क्या शनि की साढ़ेसाती, ढैया या कार्य में रुकावटें परेशान कर रही हैं? शनि स्तुति से पाएं न्यायप्रिय शनि देव की कृपा, बाधा मुक्ति और जीवन में स्थिरता – जानिए पाठ और इसके चमत्कारी लाभ।
शनि स्तुति भगवान शनि देव को समर्पित एक भक्तिपूर्ण स्तुति है, जो उनके क्रोध को शांत करने और कृपा प्राप्त करने हेतु की जाती है। शनि स्तुति का नियमित पाठ करने से दुर्भाग्य, रोग, कर्ज और शनि की दशा में आने वाली परेशानियों से राहत मिलती है।
हिंदू धर्म में भगवान शनि को न्याय का देवता माना जाता है। वे कर्मों के अनुसार फल देने वाले ग्रहों में प्रमुख हैं। शनि देव की कृपा से जीवन में स्थिरता, संयम और सफलता प्राप्त होती है, जबकि उनकी उपेक्षा या क्रोध जीवन में बाधाएं ला सकता है। शनि स्तुति का नियमित पाठ व्यक्ति को शनि की ढैय्या, साढ़ेसाती, और अन्य दोषों से बचाता है तथा आत्मबल और मानसिक शांति प्रदान करता है।
(यह शनि स्तुति सरल भाषा में रची गई है और मूलतः भक्ति भाव को ध्यान में रखकर तैयार की गई है)
नीलांजन समाभासं, रविपुत्रं यमाग्रजम्।
छायामार्तण्ड सम्भूतं, तं नमामि शनैश्चरम्॥
दण्डधारी काषायवस्त्रधारी, श्यामवर्ण विशाल दृगधारी।
न्यायप्रिय भक्त वत्सल, संकट हारक करुणा नित धारी॥
नीलवर्ण तव रूप विशाल,
कृपा दृष्टि से हो मंगलमय हाल।
दंड धारण कर जो न्याय रचाए,
सच्चे भक्तों पर सदा छाया बनाए॥
रविपुत्र तुम तेजस्वी भारी,
क्रूर दृष्टि से हो विपदा सारी।
चर्मवस्त्र पहने, कर में दंड,
भय हरते, करते जीवन भवसंध॥
काल भयरूप, संकट हरण,
पाप विनाशक, धर्म करण।
नमन तुम्हें हे न्याय के दाता,
भक्तों के हो संकट काटा॥
अशुभ हो चाहे जीवन सारा,
तेरी कृपा से कटे अंधियारा।
चरणों में तेरे जो मन लगाता,
दुख-व्याधि जीवन से भाग जाता॥
जय शनिदेव, काल के स्वामी,
तेरे बिना न कोई मुकामी।
भूत-भविष्य पर तेरी छाया,
जो तुझे माने, वो पाए माया॥
घोड़े पर सवार, नीला परिधान,
तेरी महिमा करे समस्त जहान।
तेरे नाम का जो ध्यान लगाए,
वो हर संकट से पार हो जाए॥
शनि स्तुति का पाठ पूर्ण श्रद्धा और विधिपूर्वक करने से शनिदेव की कृपा सहज ही प्राप्त हो सकती है। नीचे दी गई विधि से पाठ करें:
शनि स्तुति का पाठ शनिवार के दिन करना अत्यंत शुभ माना जाता है। प्रातः सूर्योदय के बाद या सूर्यास्त के समय किया जाना शुभ माना जाता है।
प्रातः स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें और संयमी मन से पाठ करें।काले या नीले वस्त्र पहनना विशेष लाभकारी माना गया है।
शुद्ध पूजा स्थल, घर का मंदिर, या शनि मंदिर में बैठकर पाठ करें। पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख करके बैठना उत्तम होता है।
शनिदेव के सामने सरसों के तेल का दीपक जलाएं। साथ ही काले तिल, लोहे की वस्तु, नीले फूल आदि अर्पित करें।
स्तुति पाठ करते समय मन को शांत रखें और शुद्ध उच्चारण करें। किसी भी प्रकार की नकारात्मकता से दूर रहें।
शनिवार के दिन गरीब, विकलांग, या जरूरतमंद को काले वस्त्र, तिल, उड़द या भोजन का दान करें। शनि से संबंधित वस्तुएँ (लोहे का बर्तन, छाता, तेल) का दान विशेष फलदायक होता है।
“ॐ प्रां प्रीं प्रौं सः शनैश्चराय नमः” – 108 बार जाप करें।
शनि स्तुति का नियमित, श्रद्धापूर्वक और विधिपूर्वक पाठ करने से अनेक आध्यात्मिक, मानसिक, सामाजिक और भौतिक लाभ मिलते हैं:
सरकारी नौकरी, प्रमोशन, ट्रांसफर या व्यापार में वृद्धि के लिए लाभकारी है।
शनि स्तुति केवल भय निवारण का माध्यम नहीं है, बल्कि यह जीवन को संतुलित, अनुशासित और आध्यात्मिक रूप से समृद्ध बनाने का साधन है। शनिदेव केवल दंड नहीं देते, वे हमें हमारे कर्मों का बोध कराते हैं और सुधार का अवसर भी प्रदान करते हैं। उनका स्मरण और स्तुति व्यक्ति के भीतर आत्मविश्लेषण, सुधार और शांति का मार्ग खोलती है।
जो व्यक्ति सच्चे मन से शनिदेव का स्मरण करता है, उसका जीवन संकटों से मुक्त होकर सफलता की ओर अग्रसर होता है।
Did you like this article?
धन्वंतरि स्तुति का पाठ करने से रोगों से मुक्ति, उत्तम स्वास्थ्य और आयुर्वेदिक लाभ प्राप्त होते हैं। यहाँ पढ़ें सम्पूर्ण धन्वंतरि स्तुति हिन्दी में, लाभ और महत्व सहित।
शुक्र स्तुति का पाठ करने से वैभव, प्रेम, सौंदर्य और दांपत्य जीवन में संतुलन प्राप्त होता है। यहाँ पढ़ें सम्पूर्ण शुक्र स्तुति हिन्दी में, लाभ और महत्व सहित।
वायु स्तुति का पाठ करने से प्राण शक्ति, स्वास्थ्य और जीवन में गति व संतुलन प्राप्त होता है। यहाँ पढ़ें सम्पूर्ण वायु स्तुति हिन्दी में, लाभ और महत्व सहित।