क्या आप जानते हैं नवरात्रि में माता शैलपुत्री का प्रिय रंग कौन सा है और भक्त इस रंग का प्रयोग क्यों करते हैं? यहाँ पढ़ें आसान भाषा में पूरी जानकारी।
माँ शैलपुत्री का प्रिय रंग लाल माना जाता है। नवरात्रि के प्रथम दिन साधक इस रंग के वस्त्र पहनकर पूजा करते हैं। लाल रंग ऊर्जा, साहस और शक्ति का प्रतीक है, जिससे भक्तों को आत्मबल और सकारात्मकता प्राप्त होती है।
नवरात्रि के पहले दिन माता शैलपुत्री की पूजा होती है। पौराणिक कथा के अनुसार, वे पूर्व जन्म में राजा दक्ष की पुत्री सती थीं। सती ने भगवान शिव से विवाह किया था। लेकिन एक बार जब राजा दक्ष ने भगवान शिव का अपमान किया, तो सती ने उसी यज्ञ कुंड में प्रवेश कर अपने प्राण त्याग दिए। अगले जन्म में उन्होंने हिमालय की पुत्री रूप में जन्म लिया और शैलपुत्री के नाम से प्रसिद्ध हुईं।
माता शैलपुत्री भगवान शिव की अर्धांगिनी हैं। उनके स्वरूप की बात करें तो देवी पुराण में इसका विस्तृत वर्णन मिलता है। माँ शैलपुत्री वृषभ (बैल) पर विराजमान रहती हैं, इसलिए देवी वृषारूढ़ा भी कहा जाता है। उनके दाहिने हाथ में त्रिशूल और बाएँ हाथ में कमल का पुष्प सुशोभित रहता है। यह स्वरूप अत्यंत सरल, शांत और दिव्य आभा से युक्त है।
धार्मिक मान्यता है कि शैलपुत्री माता का प्रिय रंग सफेद रंग है। यह रंग पवित्रता, शांति और सात्त्विकता का प्रतीक माना जाता है। यही कारण है कि भक्त नवरात्रि के पहले दिन सफेद वस्त्र पहनकर उनकी पूजा करते हैं।
जिस प्रकार दूध, दही, अक्षत और गंगाजल का रंग सफेद होता है और ये हर शुभ कार्य में प्रयोग होते हैं, उसी तरह सफेद वस्त्र धारण करके माता की पूजा करना भी बहुत शुभ और मंगलकारी माना जाता है।
पवित्रता का प्रतीक: सफेद रंग मनुष्य के भीतर की शुद्धता और सादगी को दर्शाता है। मान्यता है कि सफेद वस्त्र धारण करने से पूजा अधिक सात्त्विक हो जाती है।
शांति और संयम का प्रतीक: सफेद रंग मन को शांत करता है और गुस्सा या बेचैनी को कम करता है। शैलपुत्री माता वृषभ पर सवार हैं, और वृषभ धैर्य का प्रतीक है। इसलिए सफेद वस्त्र पहनकर उनकी पूजा करने से भक्त में धैर्य और संतुलन की भावना आती है।
चंद्रमा से संबंध: पौराणिक मान्यता है कि शैलपुत्री माता चंद्रमा की अधिष्ठात्री देवी हैं। चंद्रमा शीतलता और शांति देता है और उसका रंग भी सफेद है। इसीलिए सफेद रंग को माता से जोड़ा गया है। इसे पहनकर पूजा करने से मानसिक तनाव कम होता है और मन प्रसन्न रहता है।
आध्यात्मिक महत्व: योग शास्त्रों में शैलपुत्री माता को मूलाधार चक्र की देवी बताया गया है। साधना में सफलता के लिए यह चक्र बहुत महत्वपूर्ण है। सफेद रंग इस चक्र की शुद्धता और जागरण का प्रतीक माना गया है। इसलिए साधक अगर सफेद वस्त्र पहनकर पूजा करें तो उनकी साधना अधिक फलदायी होती है।
नवरात्रि के पहले दिन सफेद वस्त्र धारण करके शैलपुत्री माता की पूजा करने से भक्त को कई प्रकार के लाभ मिलते हैं।
मन की शांति: सफेद रंग धारण करने से मन शांत और स्थिर रहता है। जो लोग मानसिक तनाव या बेचैनी महसूस करते हैं, उनके लिए यह बहुत लाभकारी है।
परिवार में सुख-समृद्धि: माता शैलपुत्री गृहस्थ जीवन की संरक्षिका मानी जाती हैं। उनकी पूजा सफेद वस्त्र पहनकर करने से घर-परिवार में सुख-शांति और समृद्धि आती है।
साधना और भक्ति में सफलता: सफेद वस्त्र साधक की एकाग्रता को बढ़ाते हैं। इससे पूजा और ध्यान दोनों अधिक सफल होते हैं।
कष्टों से मुक्ति: मान्यता है कि सफेद वस्त्र पहनकर माता की आराधना करने से शारीरिक और मानसिक परेशानियाँ दूर होती हैं।
विवाह और संतान सुख: माता शैलपुत्री की कृपा से विवाह में आ रही बाधाएँ दूर होती हैं और संतान सुख की प्राप्ति होती है। भक्त सच्चे मन से सफेद वस्त्र पहनकर प्रार्थना करें तो उनकी मनोकामना पूरी होती है।
सफेद वस्त्र: सबसे उत्तम यही है कि भक्त इस दिन सफेद रंग के कपड़े पहनें। पुरुष सफेद कुर्ता-पायजामा या धोती पहन सकते हैं, जबकि महिलाएँ सफेद साड़ी या सलवार-सूट पहन सकती हैं।
सादगी का ध्यान रखें: माता शैलपुत्री सादगी की देवी हैं, इसलिए इस दिन बहुत चमकीले या भारी कपड़े पहनने से बचना चाहिए।
हल्के आभूषण: पूजा के समय बहुत अधिक गहनों की बजाय हल्के आभूषण पहनना या केवल तिलक व माला धारण करना उपयुक्त माना जाता है।
सफेद फूल: पूजा में सफेद फूल अर्पित करना और संभव हो तो बालों में भी सफेद फूल लगाना माता के प्रति अर्पण की भावना का प्रतीक है।
स्वच्छता और पवित्रता: सबसे ज़रूरी है कि भक्त स्नान करके साफ़ और पवित्र वस्त्र पहनें। माता की पूजा में बाहरी साज-सज्जा से ज़्यादा महत्व मन और शरीर की पवित्रता का है।
नवरात्रि का पहला दिन ‘माँ शैलपुत्री’ को समर्पित है। उनका प्रिय रंग सफेद है, जो शांति, पवित्रता और सात्त्विकता का प्रतीक है। मान्यता है कि भक्तों द्वारा इस दिन सफेद वस्त्र पहनकर श्रद्धापूर्वक माता शैलपुत्री की पूजा करने से वे प्रसन्न होकर अपने भक्तों को सुख, शांति और समृद्धि का आशीर्वाद देती हैं।
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