क्या आप माँ भगवती का आशीर्वाद और जीवन में सुख-शांति चाहते हैं? भगवती स्तुति से पाएं माँ का दिव्य आशीर्वाद – जानिए इसका पाठ और चमत्कारी लाभ।
भगवती स्तुति माँ दुर्गा को समर्पित स्तुति है। इस स्तुति का पाठ करने से भक्तों के दुख, बाधाएं और परेशानियाँ दूर हो जाती हैं और माता का आशीर्वाद सुख, शांति और सुरक्षा प्रदान करता है। अगर आप इस स्तुति के बारे में और अधिक जानना चाहते हैं तो हमारे इस लेख को पढ़िए, जहां आपको इस स्तुति से संबंधित सारी जानकारी एक स्थान पर मिल जाएगी।
भगवती स्तुति में देवी दुर्गा की शक्ति, महिमा और करुणा का वर्णन किया गया है। इस स्तुति में देवी के अनेक रूप और उनके दिव्य गुणों का भी वर्णन है। जो साधक भगवती स्तुति को श्रद्धा और भक्ति से पढ़ता है उस पर माँ दुर्गा की कृपा बनी रहती है। यह स्तुति दुखों को दूर करती है, मन को शक्ति देती है और जीवन में सुख-शांति लाती है।
प्रातः स्मरामि शरदिन्दुकरोज्ज्वलाभां
सद्रनवन्मकरकुण्डलहार भूषाम् ।
दिव्यायुधोर्जितसुनीलसहस्रहस्तां
रक्तोत्पलाभचरणां भवर्ती परेशाम् ॥
प्रातर्नमामि महिषासुरचण्डमुण्ड
शुम्भासुरप्रमुखदैत्यविनाशदक्षाम् ।
ब्रह्मेन्द्ररुद्रमुनिमोहनशीललीलां
चण्डी समस्तसुरमूर्तिमनेकरूपाम् ॥
प्रातर्भजामि भजतामभिलाषदात्रीं
धात्रीं समस्तजगतां दुरितापहन्त्रीम् ।
संसारबन्धनविमोचनहेतुभूतां
माया परां समधिगम्य परस्य विष्णोः ॥
।। इति श्रीदेव्याः प्रातः स्मरणं संपूर्णम्।।
त्वमेव सर्वजननी मूलप्रकृतिरीश्वरी।
त्वमेवाद्या सृष्टिविधौ स्वेच्छया त्रिगुणात्मिका॥
कार्यार्थे सगुणा त्वं च वस्तुतो निर्गुणा स्वयम्।
परब्रह्मस्वरूपा त्वं सत्या नित्या सनातनी॥
तेजःस्वरूपा परमा भक्तानुग्रहविग्रहा।
सर्वस्वरूपा सर्वेशा सर्वाधारा परात्परा॥
सर्वबीजस्वरूपा च सर्वपूज्या निराश्रया।
सर्वज्ञा सर्वतोभद्रा सर्वमङ्गलमङ्गला॥
सर्वबुद्धिस्वरूपा च सर्वशक्ति स्वरूपिणी।
सर्वज्ञानप्रदा देवी सर्वज्ञा सर्वभाविनी॥
त्वं स्वाहा देवदाने च पितृदाने स्वधा स्वयम्।
दक्षिणा सर्वदाने च सर्वशक्ति स्वरूपिणी॥
निद्रा त्वं च दया त्वं च तृष्णा त्वं चात्मनः प्रिया।
क्षुत्क्षान्तिः शान्तिरीशा च कान्तिः सृष्टिश्च शाश्वती॥
श्रद्धा पुष्टिश्च तन्द्रा च लज्जा शोभा दया तथा।
सतां सम्पत्स्वरूपा श्रीर्विपत्तिरसतामिह॥
प्रीतिरूपा पुण्यवतां पापिनां कलहाङ्कुरा।
शश्वत्कर्ममयी शक्तिः सर्वदा सर्वजीविनाम्॥
देवेभ्यः स्वपदो दात्री धातुर्धात्री कृपामयी।
हिताय सर्वदेवानां सर्वासुरविनाशिनी॥
योगनिद्रा योगरूपा योगदात्री च योगिनाम्।
सिद्धिस्वरूपा सिद्धानां सिद्धिदाता सिद्धयोगिनी॥
माहेश्वरी च ब्रह्माणी विष्णुमाया च वैष्णवी।
भद्रदा भद्रकाली च सर्वलोकभयंकरी॥
ग्रामे ग्रामे ग्रामदेवी गृहदेवी गृहे गृहे।
सतां कीर्तिः प्रतिष्ठा च निन्दा त्वमसतां सदा॥
महायुद्धे महामारी दुष्टसंहाररूपिणी।
रक्षास्वरूपा शिष्टानां मातेव हितकारिणी॥
वन्द्या पूज्या स्तुता त्वं च ब्रह्मादीनां च सर्वदा।
ब्राह्मण्यरूपा विप्राणां तपस्या च तपस्विनाम्॥
विद्या विद्यावतां त्वं च बुद्धिर्बुद्धिमतां सताम्।
मेधास्मृतिस्वरूपा च प्रतिभा प्रतिभावताम्॥
राज्ञां प्रतापरूपा च विशां वाणिज्यरूपिणी।
सृष्टौ सृष्टिस्वरूपा त्वं रक्षारूपा च पालने॥
