वराह जयंती 2025 की तिथि, पूजा विधि, वराह अवतार की कथा और व्रत से जुड़ी संपूर्ण जानकारी जानें। यह दिन धर्म की रक्षा और भगवान विष्णु के शक्तिशाली स्वरूप की आराधना का प्रतीक है।
वराह जयंती भगवान विष्णु के तीसरे अवतार वराह स्वरूप की जयंती है। इस दिन भक्त भगवान वराह की पूजा करते हैं, धर्म-कर्म में संलग्न रहते हैं और सुख-समृद्धि तथा पापों से मुक्ति की कामना करते हैं।
भगवान विष्णु के तीसरे अवतार के अवतरण होने की तिथि को हर साल वराह जयंती के रूप में बड़े ही धूम-धाम से मनाया जाता है। भगवान विष्णु के वराह अवतार को उद्धारक देवता के रूप में भी जाना जाता है। तो आइए, हम आपको प्रभु के इस अवतार के से जुड़ी संपूर्ण जानकारी से अवगत कराते हैं।
मुहूर्त | समय |
ब्रह्म मुहूर्त | 04:06 ए एम से 04:51 ए एम तक |
प्रातः सन्ध्या | 04:29 ए एम से 05:36 ए एम तक |
अभिजित मुहूर्त | 11:34 ए एम से 12:25 पी एम तक |
विजय मुहूर्त | 02:07 पी एम से 02:58 पी एम तक |
गोधूलि मुहूर्त | 06:23 पी एम से 06:45 पी एम तक |
सायाह्न सन्ध्या | 06:23 पी एम से 07:30 पी एम तक |
अमृत काल | 11:30 पी एम से 01:15 ए एम, 27 अगस्त तक |
निशिता मुहूर्त | 11:37 पी एम से 12:22 ए एम, 27 अगस्त तक |
रवि योग | पूरे दिन |
वराह जयंती भगवान विष्णु के तीसरे अवतार वराह अवतार की स्मृति में मनाई जाती है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, जब हिरण्याक्ष नामक राक्षस ने पृथ्वी को पाताल लोक में ले जाकर छिपा दिया था, तब भगवान विष्णु ने वराह (सूअर) का रूप धारण कर पृथ्वी का उद्धार किया। इस दिन को धर्म की पुनः स्थापना और अधर्म के नाश के प्रतीक के रूप में मनाया जाता है।
वराह जयंती को मनाने के पीछे मुख्य उद्देश्य है —
हिंदू धर्म में वराह जयंती के पर्व का एक विशेष महत्व है। मान्यता है कि इस दिन भगवान विष्णु और उनके वराह स्वरुप की पूजा करने से, इंसान के जीवन में खुशियों का संयोग बनता है। ऐसा भी माना जाता है, कि जो लोग वराह जयंती का व्रत सच्चे मन से रखते हैं, उनका सोया हुआ भाग्य जाग जाता है। साथ ही जातक की आर्थिक स्थिति भी बेहतर होती है।
भगवान विष्णु ने वराह का कल्याणकारी अवतार बुरी शक्तियों का अंत करने के लिए लिये लिया था, ऐसे में इस दिन उनकी पूजा करने वाले मनुष्य की सभी भूल व पाप नष्ट हो जाते हैं। इसके अलावा वराह जयंती की पूजा के बाद इस दिन ज़रुरतमंदों को धन, वस्त्र व अन्य चीजों का दान करने से भगवान विष्णु की असीम कृपा प्राप्त होती है।
वराह जयंती सभी भक्तों के लिए उपयुक्त है, लेकिन विशेष रूप से निम्न लोग इसका पालन कर सकते हैं:
पौराणिक कथाओं के अनुसार, वराह अवतार में भगवान विष्णु आधे शुकर एवं आधे इंसान के रूप में अवतरित हुए थे। अपने इस अवतार में भगवान विष्णु ने हिरण्याक्ष नामक दैत्य का अन्त करके संपूर्ण जगत की रक्षा की थी। तभी से भगवान विष्णु के इस स्वरुप की पूजा की जाती है, और इस अवतार के जन्मोत्सव को वराह जयंती के रूप में मनाया जाता है।
वराह जयंती देश के कई हिस्सों में बहुत धूमधाम से मनाई जाती है। वहीं, देश के कुछ मंदिर ऐसे भी हैं, जहाँ इस त्योहार में भगवान के दर्शन के लिये, भक्तों की भीड़ लगी रहती है। ऐसा ही एक मंदिर, तिरुमाला में स्थित 'भुवराह स्वामी मंदिर' है। इस मंदिर का निर्माण लगभग 16वीं शताब्दी में हुआ था। यहाँ वराह जयंती के दिन भगवान विष्णु के वराह अवतार की मूर्ति को नारियल के पानी से नहलाया जाता है, फिर उनकी पूजा की जाती है।
ऐसा ही एक और पुराना मंदिर भारतीय राज्य मध्य प्रदेश के छतरपुर क्षेत्र में भी मौजूद है, जिसका निर्माण 11 वीं शताब्दी में हुआ था। यह मंदिर "वराह मंदिर खजुराहो" के नाम से प्रसिद्ध है और इस स्मारक को, यूनेस्को विश्व धरोहर में भारत का एक धरोहर क्षेत्र भी माना गया है। भगवान वराह के जन्मदिन पर यहाँ भव्य आयोजन किया जाता है।
श्रीमद्भागवत महापुराण के अनुसार, जब सृष्टि के प्रारंभिक काल में पृथ्वी असुर हिरण्याक्ष द्वारा जल में डुबा दी गई, तब देवता अत्यंत चिंतित हो उठे। तब भगवान विष्णु ने वराह का रूप लिया, और समुद्र में प्रवेश कर हिरण्याक्ष से घोर युद्ध किया। अंततः उसका वध कर उन्होंने पृथ्वी को अपने दांतों पर उठाया और ब्रह्मा को सौंप दिया। यह विजय धर्म पर अधर्म की जीत का प्रतीक बनी। तभी से इस दिन को वराह जयंती के रूप में मनाया जाने लगा।
तो भक्तों, यह थी वराह जयंती से जुड़ी विशेष जानकारी। हमारी कामना है कि वराह भगवान आप पर अपनी कृपा बनाए रखें, और आपको प्रभावित करने वाली सभी नकारात्मक शक्तियों का नाश करें। ऐसी ही धार्मिक जानकारियों के लिये जुड़े रहिये 'श्री मंदिर' पर।
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