
क्या आप जानते हैं ललिता जयंती 2026 कब है? यहां जानें तिथि, पूजा विधि, मुहूर्त, माता ललिता त्रिपुरा सुंदरी की आराधना का महत्व और इस दिन किए जाने वाले विशेष धार्मिक कार्य — सब कुछ एक ही जगह!
माघ मास की पूर्णिमा तिथि को देवी उपासना का एक अत्यंत शुभ पर्व आता है ‘ललिता जयंती’। यह दिन मां शक्ति के सर्वोत्तम स्वरूपों में से एक मां ललिता त्रिपुरा सुंदरी को समर्पित है। वे न सिर्फ सौंदर्य और प्रेम की अधिष्ठात्री देवी हैं, बल्कि शक्ति, ज्ञान और मोक्ष की दात्री भी मानी जाती हैं। इस दिन मां ललिता के जन्मोत्सव की पूजा-अर्चना पूरे भक्ति भाव से की जाती है।
वर्ष 2026 में ललिता जयंती 01 फरवरी, रविवार को मनाई जाएगी। इस वर्ष पूर्णिमा तिथि 01 फरवरी की सुबह 5 बजकर 52 मिनट से प्रारंभ होकर 02 फरवरी की सुबह 03 बजकर 38 मिनट तक रहेगी।
इस तिथि का अत्यंत धार्मिक और तांत्रिक महत्व है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन मां ललिता का अवतरण हुआ था ताकि संसार में फैले अंधकार, अधर्म और अहंकार का नाश हो सके तथा भक्तों के जीवन में प्रेम, सौंदर्य और संतुलन की स्थापना हो।
मां ललिता को दस महाविद्या की देवियों में से एक माना गया है। वे त्रिपुरा सुंदरी के नाम से भी विख्यात हैं, जिसका अर्थ है “तीनों लोकों की सबसे सुंदर और शक्तिशाली देवी”। उनका स्वरूप कोमल है परंतु जब अधर्म बढ़ता है तो वे क्रोध-रूपिणी होकर राक्षसों का संहार करती हैं। वे ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों की ऊर्जा का संयुक्त रूप हैं। कहा जाता है कि मां ललिता की आराधना करने से मनुष्य को भुक्ति (भोग) और मुक्ति (मोक्ष) दोनों की प्राप्ति होती है।
इस दिन की पूजा से मन की नकारात्मकता मिटती है, गृहकलह शांत होते हैं और जीवन में सौंदर्य, शांति व सुख का संचार होता है। जो व्यक्ति भक्ति-भाव से मां ललिता की उपासना करता है, उसकी इच्छाएँ पूर्ण होती हैं और जीवन में सफलता के द्वार खुलते हैं।
कहा जाता है कि एक बार राजा दक्ष ने एक भव्य यज्ञ का आयोजन किया था, जिसमें उन्होंने अपने दामाद भगवान शिव को आमंत्रित नहीं किया। सती माता (जो भगवान शिव की पत्नी थीं) अपने पिता के यज्ञ में बिना निमंत्रण के पहुंच गईं, लेकिन वहां उन्हें अपमानित किया गया। पिता के इस व्यवहार से आहत होकर सती ने यज्ञ कुंड में कूदकर आत्मदाह कर लिया।
जब भगवान शिव को यह समाचार मिला, तो वे दुःख और क्रोध से भर उठे। उन्होंने सती के शरीर को अपने कंधे पर उठाया और तांडव करने लगे, जिससे संपूर्ण ब्रह्मांड में हाहाकार मच गया। सृष्टि को विनाश से बचाने के लिए भगवान विष्णु ने अपना सुदर्शन चक्र चलाया और सती के शरीर के 51 टुकड़े कर दिए। ये टुकड़े जहां-जहां गिरे, वे स्थान शक्तिपीठ कहलाए।
कहा जाता है कि सती का एक अंग नैमिषारण्य (वर्तमान उत्तर प्रदेश के सीतापुर जिले में स्थित) में गिरा था। यही स्थान आगे चलकर ललिता देवी शक्तिपीठ कहलाया। इस पवित्र स्थल पर माता का एक रूप ललिता देवी विराजमान हैं। यहां माता की पूजा करने से भक्तों के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं और जीवन में सौभाग्य की वृद्धि होती है।