तथान्ते त्वं महामारी विश्वस्य विश्वपूजिते।
कालरात्रिर्महारात्रिर्मोहरात्रिश्च मोहिनी॥
दुरत्यया मे माया त्वं यया सम्मोहितं जगत्।
ययामुग्धो हि विद्वांश्च मोक्षमार्गं न पश्यति॥
इत्यात्मना कृतं स्तोत्रं दुर्गाया दुर्गनाशनम्।
पूजाकाले पठेद्यो हि सिद्धिर्भवति वाञ्छिता॥
वन्ध्या च काकवन्ध्या च मृतवत्सा च दुर्भगा।
श्रुत्वा स्तोत्रं वर्षमेकं सुपुत्रं लभते ध्रुवम्॥
कारागारे महाघोरे यो बद्धो दृढबन्धने।
श्रुत्वा स्तोत्रं मासमेकं बन्धनान्मुच्यते ध्रुवम्॥
यक्ष्मग्रस्तो गलत्कुष्ठी महाशूली महाज्वरी।
श्रुत्वा स्तोत्रं वर्षमेकं सद्यो रोगात्प्रमुच्यते॥
पुत्रभेदे प्रजाभेदे पत्नीभेदे च दुर्गतः।
श्रुत्वा स्तोत्रं मासमेकं लभते नात्र संशयः॥
राजद्वारे श्मशाने च महारण्ये रणस्थले।
हिंस्त्रजन्तुसमीपे च श्रुत्वा स्तोत्रं प्रमुच्यते॥
गृहदाहे च दावाग्नौ दस्युसैन्यसमन्विते।
स्तोत्रश्रवणमात्रेण लभते नात्र संशयः॥
महादरिद्रो मूर्खश्च वर्षं स्तोत्रं पठेत्तु यः।
विद्यावान् धनवांश्चैव स भवेन्नात्र संशयः॥
जय भगवति देवी नमो वरदे
जय पापविनाशिनि बहुफलदे।
जय शुम्भनिशुम्भकपालधरे
प्रणमामि तु देवी नरार्तिहरे॥1॥
जय चन्द्रदिवाकरनेत्रधरे
जय पावकभूषितवक्त्रवरे।
जय भैरवदेहनिलीनपरे
जय अन्धकदैत्यविशोषकरे॥2॥
जय महिषविमर्दिनि शूलकरे
जय लोकसमस्तकपापहरे।
जय देवी पितामहविष्णुनते
जय भास्करशक्रशिरोवनते॥3॥
जय षण्मुखसायुधईशनुते
जय सागरगामिनि शम्भुनुते।
जय दु:खदरिद्रविनाशकरे
जय पुत्रकलत्रविवृद्धिकरे॥4॥
जय देवी समस्तशरीरधरे
जय नाकविदर्शिनि दु:खहरे।
जय व्याधिविनाशिनि मोक्षकरे
जय वाञ्छितदायिनि सिद्धिवरे॥5॥
एतद्व्यासकृतं स्तोत्रं य: पठेन्नियत: शुचि:।
गृहे वा शुद्धभावेन प्रीता भगवती सदा॥6॥
भगवती स्तुति का पाठ विधिपूर्वक करने से जीवन में समृद्धि आती है और कष्ट दूर होते हैं। नियम और श्रद्धा के साथ पाठ करने से साधक पर माता रानी की विशेष कृपा बरसती है और सभी तरह की समस्याओं से मुक्ति मिलती है। सबसे पहले ब्रह्म मुहूर्त में उठें। इसके बाद स्वच्छ मन से मां का ध्यान करें और स्नान करके साफ कपड़े पहनें। फिर पूजा स्थल को गंगाजल से शुद्ध करें और लकड़ी की चौकी पर लाल कपड़ा बिछाकर मां भगवती के चित्र या मूर्ति को विराजें। मां भगवती को लाल रंग प्रिय है।
इसलिए उन्हें लाल रंग की सामग्री अर्पण करना चाहिए। मां को कुमकुम, गुड़हल के फूल, हल्दी, धूप, दीप, नैवेद्य, नारियल, चुनरी और मिठाई अर्पित करें। इसके बाद पूरी श्रद्धा से मां की सच्चे मन से स्तुति का पाठ करें। पाठ करते समय आसपास शांति रहे इसका ध्यान रखें और मन में किसी तरह के कोई भी नकारात्मक विचार न आने दें। पाठ करने के बाद आरती, भजन करें और भोग अर्पित करें। अंत में मां भगवती से जीवन की मंगलकामना के लिए प्रार्थना करें। ध्यान रखें किसी विशेष मुहूर्त पर पूजन करने के लिए जानकारी पंडित और विशेषज्ञ से सलाह अवश्य लें और फिर पूजा को विधिपूर्वक करें ताकि पूजा सही समय पर हो और अधिक प्रभावशाली सिद्ध हो।
भगवती स्तुति के नियमित पाठ करने से जीवन में सकारात्मक परिवर्तन आते हैं और कई तरह की समस्याओं से छुटकारा मिलता है।
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