रक्षाबंधन का इतिहास बेहद रोचक है! जानें वह पौराणिक कथा जिसमें पहली बार राखी बांधी गई और इसकी शुरुआत कैसे हुई।
रक्षा बंधन की पहली राखी की कथा महाभारत से जुड़ी है, जब द्रौपदी ने भगवान श्रीकृष्ण के घायल हाथ पर अपनी साड़ी का टुकड़ा बांधा था। तभी से यह प्रेम और सुरक्षा का प्रतीक पर्व मनाया जाता है।
रक्षाबंधन भारतीय संस्कृति का एक पवित्र और भावनात्मक पर्व है, जो भाई-बहन के प्रेम, विश्वास और रक्षा के अटूट रिश्ते को समर्पित होता है। यह हर साल श्रावण मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। ‘रक्षाबंधन’ शब्द ‘रक्षा’ (सुरक्षा) और ‘बंधन’ (बंधन या डोर) से मिलकर बना है। यह डोर केवल रेशम का धागा नहीं, बल्कि बहन के स्नेह और भाई के संकल्प का प्रतीक है।
‘पहली राखी किसने बांधी’ यह कहना कठिन है, क्योंकि इसकी जड़ें कई पौराणिक और ऐतिहासिक कथाओं में फैली हुई हैं। आइए, इस पर्व से जुड़ी प्रमुख कथाओं को जानें:
यह कथा विष्णु जी के वामन अवतार और राजा बलि से जुड़ी है। जब भगवान विष्णु राजा बलि के साथ पाताल लोक चले गए, तो देवी लक्ष्मी वैकुंठ में अकेली हो गईं। नारद मुनि के सुझाव पर उन्होंने एक गरीब स्त्री का वेश धारण किया और श्रावण पूर्णिमा के दिन बलि की कलाई पर रक्षासूत्र बांधा।
बलि ने उन्हें बहन मानकर वर मांगने को कहा। लक्ष्मी ने अपना असली रूप दिखाते हुए विष्णु जी को वापस वैकुंठ ले जाने की प्रार्थना की। राजा बलि, वचनबद्ध भक्त थे, उन्होंने अपनी बहन की इच्छा का मान रखते हुए उन्हें स्वीकृति दी।
यह कथा बताती है कि राखी केवल भाई-बहन के रिश्ते का प्रतीक नहीं, बल्कि त्याग, प्रेम और वचन की महान भावना भी है।
महाभारत काल की यह घटना रक्षाबंधन की सबसे प्रसिद्ध कहानियों में से एक है। एक बार श्रीकृष्ण की उंगली कट गई, और रक्त बहने लगा। सभी स्तब्ध थे, लेकिन द्रौपदी ने तुरंत अपनी साड़ी का एक टुकड़ा फाड़कर उनकी उंगली पर बांध दिया। इस भावनात्मक पल से अभिभूत होकर श्रीकृष्ण ने उन्हें जीवनभर रक्षा करने का वचन दिया।
यह वचन तब सार्थक हुआ जब द्रौपदी का चीरहरण हुआ। उस समय श्रीकृष्ण ने अपने वचन को निभाते हुए उसकी साड़ी को अनंत कर दिया और उसकी लाज बचाई। यह कथा स्पष्ट करती है कि रक्षाबंधन केवल रक्त संबंधों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह प्रेम, निस्वार्थ समर्पण और निभाए गए वचनों का प्रतीक भी है।
यह कहानी ऐतिहासिक है, जो ईसा पूर्व 326 में अलेक्जेंडर (सिकंदर) के भारत आक्रमण के समय की है। जब अलेक्जेंडर की सेना और पोरस (राजा पुरु) की सेना के बीच भयानक युद्ध होने वाला था, तब अलेक्जेंडर की पत्नी रुक्साना ने राजा पुरु को एक राखी भेजी थी। रुक्साना ने राजा पुरु से अनुरोध किया था कि युद्ध के दौरान वे उनके पति अलेक्जेंडर को कोई नुकसान न पहुँचाएँ।
राजा पुरु एक वीर और सिद्धांतों वाले योद्धा थे। उन्होंने रुक्साना की राखी का सम्मान किया और उसे अपनी बहन मान लिया। जब युद्ध शुरू हुआ और राजा पुरु का अलेक्जेंडर से आमना-सामना हुआ, तो राजा पुरु ने अपनी बहन को दिए वचन को याद रखा। उन्होंने अलेक्जेंडर को कोई नुकसान नहीं पहुँचाया, यहाँ तक कि जब उन्हें उसे पराजित कर समाप्त करने का पूरा अवसर मिला, तब भी उन्होंने अपने वचन का सम्मान करते हुए ऐसा नहीं किया। यह घटना इस बात का प्रमाण है कि राखी का बंधन धर्म, करुणा और मर्यादा से भी जुड़ा होता है यह दुश्मनों को भी भाई बना सकता है।
इन कथाओं से स्पष्ट होता है कि ‘पहली राखी’ का उल्लेख किसी एक निश्चित घटना में नहीं मिलता, बल्कि यह परंपरा सदियों से भारत के पौराणिक, धार्मिक और ऐतिहासिक ग्रंथों में अलग-अलग रूपों में प्रकट होती रही है।
कभी यह द्रौपदी और कृष्ण के रूप में भावनात्मक जुड़ाव बनती है, तो कभी लक्ष्मी और बलि के रूप में धर्म और वचनबद्धता की मिसाल बन जाती है। कभी राजा पुरु और रुक्साना के रूप में यह सांस्कृतिक आदान-प्रदान और विश्वास का स्वरूप लेती है।
रक्षाबंधन आज केवल पारंपरिक त्योहार नहीं रहा। यह एक ऐसा दिन है जब भाई-बहन एक-दूसरे के प्रति अपने प्रेम, जिम्मेदारी और सुरक्षा के वचनों को दोहराते हैं। बहनें यह पर्व भाई की लंबी उम्र और सफलता की प्रार्थना के साथ मनाती हैं, वहीं भाई भी यह संकल्प लेते हैं कि वे अपनी बहन की हर परिस्थिति में रक्षा करेंगे। यह पर्व बच्चों को भारतीय संस्कृति, परिवारिक मूल्यों और रिश्तों की महत्ता सिखाने का अवसर भी बनता है। यह सिखाता है कि रिश्ते केवल खून के नहीं, भावना और संस्कारों से भी बनते हैं।
रक्षाबंधन केवल राखी बांधने या उपहार लेने-देने का पर्व नहीं है। यह पर्व उन गहरे भावों का उत्सव है जो भाई-बहन को जीवनभर जोड़ते हैं। इन पौराणिक और ऐतिहासिक कथाओं के माध्यम से हम यह समझते हैं कि राखी का बंधन निस्वार्थ प्रेम, त्याग, कर्तव्य और सम्मान का प्रतीक है।
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