सनातन धर्म में एकादशी तिथि को अत्यंत पवित्र और शुभ माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन भगवान श्री विष्णु की कृपा से जीवन में रुकी हुई ऊर्जा पुनः प्रवाहित होती है और सृष्टि में सकारात्मकता का संचार होता है। यह तिथि आत्मिक शुद्धि, पारिवारिक संतुलन और पितरों के प्रति श्रद्धा व्यक्त करने का विशेष अवसर मानी जाती है। इस दिन किए जाने वाले अनुष्ठान परिवार, वंश और समाज में सामंजस्य, सुख-शांति और समृद्धि लाने के लिए अत्यंत प्रभावशाली माने जाते हैं।
एकादशी के इस पुण्य अवसर पर गया में तीन पवित्र अनुष्ठान आयोजित किए जाते हैं, जिनमें शामिल हैं:
गया त्रिपिंडी श्राद्ध – इसमें तीन पीढ़ियों — पिता, पितामह और प्रपितामह — के लिए तिल, चावल और कुशा से पवित्र पिंड बनाकर अर्पित किए जाते हैं। इसका उद्देश्य पितरों की आत्मा को तृप्त करना और उनके आशीर्वाद से परिवार में खुशहाली, स्वास्थ्य और स्थिरता लाना है। यह अनुष्ठान वंश के प्रति कृतज्ञता और सम्मान का प्रतीक माना जाता है।
पिंडदान – यह अनुष्ठान पितरों की आत्मा की शांति और परिवार की समृद्धि के लिए किया जाता है। श्रद्धा और भक्ति से किया गया पिंडदान पितृ दोष को शांत करने में सहायक माना जाता है। ऐसा कहा जाता है कि इससे जीवन की बाधाएं कम होती हैं और मन में स्थिरता और संतोष का अनुभव होता है।
तिल तर्पण – तिल, जल और पवित्र मंत्रों के माध्यम से किया गया यह अनुष्ठान नकारात्मक ऊर्जा को दूर करने और पितरों की कृपा प्राप्त करने का माध्यम माना जाता है। इससे परिवार में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है और वातावरण में शांति और संतुलन स्थापित होता है।
जानें गया तीर्थ की पवित्र कथा📖
गरुड़ पुराण के अनुसार गया नामक एक असुर ने कठोर तपस्या से अपार शक्ति प्राप्त कर देवताओं और मनुष्यों को कष्ट दिया। तब भगवान विष्णु ने उसके शरीर में प्रवेश कर उसे शांत किया और उसके शरीर को ही पुण्यभूमि बना दिया। इसी कारण यह स्थल पितृ कार्यों और श्राद्ध संस्कारों के लिए अत्यंत पवित्र माना गया। ऐसा विश्वास है कि गया में श्रद्धा और भक्ति से किया गया तर्पण आत्मा को शांति और मोक्ष की प्राप्ति कराता है।
इस एकादशी तिथि पर आप भी इन पवित्र अनुष्ठानों में भाग लेकर अपने पूर्वजों के प्रति श्रद्धा अर्पित कर सकते हैं और अपने जीवन में सुख, शांति और सकारात्मक ऊर्जा का अनुभव कर सकते हैं।