क्या आप जानते हैं माँ ब्रह्मचारिणी को कौन सा भोग अर्पित करने से देवी प्रसन्न होती हैं और भक्तों को क्या फल प्रदान करती हैं? यहाँ पढ़ें पूरी जानकारी सरल शब्दों में।
माँ ब्रह्मचारिणी को शक्कर (चीनी) का भोग सबसे प्रिय माना गया है। नवरात्रि के दूसरे दिन माता को शक्कर अर्पित करने से साधक को संयम, धैर्य और तपस्या की शक्ति प्राप्त होती है। इस भोग से दीर्घायु और सुख-शांति का आशीर्वाद भी मिलता है।
नवरात्रि के नौ दिनों का महापर्व आत्म-शुद्धि, भक्ति और शक्ति का प्रतीक है। इस पावन पर्व के दूसरे दिन देवी दुर्गा के दूसरे स्वरूप माँ ब्रह्मचारिणी की पूजा की जाती है। ‘ब्रह्मचारिणी’ शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है: ‘ब्रह्म’ जिसका अर्थ है तपस्या और ‘चारिणी’ जिसका अर्थ है आचरण करने वाली। इस प्रकार, माँ ब्रह्मचारिणी का अर्थ है तपस्या का आचरण करने वाली देवी। उनका यह रूप तप, त्याग, वैराग्य और संयम का प्रतीक है।
माँ ब्रह्मचारिणी, देवी पार्वती का अविवाहित रूप हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार, उन्होंने भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए कठोर तपस्या की थी। जब वे अपने पिछले जन्म में सती के रूप में थीं और उन्होंने यज्ञ में अपने प्राणों की आहुति दे दी, तब अगले जन्म में उन्होंने हिमालयराज के घर पुत्री के रूप में जन्म लिया।
इस जन्म में, उन्होंने भगवान शिव से विवाह करने का प्रण लिया। अपने इस संकल्प को पूरा करने के लिए उन्होंने हजारों वर्षों तक कठोर तपस्या की। इस तपस्या के दौरान उन्होंने केवल फल, फूल और पत्ते खाए, और अंत में केवल सूखे बेलपत्रों पर निर्वाह किया। उनकी कठोर तपस्या से देवता भी अचंभित थे। अंत में, उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान ब्रह्मा ने उन्हें दर्शन दिए और वरदान दिया कि उनकी इच्छा अवश्य पूर्ण होगी। अपनी तपस्या के कारण ही उन्हें ‘ब्रह्मचारिणी’ के नाम से जाना गया।
माँ ब्रह्मचारिणी का स्वरूप अत्यंत शांत और सौम्य है। वह श्वेत वस्त्र धारण किए हुए हैं। उनके दाहिने हाथ में जप की माला और बाएं हाथ में कमंडल है। यह स्वरूप हमें यह सिखाता है कि जीवन में सफलता पाने के लिए कठिन परिश्रम, धैर्य और अनुशासन आवश्यक है।
नवरात्रि के दूसरे दिन माँ ब्रह्मचारिणी को भोग लगाने का एक विशेष विधान है। इस दिन देवी को शक्कर, सफेद मिठाई, मिश्री और पंचामृत का भोग लगाना अत्यंत शुभ माना जाता है।
पूजा में भोग का महत्व सिर्फ भोजन अर्पित करने तक सीमित नहीं है। यह हमारी श्रद्धा, प्रेम और समर्पण का प्रतीक है। जब हम कोई वस्तु ईश्वर को अर्पित करते हैं, तो हम यह दर्शाते हैं कि हम अपनी कमाई और जीवन का हर फल सर्वप्रथम ईश्वर को समर्पित करते हैं।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, भोग लगाने से देवी-देवता प्रसन्न होते हैं और भक्तों को उनके प्रयासों का आशीर्वाद देते हैं। माँ ब्रह्मचारिणी को शक्कर और पंचामृत का भोग लगाने से यह माना जाता है कि देवी को भोग अर्पित करने से वे उनकी तपस्या से उत्पन्न शक्ति और पवित्रता से प्रसन्न होती हैं। इस भोग को लगाने से भक्त को मानसिक शांति, आध्यात्मिक विकास और शारीरिक ऊर्जा मिलती है, जो नवरात्रि के नौ दिवसीय उपवास को सफलतापूर्वक पूरा करने में सहायक होती है।
नवरात्रि के दूसरे दिन माँ ब्रह्मचारिणी की पूजा विधि-विधान से करनी चाहिए:
माँ ब्रह्मचारिणी की पूजा करने से भक्तों को कई लाभ प्राप्त होते हैं:
आत्म-नियंत्रण: उनकी पूजा से व्यक्ति में आत्म-नियंत्रण, अनुशासन और इच्छाशक्ति बढ़ती है, जिससे वह अपने लक्ष्यों को प्राप्त कर सकता है। मानसिक शांति: माँ ब्रह्मचारिणी मन को शांत और एकाग्र करती हैं, जिससे तनाव और चिंता दूर होती है। सकारात्मक ऊर्जा: उनकी कृपा से जीवन में सकारात्मकता और धैर्य आता है। साहस और शक्ति: माँ ब्रह्मचारिणी की पूजा से व्यक्ति में साहस और आंतरिक शक्ति का संचार होता है। मोक्ष की प्राप्ति: आध्यात्मिक साधकों के लिए, उनकी पूजा से मोक्ष का मार्ग प्रशस्त होता है।
नवरात्रि का दूसरा दिन हमें यह सिखाता है कि जीवन में सफलता और आध्यात्मिकता का मार्ग तपस्या और अनुशासन से होकर गुजरता है। माँ ब्रह्मचारिणी की पूजा करके हम न केवल उनका आशीर्वाद प्राप्त करते हैं, बल्कि उनके गुणों को अपने जीवन में भी उतारने का प्रयास करते हैं। उनकी कृपा से व्यक्ति अपने सभी कष्टों और बाधाओं को दूर कर एक शांत, सफल और सुखी जीवन व्यतीत कर सकता है।
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