क्या आप जानते हैं माँ कात्यायनी किसकी प्रतीक मानी जाती हैं और उनके स्वरूप में क्या विशेषताएँ छिपी हैं? यहाँ पढ़ें देवी कात्यायनी के प्रतीकात्मक अर्थ की पूरी जानकारी।
मां दुर्गा का छठा स्वरुप मानी जाने वाली 'माता कात्यायनी' ने अपने रौद्र स्वरूप से महिषासुर जैसी आसुरी शक्तियों का संहार किया। लेकिन माँ अपने भक्तों के लिए करुणामयी और प्रेम की मूर्ति भी हैं। इस लेख में हम विस्तार से जानेंगे कि माँ कात्यायनी किसका प्रतीक हैं, उनके साहस से जुड़े तथ्य, भक्तों के जीवन पर उनका प्रभाव, उनसे जुड़ी मान्यताएँ और पूजा विधि।
माँ कात्यायनी शक्ति, साहस और धर्म की रक्षा की प्रतीक मानी जाती हैं। "कात्यायनी" नाम का अर्थ है कात्यायन नामक ऋषि की पुत्री। पुराणों के अनुसार, ऋषि कात्यायन ने घोर तपस्या कर माँ भगवती से वर माँगा था कि वे उनकी पुत्री रूप में जन्म लें। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर माँ ने उनके घर जन्म लिया और इस प्रकार वे कात्यायनी देवी कहलाईं।
माँ कात्यायनी न्याय, धर्म और साहस का प्रतीक हैं। वे हमें यह संदेश देती हैं कि जीवन में चाहे कितनी भी कठिनाइयाँ क्यों न हों, सच्चाई और धर्म का मार्ग ही अंततः विजय दिलाता है। उनका स्वरूप नारी शक्ति का सबसे प्रखर रूप माना जाता है, जो एक ओर ममता और करुणा से भरा है, तो दूसरी ओर अन्याय का नाश करने में भी सक्षम है।
माँ कात्यायनी का स्वरूप अत्यंत तेजस्वी और वीरतापूर्ण है। वे सिंह पर सवार रहती हैं और उनके चारों भुजाओं में कमल, तलवार, वरमुद्रा और अभयमुद्रा होती है।
वे ब्रजभूमि की अधिष्ठात्री देवी मानी जाती हैं। ऐसा विश्वास है कि राधा और ब्रज की गोपियाँ भगवान श्रीकृष्ण को अपने पति रूप में पाने के लिए माँ कात्यायनी का पूजन करती थीं।
माँ कात्यायनी का रौद्र रूप असुरों का नाश करता है, जबकि उनका ममतामयी रूप भक्तों को प्रेम और सुख प्रदान करता है।
शक्ति रूप में वे हमें साहस सिखाती हैं कि अन्याय सहना भी पाप है और हमें सदैव अपने धर्म और सत्य की रक्षा करनी चाहिए।
माँ कात्यायनी की पूजा से साधक के भीतर निर्भयता और कठिन परिस्थितियों का सामना करने की सामर्थ्य मिलती है।
कात्यायनी माता का नाम ‘महायोगिनी’ के रूप में भी प्रसिद्ध है, क्योंकि उनकी कृपा से साधक कठिन योग-साधनाओं में सिद्धि प्राप्त करता है।
भय का नाश: भक्त के जीवन से भय और असुरक्षा की भावना दूर होती है। जो लोग हर समय चिंता और डर से घिरे रहते हैं, उन्हें माँ कात्यायनी की उपासना से मानसिक शांति मिलती है।
धैर्य व साहस की प्राप्ति: कठिन समय में भी माँ का आशीर्वाद भक्त को डगमगाने नहीं देता। व्यक्ति का आत्मविश्वास बढ़ता है।
कुंवारी कन्याओं का विवाह: शास्त्रों में वर्णन है कि कुंवारी कन्याएँ यदि माँ कात्यायनी का पूजन करें तो उन्हें योग्य वर की प्राप्ति होती है। यह परंपरा आज भी ब्रज में विशेष रूप से प्रचलित है।
आध्यात्मिक उन्नति: जो साधक योग साधना या आत्मज्ञान की राह पर चलते हैं, उनके लिए माँ कात्यायनी की कृपा अत्यंत सहायक होती है।
धन और सुख-संपत्ति: माता कात्यायनी की कृपा से भक्तों की गृहस्थी में सुख-शांति बनी रहती है और समृद्धि का वास होता है।
ब्रज की अधिष्ठात्री देवी
