बलराम जयंती 2024: पूजा विधि समेत सम्पूर्ण जानकारी

बलराम जयंती 2024: पूजा विधि समेत सम्पूर्ण जानकारी

श्रद्धाभाव से करें पूजा, भगवान बलराम का मिलेगा आशीर्वाद


बलराम जयंती 2024 (Balaram Jayanti 2024)



हिन्दू पंचांग के अनुसार, भाद्रपद के कृष्‍ण पक्ष की षष्ठी को बलराम जयंती मनाई जाती है, जिसे हलछठ भी कहते हैं। इसे पीन्नी छठ, खमर छठ, राधन छठ, चंदन छठ, तिनछठी, ललही छठ, तिन्नी छठ और कहीं-कहीं पर इसे हलछठ या हरछठ के नाम से भी जाना जाता है। ये दिन भगवान श्रीकृष्ण के बड़े भाई बलराम जी के जन्मदिन के रूप में मनाया जाता है। बलराम जयंती के दिन शक्ति, बल और धर्म के प्रतीक भगवान बलराम की पूजा-अर्चना करने का विधान है।

कब मनाई जाएगी बलराम जयंती (Balaram Jayanti 2024 Date & Time)


वैदिक पंचांग के अनुसार, भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की षष्ठी पर 24 अगस्त, शनिवार को बलराम जयंती मनाई जाएगी।

  • षष्ठी तिथि सुबह 07 बजकर 51 मिनट पर प्रारंभ होगी
  • षष्ठी तिथि का समापन 25 अगस्त को सुबह 05 बजकर 31 मिनट पर होगा।

बलराम जयंती का महत्व क्या है? (Importance of Balaram Jayanti)


पुराणों के अनुसार, भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि को भगवान शेषनाग ने बलराम का अवतार लिया था। मान्यता है कि इस दिन जो महिलाएं सच्चे मन से व्रत और पूजा आदि करती है, इस व्रत के प्रभाव से उनकी संतान को लंबी आयु का आशीर्वाद प्राप्त होता है। साथ ही अगर नि:संतान दंपत्ति भी इस दिन व्रत करते हैं, तो उन्हें भी संतान सुख की प्राप्ति अवश्य होती है।

अगर किसी की संतान किसी रोग से पीड़ित है, तो उन्हें भी बलराम जयंती का व्रत रखने की सलाह दी जाती है। हरछठ का व्रत पुत्रों की दीर्घायु और उनकी सम्पन्नता के लिए भी किया जाता है। ऐसा माना जाता है कि इस व्रत को करने से पुत्र पर आने वाले सभी संकट दूर हो जाते हैं।

प्राचीन समय से चली आ रही एक मान्यता ऐसी भी है कि जब भी किसी बच्चे का जन्म होता है, तब पहले दिन से लेकर 6 महीने तक छठी माता ही सूक्ष्म रूप धारण कर बच्चे की देखभाल करती हैं। इसलिए बच्चे के जन्म के छठवें दिन छठी माता की पूजा की जाती है, साथ ही कई स्थानों पर भाद्रपद कृष्ण षष्ठी को माता षष्ठी की व्रत उपासना करने का भी विधान है।

क्यों मनाई जाती है बलराम जयंती? (Why is Balaram Jayanti Celebrated)


बलराम जयंती भगवान बलराम के जीवन और उनके महान कार्यों को स्मरण करने का अवसर है। उनके द्वारा किए गए कृषि कार्यों को इस दिन विशेष रूप से याद किया जाता है। उनका जीवन कड़ी मेहनत के प्रति समर्पण का प्रतीक है। इसी कारण से इस दिन को कृषि प्रधान समाज में विशेष रूप से मनाया जाता है।

बलराम जयंती का उत्सव मुख्य रूप से उत्तर भारत में मनाया जाता है, विशेषकर ब्रज क्षेत्र में भगवान बलराम के जन्म की विशेष धूम रहती है।

बलराम जयंती का व्रत कैसे करें? (Balaram Jayanti Vrat Vidhi)


