क्या आप जानते हैं ओंकारेश्वर मंदिर का महत्व? जानिए इसका स्थान, पौराणिक कथा, दर्शन की विधि और वहां तक पहुंचने का आसान तरीका
ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग मध्य प्रदेश के खंडवा जिले में नर्मदा नदी के तट पर स्थित है। यह शिवजी के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है। ओंकार पर्वत पर स्थित यह मंदिर धार्मिक आस्था और सुंदर प्राकृतिक सौंदर्य का संगम है।
भारत में भगवान शिव के 12 पवित्र ज्योतिर्लिंगों की विशेष मान्यता है, और उनमें से एक है — ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग। यह मंदिर मध्यप्रदेश में नर्मदा नदी के बीच स्थित ओंकार पर्वत पर बसा है, जिसे हिंदू धर्म में गहरी श्रद्धा और आस्था का केंद्र माना जाता है। ओंकारेश्वर की सबसे विशेष बात यह है कि मां नर्मदा यहां ॐ (ॐकार) के आकार में बहती हैं, जो इसे एक अद्वितीय और दिव्य तीर्थ बनाती है। मंदिर नर्मदा के उत्तरी तट पर स्थित एक द्वीप पर है, और इसे अत्यंत पवित्र व सिद्ध स्थल के रूप में पूजा जाता है।
हिंदू मान्यता के अनुसार, देश के सभी तीर्थ स्थलों के दर्शन के बाद ओंकारेश्वर की यात्रा और पूजन करना आवश्यक माना जाता है। तीर्थयात्री अन्य तीर्थों से जल लाकर यहां अर्पित करते हैं, तभी उनकी तीर्थयात्रा पूर्ण मानी जाती है। अन्यथा यह अधूरी मानी जाती है।
ओंकारेश्वर मंदिर भगवान शिव को समर्पित एक प्राचीन और पवित्र हिंदू तीर्थस्थल है, जो मध्य प्रदेश के खंडवा जिले में स्थित है। यह मंदिर खंडवा शहर के समीप मांधाता नगर में, नर्मदा नदी के बीच स्थित 'शिवपुरी' नामक द्वीप पर बना हुआ है। इस द्वीप की विशेषता यह है कि इसका आकार दूर से देखने पर ॐ (ओम) के प्रतीक जैसा प्रतीत होता है, जो इसे आध्यात्मिक रूप से और भी विशेष बना देता है।
ओंकारेश्वर को भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में चौथा ज्योतिर्लिंग माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि यह ज्योतिर्लिंग नर्मदा नदी के प्रवाह से अपने आप प्रकट हुआ था, इसलिए इसका नाम ओंकारेश्वर पड़ा, जिसका मतलब है ‘ॐ के स्वामी’।
यहाँ पर भगवान शिव के साथ-साथ माता पार्वती की भी पूजा की जाती है। हर वर्ष लाखों श्रद्धालु यहाँ दर्शन, पूजन और नर्मदा नदी में स्नान करने के लिए आते हैं। श्रावण मास, महाशिवरात्रि और नर्मदा जयंती जैसे पर्वों पर यहां विशेष श्रद्धालु जुटते हैं।
अगर हम ओंकारेश्वर मंदिर का इतिहास देखें, तो यह मंदिर प्राचीन काल से ही आध्यात्मिक साधना और शिवभक्ति का केंद्र रहा है। इसका उल्लेख पुराणों में, विशेष रूप से स्कंद पुराण में मिलता है, जिससे इसकी धार्मिक महत्ता और भी बढ़ जाती है। प्राचीन काल के बाद, मध्यकालीन युग में मंधाता (ओंकारेश्वर) क्षेत्र पर कई प्रमुख शासकों का शासन रहा। इसमें धार के परमार, मालवा के सुल्तान, और ग्वालियर के सिंधिया जैसे शक्तिशाली राजवंश शामिल थे। इसके बाद 1894 में यह क्षेत्र ब्रिटिश शासन के अधीन आ गया।
इस दौरान मंधाता क्षेत्र पर नथ्थू भील नामक आदिवासी सरदार का शासन था। धार्मिक नियंत्रण के लिए दरियाव गोसाई ने जयपुर के राजा से सहायता मांगी, जिन्होंने अपने भाई भरतसिंह चौहान को भेजा। संघर्ष के बाद भरतसिंह ने नथ्थू भील की बेटी से विवाह किया, जिससे शांति स्थापित हुई और राजपूत-भील संबंध मजबूत हुए।1165 ईस्वी में बने इस नए वंश को "भिलाला" कहा गया, जो मंधाता में बस गया। भरतसिंह चौहान के वंशजों ने लंबे समय तक यहां शासन किया। ब्रिटिश काल में ये "इन्सब्को राव" कहलाए और ओंकारेश्वर उनकी जागीर रहा, जो आज़ादी के बाद समाप्त हो गई।
पौराणिक मान्यता के अनुसार, प्राचीन समय में राजा मांधाता ने उसी पर्वत पर कठोर तप किया था, जहां आज ओंकारेश्वर मंदिर है। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव प्रकट हुए। राजा ने उनसे निवेदन किया कि शिव जी यहीं वास करें ताकि आने वाली पीढ़ियाँ भी उनके दर्शन और पूजन से लाभ प्राप्त कर सकें।