श्रीमद्भागवत महापुराण के अनुसार, माँ कात्यायनी को ब्रजभूमि की अधिष्ठात्री देवी माना जाता है, अर्थात् माता कात्यायनी सम्पूर्ण वृंदावन, मथुरा और गोकुल की रक्षा करती हैं। इसलिए वृंदावन और मथुरा में उनकी विशेष पूजा की परंपरा है।
गोपियों द्वारा पूजा
भागवत कथा में उल्लेख है कि ब्रज की गोपियाँ मार्गशीर्ष मास में कात्यायनी माता का व्रत करती थीं। वे प्रातः काल यमुना में स्नान करतीं, मिट्टी की मूर्ति बनाकर माँ कात्यायनी की पूजा करतीं और उनसे भगवान श्री कृष्ण को पति रूप में पाने की कामना करतीं। इसी मान्यता के आधार पर आज भी कुंवारी कन्याएँ योग्य वर की प्राप्ति के लिए माँ कात्यायनी की पूजा करती हैं।
असुर संहार से जुड़ी मान्यता
पुराणों में वर्णन मिलता है कि महिषासुर के अत्याचार तीनों लोकों में भय व्याप्त हो गया था। तब सभी देवों ने मिलकर माँ कात्यायनी की आराधना की। ब्रह्मांड को भयमुक्त करने के लिए देवी ने कात्यायन ऋषि के घर जन्म लिया और महिषासुर का संहार कर धर्म की रक्षा की। इसीलिए माँ कात्यायनी को अन्याय और अधर्म का नाश करने वाली देवी कहा जाता है।
चारों पुरुषार्थों की प्राप्ति
मान्यता है कि माँ कात्यायनी की पूजा करने वाले भक्त को धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष, ये चारों पुरुषार्थ सहज ही प्राप्त होते हैं।
विवाह संबंधी मान्यता
कात्यायनी माता की एक विशेष मान्यता यह भी है कि जिन कन्याओं का विवाह बाधित हो रहा हो या उन्हें योग्य वर नहीं मिल रहा हो, वे यदि श्रद्धा से उनकी पूजा करें तो विवाह के मार्ग में आने वाली रुकावटें दूर होती हैं। वहीं जो लोग विवाहित हैं, उनके जीवन में भी सौभाग्य बना रहता है।
ग्रहदोष और पारिवारिक समस्याएँ
ज्योतिष के अनुसार, माँ कात्यायनी की कृपा से ग्रहदोष और वैवाहिक जीवन की परेशानियाँ भी दूर होती हैं। विशेषकर जिन लोगों की कुंडली में विवाह से जुड़े दोष होते हैं, उन्हें माँ कात्यायनी की आराधना से लाभ होता है।
प्रातः स्नान करके पीले या लाल वस्त्र पहनें।
पूजा स्थान को साफ कर देवी का चित्र या मूर्ति स्थापित करें।
माँ को पीले या लाल फूल अर्पित करें। पीला और लाल रंग दोनों ही माँ को अत्यंत प्रिय हैं।
धूप, दीप, नैवेद्य और चंदन से पूजा करें।
माँ को शहद का भोग अर्पित करना शुभ माना जाता है।
कात्यायनी स्तुति, कवच या दुर्गा सप्तशती का पाठ करें।
अंत में माँ से अपने भय और दुःख दूर करने की प्रार्थना करें और परिवार की रक्षा का आशीर्वाद माँगें।
ये थी ‘माँ कात्यायनी’ के स्वरूप, महत्व और उनकी पूजा-विधि से जुड़ी विशेष जानकारी। देवी कात्यायनी की आराधना से जातक के सभी भय और अड़चनें दूर होती हैं तथा परिवार में सुख-शांति और समृद्धि का वास होता है।
Did you like this article?
नवरात्रि के सातवें दिन पूजित माता कालरात्रि अंधकार और बुराई नाश की देवी मानी जाती हैं। जानिए माता कालरात्रि किसका प्रतीक हैं और उनके स्वरूप का धार्मिक महत्व।
नवरात्रि के सातवें दिन पूजित कालरात्रि माता का प्रिय रंग कौन सा है? जानिए कालरात्रि माता का पसंदीदा रंग और इसका धार्मिक व प्रतीकात्मक महत्व।
नवरात्रि के सातवें दिन पूजित माता कालरात्रि का बीज मंत्र अत्यंत शक्तिशाली माना जाता है। जानिए माता कालरात्रि का बीज मंत्र, उसका सही उच्चारण और जाप से मिलने वाले लाभ।