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भगवान जगन्नाथ हिंदू धर्म के प्रमुख देवताओं में से एक हैं, जो भगवान विष्णु के पूर्ण कला श्रीकृष्ण का ही एक रूप माने जाते हैं। उनका सबसे प्रसिद्ध मंदिर ओडिशा राज्य के पुरी शहर में स्थित है, जिसे जगन्नाथ पुरी धाम के नाम से जाना जाता है। यह चार धामों में से एक है, जिसका हिंदू धर्म में बहुत महत्व है।
मान्यता है कि जगन्नाथ पुरी को "धरती का वैकुंठ" भी कहा जाता है। भगवान जगन्नाथ की अधूरी मूर्तियां, जिनमें केवल बड़ी-बड़ी आंखें हैं, यह दर्शाती हैं कि वे अपने भक्तों को हर पल देखते रहते हैं। उनकी पूजा करने से भक्तों को मोक्ष की प्राप्ति होती है, सारे पाप नष्ट हो जाते हैं, और उनकी सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।
जय जगन्नाथ स्वामी जय बलभद्र संभाव।
जय सुबद्रा ताई अग्या करैं सब काज॥
जय जगन्नाथ दयालु दया निधान।
करुणा रस सिन्धु नयन अन्धकार।।
कटकट धनुस विराजत शंखाधार।
मुख में कमल नैनन में चकार।।१।।
कनकमय शीश नव चारु चंद्र भाला।
नख सिखर छवि गंजित सोहे बाला।।२।।
अरुणांचल मुकुट श्रिया सोहत नूप।
मुख में मुरली बनमाल अजरे।।३।।
शंख बाजे मृदुँग बाजत ताल।
वज्रांकुश गदा शुभ बदन काल।।४।।
रक्त अंग वस्त्र बिभूषण बाजत।
प्रतीत शोभित नील विशाल जाजत।।५।।
आवत धावत तब जू तार गृहवत।
कारज सर्व करैं सुधीर बुधवत।।६।।
शची जब भय भए सागर पार।
रामदास कहैं बेद बिख्यात।।७।।
श्री जगन्नाथ चालीसा जो कोई।
गावैं पाठ करैं कलेश नखटाई।।८।।
जो यह पाठ करे मन लाई।
तेस ही कृपा करहु जगदीश।।९।।
पवन तनय संकट हरण गोसाई।
कृपा द्रिष्टि तुम्हारी करहु विलासा।।
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