समय व्यक्ति के लिए अपने भीतर छिपे भय और भ्रम को छोड़ना आसान होता है। अमावस्या की यह रात वह समय है जब शक्ति अपने सर्वोच्च रूप में प्रकट होती हैं और समस्त अंधकार का नाश करती हैं। शास्त्रों में दिवाली का निशित काल अत्यंत महत्वपूर्ण माना गया है। इस समय की साधना मानसिक स्थिरता, निडरता और आध्यात्मिक बल को बढ़ाने में सहायक मानी जाती है। साथ ही इस पवित्र रात्रि में मां दक्षिणा काली की पूजा का विशेष महत्व बताया गया है। मां काली शक्ति का वह रूप हैं जो भय, नकारात्मकता और अवरोधों का विनाश करती हैं। जब पूरी सृष्टि दीपों से प्रकाशित होती है, तब प्राकृतिक अंधकार के बीच मां काली की साधना गहरे बैठे भय और नकारात्मक भावों को जलाकर आत्मिक शांति और साहस प्रदान करती है।
राक्षस रक्तबीज की कथा इसका प्रतीक है। जब रक्तबीज की प्रत्येक रक्त की बूंद से उसका नया रूप उत्पन्न हो जाता था, तब देवता निराश हो गए। उसी समय मां दुर्गा के तीसरे नेत्र से मां काली प्रकट हुईं। उन्होंने अपने शक्तिशाली रूप से रक्तबीज के हर बूंद को निगल लिया और उसका अंत किया। यह कथा दिखाती है कि मां काली हमारे भीतर के भय, अस्थिरता और नकारात्मक विचारों को नष्ट करके उन्हें शक्ति और आत्मविश्वास में बदल देती हैं।
कोलकाता स्थित कालीघाट शक्तिपीठ में आयोजित इस महानिशा पूजन में मां दक्षिणा काली की विशेष स्तोत्र पाठ और हवन के माध्यम से आराधना की जाती है। मान्यता है कि दिवाली की मध्यरात्रि में किया गया यह पूजन भय और नकारात्मक प्रभावों से राहत पहुँचाने का कार्य करता है साथ ही यह पूजा स्थिरता, शांति तथा दिव्य संरक्षण प्रदान करती है।
श्री मंदिर के माध्यम से किया जाने वाला यह विशेष पूजन आपके जीवन में निर्भयता, मानसिक संतुलन और आत्मिक शक्ति के आशीर्वाद को आमंत्रित करता है।