हिंदू पंचांग के अनुसार, कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को तुलसी माता एवं शालिग्राम जी का विवाह किया जाता है। इसके पीछे एक पौराणिक कथा है, जालंधर नाम का एक शक्तिशाली राक्षस था, जिसकी पत्नी का नाम वृंदा था। वृंदा भगवान विष्णु की भक्त थी। जब भी जालंधर युद्ध पर जाता तो वृंदा भगवान विष्णु की पूजा करती, जिससे श्रीहरि उसकी सारी मनोकामनाओं को पूरा कर देते। जिससे उसने चारों ओर आतंक मचाया रखा था। इस राक्षस के अत्याचारों से छुटकारा पाने के लिए सभी देवता भगवान विष्णु के पास पहुंचे और उन्हें सारी बातें बताई। भगवान विष्णु ने कहा कि वृंदा के सतीत्व को नष्ट करने के बाद ही जालंधर राक्षस को हराया जा सकता है। इसलिए भगवान विष्णु ने जालंधर का रूप लिया और वृंदा ने उन्हें अपना पति समझकर छू लिया, जिससे वृंदा का पतिव्रता धर्म खंडित हो गया। वृंदा का पतिव्रता धर्म टूटने की वजह से जालंधर की सभी तरह शक्तियां नष्ट हो गई। वह युद्ध में भगवान शिव से हार गया और शिवजी ने उसका वध कर दिया।
जब जालंधर की पत्नी वृंदा को पता चला कि उसके साथ छल हुआ है, तो क्रोधित होकर उसने विष्णु जी को पत्थर बनने का श्राप दे दिया और वे काले पत्थर यानी शालिग्राम के रूप में परिवर्तित हो गए। जिसके बाद लक्ष्मी जी वृंदा के पास आईं और उनसे श्राप वापस लेने की विनती की। मां लक्ष्मी की विनती के बाद वृंदा ने अपना श्राप वापस लिया और वृंदा स्वयं अपने पति के वियोग में सति हो गई। उनकी राख से जो पौधा निकला उसे भगवान विष्णु ने तुलसी का नाम दिया और कहा, आज से मेरा शालिग्राम अवतार जो श्राप के कारण पत्थर बना है उसे तुलसी जी के साथ सदैव पूजा जाएगा। इस तरह वृंदा सदैव के लिए तुलसी के रूप में पूजनीय हो गईं। इसलिए, हर साल लोग कार्तिक माह की एकादशी के दिन श्री हरि के साथ माता तुलसी की कृपा पाने के लिए कई अनुष्ठान करते हैं, जिसमें शालिग्राम पंचामृत अभिषेक, तुलसी विवाह पूजा और 11,000 विष्णु द्वादशाक्षरी मंत्र जाप शामिल है। इस बार मथुरा में स्थित श्री दीर्घ विष्णु मंदिर में इस भव्य अनुष्ठान का आयोजन किया जा रहा है। श्री मंदिर के माध्यम से इस पूजा में भाग लें और श्री हरि विष्णु के साथ माता तुलसी से आदर्श जीवनसाथी एवं रिश्तों में आनंद का आशीर्वाद प्राप्त करें।