बलराम जयंती का व्रत करने के लिए भक्तजन निर्जल या फलाहार व्रत रखते हैं। इस दिन व्रत रखने से जीवन में बल और धैर्य की प्राप्ति होती है। व्रत की विधि इस प्रकार है:

  • व्रत करने वाले भक्त को सूर्योदय से पहले उठकर स्नान करना चाहिए।
  • व्रत के दिन अन्न का सेवन नहीं करना चाहिए। फलों, दूध और विशेष व्रत का भोजन कर सकते हैं।
  • दिनभर भगवान बलराम के मंत्रों का जाप करना चाहिए।
  • शाम को व्रत खोलने से पहले भगवान बलराम की पूजा करनी चाहिए।
  • अगले दिन सुबह फिर से पूजा कर व्रत को समाप्त करना चाहिए।

बलराम जयंती पर पूजा कैसे करें? (Balaram Jayanti Pooja Vidhi)


  • हल षष्ठी की पूजा की विधि के अनुसार, इस दिन व्रती को सुबह ब्रह्म मुहूर्त में उठकर अगर संभव हो सके तो महुआ का दातून करके स्नान करना चाहिए।
  • इसके बाद पूजा स्थल साफ कर लें। फिर पूजा स्थल के पास की दीवार के कुछ हिस्से पर गोबर से लीपें और उसमें भैंस के घी में सिंदूर मिलाकर उससे हलषष्ठी माता का चित्र बनाएं। फिर पूजा स्थल के समीप मिट्टी का एक छोटा सा तालाब बनाकर उसमें पानी भर लें।
  • अब पलाश की टहनी, कुश और झरबेरी के झाड़ को एक साथ गांठ बांधकर हरछठ बना लें। इसके बाद बनाए हुए तालाब के पास की थोड़ी सी ज़मीन को लीपकर उस हरछठ को वहाँ लगा दें।
  • अब वहां एक चौकी रखें जिसपर मिट्टी से बनी गौरी, गणेश, शिव और कार्तिकेय की प्रतिमा को स्थापित करें। साथ ही मिट्टी के एक कलश में पानी भरकर, उसके ऊपर भी हलषष्ठी देवी का चित्र बनाएं।
  • चित्र बनाने के बाद आप मिट्टी के बर्तन में छह प्रकार का अनाज और मेवा रख लें। हरछठ पर जनेऊ का सूत्र बांधते हुए पूजा शुरू करें, और माता को हर तरह की सौभाग्य सामग्री अर्पित करें।
  • पूजन के बाद आप हरछठ की व्रत कथा सुनें और अंत में माँ की आरती उतारें। इससे पहले आपने जो हरछठ बनाया, उसको हल्दी के पानी में भिगोकर अपने संतान की कमर पर छुआ लें। मान्यता है कि यह आपके संतान के रक्षा कवच का काम करता है।
  • अंत में सभी को पूजा का प्रसाद दें। आपको बता दें हलषष्ठी देवी के प्रसाद में भुना हुआ महुआ, धान का लावा, भुना हुआ चना,गेहूं,अरहर इत्यादि शामिल कर सकते हैं। इसके साथ ही आपकी पूजा संपूर्ण होती है।

बलराम जयंती को हलछठ क्यों कहते हैं? (Why is Balaram Jayanti called Hal Chhath)


बलराम जयंती को हलछठ के नाम से भी जाना जाता है, खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में। इसका कारण यह है कि भगवान बलराम कृषि के देवता माने जाते हैं। कई घरों और किसानों के यहां इस दिन बैल और हल की पूजा का विशेष महत्व है। ऐसा इसलिए क्योंकि बलराम का मुख्य शस्त्र हल बताया गया है। इस दिन महिलाओं द्वारा केवल तालाब में उगे हुए फलों या चावलों को खाकर व्रत करने का विधान है। दरअसल, इस दिन हल से जुड़ी चीजों का सेवन वर्जित होता है और हल के बिना उपजे हुए अन्न, विशेषकर चने की पूजा की जाती है।


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