सनातन धर्म में भगवान शिव के उग्र रूप काल भैरव की पूजा का विशेष महत्व है। विशेषतौर पर मार्गशीर्ष माह मे पड़ने वाली काल भैरव जयंती पर बाबा काल भैरव की पूजा शुभ और फलदायी मानी जाती है। मान्यता है कि इस दिन बाबा भैरव की पूजा करने से बुरी शक्तियों और अदृश्य खतरों से सुरक्षा का आशीर्वाद प्राप्त होता है। इस दिन बाबा भैरव के वाहन कुत्ते की भी पूजा शुभ मानी जाती है, क्योंकि कुत्ता भी बाबा भैरव की रक्षा करता है। मान्यता है कि बाबा भैरव स्वंय काशी की रक्षा करते हैं। बाबा काल भैरव की उत्पत्ति से जुड़ी पौराणिक कथा में कहा गया है कि एक बार भगवान विष्णु और ब्रह्मा जी के बीच सर्वश्रेष्ठता को लेकर विवाद हुआ। इस दौरान एक अग्नि स्तंभ प्रकट हुआ और दोनों को इसके ओर-छोर का पता लगाने की चुनौती दी। विष्णु जी ने सच बताया कि उन्हें अंत नहीं मिला, जबकि ब्रह्मा जी ने झूठ कहा कि उन्होंने अंत देख लिया। तब भगवान शिव उस अग्नि स्तंभ से प्रकट हुए और ब्रह्मा जी को असत्य बोलने पर श्राप दिया कि उनकी पूजा नहीं होगी।
क्रोधित ब्रह्मा जी के अपशब्दों पर शिवजी ने अपने अंश से विकराल भैरव को उत्पन्न किया। बाबा भैरव ने ब्रह्मा जी के पांचवें मुख को काट दिया, जिससे उन्हें ब्रह्महत्या का दोष लग गया। इस दोष से मुक्ति के लिए भैरव सृष्टि का विचरण करते रहे और अंततः काशी में उनके हाथ से ब्रह्मा जी का कपाल छूटा, जिससे वे दोषमुक्त हो गए। तब भगवान शिव ने कहा कि भैरव ने कालचक्र पर विजय प्राप्त की है, इसलिए उनका नाम 'काल भैरव' होगा और वे काशी के रक्षक रहेंगे। मान्यता है कि बाबा भैरव की तरह उनके वाहन कत्ते ने भी कालचक्र पर विजय प्राप्त की है। पौराणिक कथानुसार, कुत्ते ने भी पांडवों की रक्षा करते हुए स्वर्ग तक पहुंचाया था। इसी कारणवश माना जाता है कि इस शुभ दिन पर कुत्ते की पूजा करने से देवता द्वारा सुरक्षा प्राप्त होती है। इसीलिए काशी में काल भैरव जयंती पर श्री काल भैरव मंदिर और आदि काल भैरव मंदिर में क्षेत्रपाल काल भैरव वाहन (कुत्ता) पूजन एवं क्षेत्रपाल भैरव अष्टकम का आयोजन किया जा रहा है। श्री मंदिर के माध्यम से इस पूजा में भाग लें और काल भैरव का आशीर्वाद प्राप्त करें।