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वृषभोत्सव 2025 कब है?

वृषभोत्सव 2025 कब है? जानें भगवान शिव को समर्पित इस पावन पर्व की तिथि, पूजा विधि, व्रत नियम और शुभ मुहूर्त की सम्पूर्ण जानकारी।

वृषभोत्सव के बारे में

वृषभोत्सव एक पारंपरिक पर्व है जो विशेष रूप से बैलों (वृषभ) के सम्मान में मनाया जाता है। किसान इस दिन अपने बैलों को सजाकर पूजा करते हैं। यह उत्सव कृषि जीवन में पशुओं के महत्व को दर्शाता है और समृद्धि की कामना करता है।

2025 में कब है वृषभोत्सव?

हिंदू धर्म में कई ऐसे विशेष पर्व आते हैं, जब भगवान शिव की आराधना की जाती है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि उनके वाहन नंदी की पूजा करने का भी विशेष महत्व है। वृषभोत्सव एक ऐसा ही पर्व है, जब भगवान भोलेनाथ के उपासक विधि विधान से उनके वाहन नंदी की पूजा करते हैं।

वृषभोत्सव 2025 का शुभ मुहूर्त व तिथि

  • वृषभोत्सव 23 अगस्त 2025, शनिवार को भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि पर किया जायेगा।
  • अमावस्या तिथि 22 अगस्त 2025, शुक्रवार को दिन में 11 बजकर 55 मिनट पर प्रारंभ होगी।
  • अमावस्या तिथि का समापन 23 अगस्त 2025, शनिवार को दिन में 11 बजकर 35 मिनट पर होगा।

इस दिन के अन्य शुभ मुहूर्त

मुहूर्त

समय

ब्रह्म मुहूर्त

04:06 ए एम से 04:50 ए एम तक

प्रातः सन्ध्या

04:28 ए एम से 05:34 ए एम तक

अभिजित मुहूर्त

11:35 ए एम से 12:26 पी एम तक

विजय मुहूर्त

02:09 पी एम से 03:01 पी एम तक

गोधूलि मुहूर्त

06:27 पी एम से 06:49 पी एम तक

सायाह्न सन्ध्या

06:27 पी एम से 07:34 पी एम तक

अमृत काल

10:40 पी एम से 12:16 ए एम, 23 अगस्त तक

निशिता मुहूर्त

11:39 पी एम से 12:23 ए एम, 23 अगस्त तक

वृषभोत्सव क्या है?

वृषभोत्सव एक धार्मिक पर्व है जो भगवान शिव के प्रिय वाहन नंदी बैल को समर्पित होता है। यह पर्व भाद्रपद मास की अमावस्या तिथि को मनाया जाता है। इस दिन विशेष रूप से गांवों और ग्रामीण क्षेत्रों में किसान वर्ग बड़ी श्रद्धा के साथ नंदी और शिवजी की पूजा करता है। ‘वृषभ’ का अर्थ होता है बैल, और यही वजह है कि इस दिन नंदी की पूजा का विशेष विधान होता है।

क्यों मनाते हैं वृषभोत्सव?

वृषभोत्सव मनाने का मुख्य उद्देश्य नंदी की महत्ता को सम्मान देना और भगवान शिव का आशीर्वाद प्राप्त करना है। विशेष रूप से कृषक समुदाय इस पर्व को कृतज्ञता के रूप में मनाता है क्योंकि नंदी (बैल) खेतों की जुताई, बोआई आदि में मुख्य सहायक होता है। साथ ही, यह दिन धार्मिक दान-पुण्य, उपवास और समाज सेवा के संकल्प लेने का भी होता है।

वृषभोत्सव का महत्व क्या है?

वृषभोत्सव का महत्व आध्यात्मिक और सांस्कृतिक दोनों दृष्टियों से है।

  • यह पर्व श्रद्धा और सेवा भाव को समर्पित होता है।
  • नंदी को भगवान शिव तक पहुंचने का माध्यम माना गया है, इसलिए उसकी पूजा से भोलेनाथ शीघ्र प्रसन्न होते हैं।
  • यह पर्व कर्म, सहनशीलता और समर्पण के प्रतीक नंदी से जुड़ा है।
  • इस दिन की गई दान, सेवा और पूजा का विशेष फल मिलता है और पापों से मुक्ति भी मानी जाती है।
  • जो लोग इस दिन उपवास और नंदी पूजन करते हैं, उन्हें धैर्य, बल और इच्छाशक्ति की प्राप्ति होती है।

वृषभोत्सव पर किसकी पूजा करें?

