हरतालिका तीज की व्रत कथा
हरतालिका तीज की व्रत कथा

हरतालिका तीज की व्रत कथा

18 सितम्बर, 2023 मनचाहे जीवनसाथी के लिए पढ़ें ये व्रत कथा


मान्यताओं के अनुसार, एक बार भगवान शिव ने पार्वती जी को उनके पूर्व जन्म का स्मरण कराने के उद्देश्य से हरतालिका तीज व्रत के माहात्म्य की कथा कही थी। चलिए आज हम लोग भी उस पावन कथा को सुनते हैं-

इस कथा की शुरूआत माता पार्वती के जन्म के साथ शुरू होती है। पर्वतराज हिमालय के घर में एक सुंदर कन्या ने जन्म लिया, जिसका नाम उमा रखा गया। पर्वतराज हिमालय की पुत्री होने के कारण वह पार्वती कहलाई।

बचपन से ही उन्होंने भगवान शिव को अपने पति के रूप में प्राप्त करने का दृढ़ संकल्प ले लिया था। अपनी इस मनोकामना को पूर्ण करने के लिए उन्होंने बाल्यकाल से ही भगवान शिव जी आराधना शुरू कर दी थी। कई वर्षों तक उन्होंने कठिन तपस्या भी की।

देवी पार्वती की इस कठोर तपस्या को देखते हुए उनके पिता पर्वत राज अत्यंत चिंतित हो गए थे। इसके साथ ही उनके मन में अपनी पुत्री के विवाह का भी ख्याल आया।

एक दिन पर्वत राज के पास देवर्षि नारद पहुंचे और उन्होंने नारद जी का आदर सत्कार किया। इसके बाद पर्वत राज ने देवर्षि नारद को बताया कि उन्हें अपनी पुत्री के विवाह की चिंता सताने लगी है।

नारद जी पर्वत राज की समस्या सुनकर बोले, कि यदि आपको मेरी सम्मति स्वीकार हो तो आपकी पुत्री के लिए भगवान विष्णु योग्य वर हैं। वह आपकी कन्या का वरण स्वीकार कर लेंगे।

इस पर पर्वज राज आनंदित होकर बोले कि यदि भगवान विष्णु मेरी कन्या को स्वीकार कर लेंगे तो यह मेरा सौभाग्य होगा।

इसके बाद नारद जी भगवान विष्णु से बात करने बैकुंठ धाम चले गए और पर्वत राज ने पार्वती जी को भी यह समाचार दे दिया कि उनका विवाह भगवान विष्णु जी के साथ निश्चित हो गया है।

जब पार्वती जी को इस बात की जानकारी हुई तो वह अत्यंत निराश हो गईं, क्योंकि उन्होंने तो मन ही मन में भगवान भोलेनाथ को अपने जीवनसाथी के रूप में स्वीकार कर लिया था।

माता पार्वती ने दुखी होकर, यह बात अपनी सहेली को बताई और उनकी सखी ने पार्वती जी की सहायता करने का निश्चय किया। इसके बाद उनकी सहेली ने पार्वती जी को एक घने जंगल में एक गुफा में छिपा दिया। माता पार्वती ने उस गुफा में भगवान शिव की पूजा के लिए रेत के शिवलिंग का निर्माण किया और वह घोर तपस्या में लीन हो गईं। संयोग से माता पार्वती ने शिवलिंग की स्थापना भाद्रपद की शुक्ल तृतीया को हस्त नक्षत्र में की थी और साथ ही उन्होंने निर्जला व्रत भी रखा था। आखिरकार भगवान शिव माता पार्वती की सच्ची निष्ठा और तप से प्रसन्न हुए और उनकी मनोकामना पूर्ण होने का वरदान दे दिया। इसके बाद माता पार्वती ने व्रत का पारण किया।

वहीं दूसरी ओर पर्वत राज भी अपनी पुत्री को ढूंढते-ढूंढते गुफा तक आ पहुंचे। माता पार्वती ने अपने पिता को घर छोड़कर गुफा में रहने का कारण बता दिया। साथ ही उन्होंने अपने पिता को यह भी बताया कि भगवान शिव ने उनका वरण कर लिया है और इस प्रकार उन्होंने भगवान भोलेनाथ को अपने वर के रूप में प्राप्त करने का संकल्प पूर्ण कर लिया है।

इसके पश्चात् राजा पर्वत राज ने भगवान विष्णु से माफी मांगी और वह आखिरकार अपनी पुत्री का विवाह भगवान शिव से करवाने के लिए तैयार हो गए। अंततः भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह विधि पूर्वक संपन्न हुआ। इस प्रकार भगवान शिव और पार्वती का पुनर्मिलन संभव हो पाया।

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