
क्या आप जानते हैं उत्तरायण 2026 कब है? जानिए इस शुभ पर्व की तिथि, पूजा विधि, मुहूर्त और इसके धार्मिक व सांस्कृतिक महत्व से जुड़ी पूरी जानकारी – सब कुछ एक ही जगह!
उत्तरायण एक महत्वपूर्ण खगोलीय समय है, जब सूर्य दक्षिण दिशा से उत्तर दिशा की ओर बढ़ना शुरू करता है। यह काल हर साल मकर संक्रांति के दिन, यानी 14 जनवरी से शुरू होकर 21 जून तक रहता है। इस समय सूर्य मकर रेखा से कर्क रेखा की ओर जाता है। इसे प्रकाश और ऊर्जा का समय माना जाता है। धार्मिक रूप से यह अवधि बहुत शुभ मानी जाती है, क्योंकि यह सूर्य देव की उत्तर दिशा में यात्रा और नई ऊर्जा व जागृति का प्रतीक है।
मकर संक्रांति को गुजरात में उत्तरायण के नाम से जाना जाता है। यह राज्य का एक प्रमुख पर्व है, जो दो दिनों तक बड़े उत्साह से मनाया जाता है। पहले दिन को उत्तरायण और दूसरे दिन को वासी उत्तरायण या बासी उत्तरायण कहा जाता है। यह पर्व सूर्य देव को समर्पित है और अत्यंत शुभ अवसर माना जाता है। साल 2026 में उत्तरायण बुधवार, 14 जनवरी को मनाई जाएगी।
इस समय सूर्य धनु राशि से निकलकर मकर राशि में प्रवेश करता है, जिसे सूर्य का उत्तर दिशा में गमन कहा जाता है। यह अवधि प्रकाश, ऊर्जा और नई शुरुआत का प्रतीक मानी जाती है।
देवताओं का दिन आरंभ होता है- मान्यता है कि मकर संक्रांति के दिन से देवताओं का दिन शुरू होता है, जिसे उत्तरायण कहा जाता है। यह काल छह माह तक चलता है और देवताओं के लिए यह दिन का समय होता है।
मोक्ष प्राप्ति का शुभ समय- कहा जाता है कि उत्तरायण काल में यदि कोई व्यक्ति देह त्यागता है, तो उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है और उसे पुनर्जन्म नहीं लेना पड़ता।
भीष्म पितामह की कथा- महाभारत के अनुसार, भीष्म पितामह ने अपने प्राण त्यागने से पहले सूर्य के उत्तरायण होने की प्रतीक्षा की थी। जब सूर्य उत्तर दिशा की ओर बढ़ा, तभी उन्होंने श्रीकृष्ण की उपस्थिति में अपने प्राण त्यागे।
सकारात्मकता और प्रकाश का प्रतीक- उत्तरायण को ज्ञान, ऊर्जा, और सकारात्मकता का काल माना गया है। इस समय सूर्य की किरणें उत्तरी गोलार्ध में अधिक पड़ती हैं, जिससे दिन लंबे और प्रकाश अधिक होता है।
धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व- इस काल में किए गए दान, स्नान, और पूजा का विशेष फल मिलता है। इसलिए मकर संक्रांति के दिन गंगा स्नान, सूर्य पूजा और दान करने की परंपरा है।
हिंदू धर्म में उत्तरायण काल को अत्यंत शुभ और पवित्र माना गया है। मान्यता है कि मकर संक्रांति से देवताओं का दिन आरंभ होता है, जो आषाढ़ महीने तक चलता है। इसके विपरीत, जब सूर्य दक्षिणायन में होता है, तो वह अवधि देवताओं की रात्रि मानी जाती है।
इसका अर्थ यह है कि देवताओं का एक दिन और एक रात मनुष्यों के पूरे एक वर्ष के बराबर होती है। इसी प्रकार, मनुष्यों का एक माह, पितरों के एक दिन के समान माना गया है।
धार्मिक दृष्टि से, उत्तरायण को सकारात्मकता, प्रकाश और आध्यात्मिक जागरण का प्रतीक माना गया है, जबकि दक्षिणायन को अंधकार और नकारात्मकता से जोड़ा गया है।
महाभारत की एक प्रसिद्ध कथा के अनुसार, भीष्म पितामह जिन्हें इच्छा मृत्यु का वरदान प्राप्त था, उन्होंने अपने प्राण त्यागने से पहले सूर्य के उत्तरायण होने का इंतजार किया। जब सूर्य उत्तर दिशा की ओर गति करने लगे, तब उन्होंने भगवान श्रीकृष्ण के उपदेश के अनुसार अपने प्राण त्यागे।
भगवान श्रीकृष्ण ने बताया था कि जब सूर्य उत्तरायण काल में होता है, उस समय पृथ्वी प्रकाशमय और ऊर्जावान होती है। इस काल में जो व्यक्ति देह त्यागता है, वह मोक्ष प्राप्त करता है और पुनर्जन्म से मुक्त हो जाता है।
इस घटना से यह स्पष्ट होता है कि उत्तरायण काल केवल खगोलीय दृष्टि से ही नहीं, बल्कि आध्यात्मिक और मोक्ष प्राप्ति की दृष्टि से भी अत्यंत महत्वपूर्ण माना गया है। इसी कारण से, उत्तरायण को आध्यात्मिक उन्नति, ज्ञान, और मुक्ति का काल माना जाता है।
उत्तरायण केवल एक खगोलीय घटना नहीं, बल्कि प्रकाश, सकारात्मक सोच और आत्मिक जागरण का प्रतीक है। यह काल हमें प्रेरित करता है कि जैसे सूर्य उत्तर दिशा की ओर बढ़कर संसार को उजाला देता है, वैसे ही हमें भी अपने जीवन में ज्ञान, प्रेम और सद्भावना का प्रकाश फैलाना चाहिए। धार्मिक दृष्टि से यह समय अत्यंत पवित्र माना गया है। इस अवधि में किया गया स्नान, दान और पूजा शुभ फल प्रदान करते हैं और मन को शांति देते हैं। इस प्रकार, उत्तरायण हमें नव ऊर्जा, नई शुरुआत और आध्यात्मिक प्रगति की दिशा में आगे बढ़ने का संदेश देता है।
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