तीसरा श्राद्ध 2025 कब है? यहां जानें इसकी सही तिथि, पूजा विधि और महत्व। पितरों की कृपा और जीवन में सुख-समृद्धि पाने के लिए श्राद्ध करने का महत्व।
तीसरे श्राद्ध का आयोजन पितृपक्ष के तीसरे दिन किया जाता है। यह श्राद्ध उन पितरों के लिए होता है जिनकी मृत्यु भाद्रपद शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को हुई हो। इस दिन परिवारजन तर्पण, पिंडदान और ब्राह्मण भोजन कराते हैं।
आश्विन मास की तृतीया तिथि को किए जाने वाले श्राद्ध को तृतीया श्राद्ध कहते हैं। ये श्राद्ध बोधगया के धर्मारण्य, मातंगवापी व सरस्वती वेदी पर करना उपयुक्त माना गया है। मान्यता है कि बोधगया में तृतीया श्राद्ध करने के बाद मतंगेश्वर महादेव के दर्शन जरूर करना चाहिए। हालांकि यदि आपका यहां जाना संभव नहीं है तो आप अपने घर पर भी विधि-विधान से तृतीया श्राद्ध कर सकते हैं, और मन में ही मतंगेश्वर महादेव का स्मरण कर सकते हैं।
जिन पूर्वजों की मृत्यु तृतीया तिथि पर हुई है, तृतीया श्राद्ध उनके लिए विशेष महत्वपूर्ण है। तृतीया श्राद्ध अभिजित, कुतुप या रौहिण मुहूर्त में करना उपयुक्त माना जाता है। शास्त्रीय मान्यताओं के अनुसार पितृ पक्ष में किए गए श्राद्ध, पिंडदान व तर्पण से न केवल पितरों की आत्मा को शांति मिलती है, बल्कि श्राद्ध करने वाले परिवार में भी सुख-समृद्धि, उत्तम संतान की प्राप्ति, पारिवारिक सामंजस्य और नौकरी-व्यापार में तरक्की बनी रहती है
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