भक्त की इस प्रार्थना को स्वीकार करते हुए भगवान शिव ने स्वयं को ज्योतिर्लिंग के रूप में इस स्थान पर स्थापित कर लिया। इसी वजह से इस पर्वत को ‘मांधाता पर्वत’ कहा जाने लगा और यहां स्थित शिवलिंग को ‘स्वयंभू’, यानी अपने आप प्रकट हुआ माना जाता है। ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग के साथ-साथ पास में स्थित ममलेश्वर मंदिर में दर्शन करना भी बहुत शुभ माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि जो भी श्रद्धा और सच्चे मन से यहां भगवान शिव की पूजा करता है, उसकी जीवन की परेशानियाँ दूर होती हैं, मन को शांति मिलती है और रुके हुए काम भी बनने लगते हैं।
ओंकारेश्वर मंदिर वर्षभर भक्तों के लिए खुला रहता है, और किसी भी मौसम में यहां दर्शन किए जा सकते हैं। मंदिर में प्रवेश से पहले नर्मदा नदी में स्नान करना शुभ माना जाता है। मंदिर तक पहुंचने के लिए श्रद्धालु नाव का सहारा ले सकते हैं या पुल से पैदल जा सकते हैं। यह पाँच मंजिला मंदिर है, जिसकी हर मंजिल पर अलग-अलग देवी-देवताओं के मंदिर स्थित हैं। दर्शन की शुरुआत देवी पार्वती की मूर्ति से करनी चाहिए, जिसके बाद ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग और समीप स्थित ममलेश्वर ज्योतिर्लिंग के दर्शन किए जाते हैं।
मंदिर में सुबह, दोपहर और शाम आरती होती है। खास बात यह है कि ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग के ऊपर महाकालेश्वर मंदिर स्थित है, और ठीक इसी तरह उज्जैन में महाकालेश्वर मंदिर के ऊपर ओंकारेश्वर मंदिर है। इसलिए यहां दर्शन करने से दोनों ज्योतिर्लिंगों का पुण्य प्राप्त होता है। ओंकार पर्वत की परिक्रमा करना भी अत्यंत शुभ माना जाता है।
ओंकारेश्वर मंदिर में दर्शन करने का समय अलग-अलग अवसरों के अनुसार अलग-अलग होता है। श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए अब ऑनलाइन स्लॉट बुकिंग की सुविधा भी उपलब्ध है, जिससे वे अपनी सुविधानुसार समय चुनकर शांति से दर्शन कर सकते हैं।
कार्यक्रम | समय |
मंगल आरती एवं भोग | प्रातः 4:30 – 5:00 |
मंगल दर्शन | प्रातः 5:00 – दोपहर 12:20 |
मध्याह्न भोग | दोपहर 12:20 – 1:15 |
मध्याह्न दर्शन | दोपहर 1:15 – शाम 4:00 |
श्रृंगार (संयमकाल) | शाम 4:00 – 4:30 |
श्रृंगार दर्शन | शाम 4:30 – रात 8:30 |
श्रृंगार आरती | रात 8:30 – 9:00 |
शयन दर्शन | रात 9:00 – 9:30 |
यदि आप ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग के दर्शन का प्लान बना रहे हैं, तो वहां पहुंचने के लिए वायु मार्ग, रेल मार्ग और सड़क मार्ग तीनों विकल्प उपलब्ध हैं।
वायु मार्ग से ओंकारेश्वर पहुँचना आसान है। निकटतम हवाई अड्डा इंदौर का देवी अहिल्याबाई होलकर एयरपोर्ट है, जो लगभग 75 किमी दूर है और देश के प्रमुख शहरों से जुड़ा है। यहां से ओंकारेश्वर के लिए टैक्सी, कैब और बस सेवाएं आसानी से मिल जाती हैं।
यदि आप ट्रेन से यात्रा की योजना बना रहे हैं, तो खंडवा या इंदौर स्टेशन तक टिकट बुक करें और वहां से सड़क मार्ग द्वारा ओंकारेश्वर पहुंचें। इन दोनों रेलवे स्टेशनों से ओंकारेश्वर तक सड़क मार्ग द्वारा आसानी से पहुंचा जा सकता है, जहां टैक्सी, कैब और बस सेवाएं उपलब्ध हैं।
ओंकारेश्वर सड़क मार्ग से इंदौर (75 किमी), खंडवा (65 किमी) और उज्जैन (135 किमी) जैसे प्रमुख शहरों से अच्छी तरह जुड़ा हुआ है। यहां तक पहुंचने के लिए सड़कें व्यवस्थित हैं और अधिकतर मार्गों पर डबल रोड बनी हुई है, जिससे यात्रा सहज और आरामदायक होती है। ओंकारेश्वर के लिए निजी वाहन, टैक्सी, बस और टूर ऑपरेटर्स की नियमित सेवाएं उपलब्ध हैं। साथ ही, मध्य प्रदेश पर्यटन विभाग द्वारा विशेष धार्मिक बसें भी चलाई जाती हैं।
यह थी ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग से जुड़ी कुछ महत्वपूर्ण और रोचक जानकारी। ओंकारेश्वर केवल एक मंदिर नहीं, बल्कि श्रद्धा, विश्वास और आत्मिक शांति का केंद्र है। यह स्थान भगवान शिव की अनंत शक्ति का प्रतीक है और पूरे भारतवर्ष से आने वाले भक्तों के लिए मोक्ष का एक पावन मार्ग माना जाता है। यदि आप शिव भक्त हैं या आध्यात्मिक शांति की तलाश में हैं, तो ओंकारेश्वर की यात्रा अवश्य करें। हमारी शुभकामनाएँ हैं कि भगवान ओंकारेश्वर आपकी सभी मनोकामनाएँ पूरी करें और आप पर सदैव अपनी कृपा बनाए रखें।
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