मां ललिता के प्राकट्य से जुड़ी एक और कथा भी प्रचलित है। प्राचीन ग्रंथों में वर्णित है कि एक समय जब ब्रह्मांड में अधर्म और अन्याय बढ़ गया था, तब देवता असहाय होकर मां शक्ति की शरण में गए। असुर भण्डासुर ने अत्याचार की सीमाएं पार कर दी थी। उसने देवताओं को परास्त कर स्वर्ग पर अधिकार जमा लिया था। उसके अत्याचारों से न केवल देवता, बल्कि साधु-संत और पृथ्वी के जीव भी पीड़ित थे।
देवताओं की प्रार्थना सुनकर भगवान शिव की आज्ञा से मां ललिता त्रिपुरा सुंदरी का प्राकट्य हुआ। कहते हैं कि भगवान शिव के तीसरे नेत्र से एक दिव्य तेजपुंज निकला, जो मां ललिता के रूप में प्रकट हुआ। वे लाल कमल पर विराजमान थीं और उनके शरीर से प्रकाश की किरणें निकल रही थीं।
मां ललिता ने भण्डासुर के विरुद्ध देवसेना का नेतृत्व किया। उन्होंने अपने अस्त्र-शस्त्रों से भण्डासुर की सेना को पराजित किया और अंततः भण्डासुर का वध कर धर्म की पुनर्स्थापना की। इस प्रकार देवी ललिता ने संसार को अधर्म से मुक्त किया और प्रेम, सौंदर्य व ज्ञान का प्रसार किया।
ललिता जयंती की पूजा अत्यंत शुभ मानी जाती है। इस दिन देवी को प्रसन्न करने के लिए विशेष विधि से पूजा की जाती है। पूजा करते समय मन में पवित्रता और श्रद्धा का भाव आवश्यक है।
प्रातःकाल जल्दी उठकर स्नान करें। लाल या गुलाबी वस्त्र धारण करें क्योंकि यह रंग मां ललिता को अत्यंत प्रिय है। पूजा स्थल को स्वच्छ जल से धोकर शुद्ध करें और लाल वस्त्र बिछाएँ। देवी का चित्र या प्रतिमा स्थापित करें।
सबसे पहले दीपक जलाएँ और धूप-अगरबत्ती जलाकर वातावरण को पवित्र करें। देवी को सिंदूर, हल्दी, चंदन, पुष्प, कुमकुम और लाल चुनरी अर्पित करें। फिर निम्न मंत्र का जप करें “ॐ श्री ललितायै नमः।”
इसके बाद ललिता सहस्रनाम या ललिता त्रिपुरा सुंदरी स्तोत्र का पाठ करें। यदि संभव हो तो श्री यंत्र की पूजा अवश्य करें, क्योंकि यह देवी ललिता का प्रतीक है।
फलों, मिठाई और पंचामृत से देवी को भोग लगाएँ। अंत में आरती करें और हाथ जोड़कर देवी से प्रार्थना करें कि वे आपके जीवन से सभी नकारात्मकता दूर करें और सुख-शांति प्रदान करें।
पूजा पूर्ण होने के बाद प्रसाद का वितरण करें। यदि संभव हो तो किसी जरूरतमंद व्यक्ति को भोजन कराएँ या दान करें। इस दिन लाल पुष्प, कुमकुम और मिठाई का दान विशेष शुभ माना गया है।
ललिता जयंती के दिन व्रत रखना अत्यंत पुण्यदायक माना गया है। यह व्रत शरीर, मन और आत्मा की शुद्धि का माध्यम है।
ललिता व्रत करने से मन की अशांति दूर होती है और जीवन में मानसिक स्थिरता आती है। यह व्रत स्त्रियों के लिए विशेष रूप से कल्याणकारी माना गया है, क्योंकि इससे पारिवारिक सुख, दांपत्य प्रेम और स्वास्थ्य में सुधार होता है।
मां ललिता की उपासना में मंत्र-जप और स्तोत्र का अत्यंत महत्व है। भक्त अपनी श्रद्धा और सामर्थ्य अनुसार निम्न मंत्रों का जाप कर सकते हैं:
इन मंत्रों के जप से आत्मिक ऊर्जा बढ़ती है, नकारात्मकता समाप्त होती है और जीवन में सकारात्मक परिवर्तन आते हैं।
'ललिता जयंती' का यह पावन पर्व हमें यह याद दिलाता है कि शक्ति और सौंदर्य एक दूसरे के पूरक हैं जीवन में सौंदर्य केवल रूप में नहीं, बल्कि विचारों, कर्मों और भावनाओं में भी होना चाहिए। देवी ललिता हमें यह प्रेरणा देती हैं कि प्रेम, करुणा और शक्ति इन तीनों का संतुलन ही जीवन का वास्तविक सौंदर्य है।
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