वृषभोत्सव के दिन भगवान शिव और उनके वाहन नंदी बैल की विशेष पूजा की जाती है। नंदी को भगवान शिव का प्रमुख सेवक, वाहन और उनके द्वारपाल के रूप में जाना जाता है। इस दिन नंदी को पुष्प, जल और प्रसाद अर्पित कर शिव के प्रति अपनी श्रद्धा प्रकट की जाती है। कई स्थानों पर नंदी की मूर्ति का विशेष श्रृंगार कर मंदिरों में दर्शन-पूजन भी कराया जाता है।

वृषभोत्सव की पूजा विधि

  • ब्रह्म मुहूर्त में उठें, स्नान कर शुद्ध और स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
  • घर या मंदिर में भगवान शिव और नंदी की प्रतिमा या चित्र के सामने व्रत का संकल्प लें।
  • पूजा स्थल को स्वच्छ कर रंगोली आदि से सजाएं।
  • शिवलिंग और नंदी को जल, दूध, बिल्वपत्र, फूल, रोली, चावल, धूप, दीप आदि से पूजन करें।
  • नंदी की विशेष पूजा करें, उन्हें हरी घास, गुड़ और चने का भोग अर्पित करें।
  • शिव मंत्रों का जप करें – जैसे ॐ नमः शिवाय और ॐ नंदिने नमः।
  • अंत में आरती करें और परिवार सहित प्रसाद ग्रहण करें।

वृषभोत्सव के अनुष्ठान क्या हैं?

  • ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करना।
  • एक दिन का व्रत रखने का संकल्प लेना।
  • भगवान शिव और नंदी की विधिवत पूजा करना।
  • पूजा में फूल, धूप, दीप, भोग और जल आदि अर्पण करना।
  • आरती करना और मंत्र जाप करना।
  • इस दिन दान-पुण्य और ज़रूरतमंदों की सहायता करना भी एक महत्वपूर्ण अनुष्ठान माना जाता है।
  • कई भक्त इस दिन गौ सेवा या बैलों की सेवा भी करते हैं।

वृषभोत्सव पर्व से जुड़ी मान्यता क्या है?

धार्मिक मान्यता है कि, जो भक्त इस दिन उपवास रखते हैं, उनके जीवन में सुख-समृद्धि आती है। साथ ही ये पर्व अमावस्या तिथि पर पड़ने के कारण श्राद्ध तर्पण या पितृ तर्पण के लिए भी ये दिन उत्तम माना जाता है। कहा जाता है इस दिन गाय का दान करना विशेष पुण्यफल प्रदान करने वाला होता है, वहीं जो भक्त इस दिन निर्धन यथासंभव दान देते हैं, उनपर सदा भगवान शिव की कृपा बनी रहती है।

वृषभोत्सव पर्व से जुड़ी एक मान्यता के अनुसार एक बार सभी देवताओं ने वृषभोत्सव का व्रत किया, जिसके प्रभाव से भगवान शिव ने भगवान विष्णु को वाहन के रूप में गरुड़ को दिया। वहीं इंद्रदेव को ऐरावत मिला। भगवान सूर्य को अपने सात घोड़ों का रथ प्राप्त हुआ और चंद्रदेव को विशेष माणिक हवाई जहाज मिला, जल के देवता को मगरमच्छ मिला, भगवान यमराज को वाहन के रूप में भैंसा मिला और भगवान कुबेर को इस व्रत के प्रभाव से पुष्कर विमान मिला।

वृषभोत्सव मनाने के लाभ

  • वृषभोत्सव मनाने से भक्तों को आध्यात्मिक लाभ के साथ-साथ पारिवारिक और सांसारिक सुख की भी प्राप्ति होती है।
  • इस दिन नंदी बैल की पूजा करने से भगवान शिव की कृपा शीघ्र प्राप्त होती है।
  • यह पर्व विशेष रूप से किसानों के लिए फलदायक माना जाता है, क्योंकि नंदी कृषि का प्रतीक हैं।
  • सच्चे मन से किया गया व्रत मनोकामना पूर्ति में सहायक होता है।
  • यह पर्व धैर्य, सेवा और श्रद्धा जैसे गुणों को विकसित करने का अवसर देता है।
  • इस दिन दान-पुण्य करने से पापों का क्षय और पुण्य की प्राप्ति होती है।

वृषभोत्सव के दिन क्या करना चाहिए?

  • ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करें और व्रत का संकल्प लें।
  • घर में साफ-सफाई कर पूजा स्थान को पवित्र करें।
  • भगवान शिव और नंदी की प्रतिमा या चित्र की विधिवत पूजा करें।
  • शिव मंत्रों का जाप करें – जैसे “ॐ नमः शिवाय” और “ॐ नंदिने नमः”।
  • इस दिन दान, गौ सेवा, जरूरतमंदों की सहायता आदि करने का विशेष महत्व है।
  • पूजा के बाद परिवार सहित प्रसाद वितरण करें और दिनभर सात्विक रहें।

वृषभोत्सव के दिन क्या न करें?

  • इस दिन मांसाहार, मदिरा और तामसिक भोजन से पूरी तरह बचना चाहिए।
  • क्रोध, आलस्य, द्वेष या अपशब्दों से दूर रहें।
  • पूजा या व्रत के समय मन में अविश्वास या अधीरता न रखें।
  • दूसरों को अपमानित या कष्ट पहुँचाने वाले कार्यों से बचें।
  • अगर संभव हो, तो बैल, गाय या पशुओं को कष्ट न पहुँचाएं, बल्कि उनकी सेवा करें।

तो यह थी वृषभोत्सव पर्व से जुड़ी जानकारी। हमारी कामना है कि आपको इस व्रत का संपूर्ण फल प्राप्त हो, और आप पर भगवान भोलेनाथ की कृपा सदैव बनी रहे।

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Published by Sri Mandir·August 7, 2025

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