नाग पंचमी सिर्फ एक पर्व नहीं, बल्कि श्रद्धा और सुरक्षा का प्रतीक है। जानिए इस दिन नाग देवता की पूजा क्यों की जाती है और इसके पीछे छिपा धार्मिक रहस्य।
श्रावण मास के शुक्ल पक्ष में पड़ने वाली पंचमी को नाग पंचमी के रूप में मनाया जाता है। इस दिन भगवान शिव के गण नाग देवता की पूजा करने का विधान है। मान्यता है कि ये पूजा करने से सांप काटने की संभावना व कालसर्प दोष का प्रभाव समाप्त होता है। आइये जानते हैं इसके धार्मिक महत्व के बारे में...
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार नाग पंचमी का दिन भगवान शिव और नाग देवता की पूजा के लिए अत्यंत शुभ माना जाता है। इस दिन विधिपूर्वक पूजन करने से बड़े से बड़े पाप भी नष्ट हो जाते हैं।
ऐसा माना जाता है कि जो जातक श्रद्धा और भक्ति से नाग देवता की पूजा करते हैं, उनकी कुंडली में स्थित राहु, केतु और कालसर्प दोष शांत हो जाते हैं। भगवान शिव के प्रिय नागों की उपासना से न केवल जीवन की आने वाली विपत्तियों से मुक्ति मिलती है, बल्कि घर में सुख-शांति और धन-समृद्धि भी बनी रहती है।
एक विशेष मान्यता यह भी है कि पंचमी तिथि के दिन जो व्यक्ति नाग देवता की प्रतिमा को गाय के दूध से स्नान कराता है, उसके कुल को सभी नाग अभयदान देते हैं और परिवार के सभी सदस्य सर्प के भय से मुक्त हो जाते हैं।
महाभारत में राजा परीक्षित के जन्मेजय के नाग यज्ञ का वर्णन मिलता है, जिसका आयोजन उन्होंने अपने पिता परीक्षित को तक्षक नाग द्वारा डसे जाने का बदला लेने के लिए किया था। कहा जाता है कि जन्मेजय के नाग यज्ञ के दौरान बड़े-बड़े विकराल नाग अग्नि में आकर जलने लगे। उस समय वासुकि की बहन व ऋषि जरत्कारु से उत्पन्न पुत्र आस्तिक मुनि ने सर्प यज्ञ रोककर नागों की रक्षा की थी।
कहा जाता है कि उस दिन पंचमी तिथि थी। इसी कारण पंचमी तिथि को नागों की पूजा करने की परंपरा आरंभ हुई। भविष्य पुराण में भी इस दिन नाग लोक में उत्सव मनाने का वर्णन है, जो इस पर्व की धार्मिक गरिमा को और भी बढ़ाता है।
नाग पंचमी की पूजा के लिए आपको कुछ विशेष सामग्रियों की आवश्यकता होती है, जिसमें शामिल हैं-
यदि आप नाग पंचमी की पूजा में ये सभी सामग्री सम्मिलित करें, तो पूजा विशेष फलदाई मानी जाती है।
नाग पंचमी के दिन नाग देवता को दूध चढ़ाने की परंपरा बहुत पुरानी है। इसके पीछे एक पौराणिक कथा जुड़ी हुई है। मान्यता है कि जब राजा जन्मेजय ने नाग यज्ञ करवाया था, तब कई सर्प अग्निकुंड में गिरकर जलने लगे। उस यज्ञ को जब रोका गया, तो नागों की जलन को शांत करने के लिए उन्हें दूध से स्नान कराया गया। तभी से यह परंपरा बनी कि नाग पंचमी के दिन नागों को दूध चढ़ाया जाए, जिससे वे प्रसन्न हों और अपना आशीर्वाद दें।
ऐसा कहा जाता है कि इस दिन नाग देवता को दूध चढ़ाने से सर्पदंश का भय नहीं रहता और घर में लक्ष्मी का वास होता है। लोग अपने आंगन या दीवारों पर नाग देवता की आकृति बनाकर वहीं उन्हें दूध अर्पित करते हैं। यह परंपरा पीढ़ियों से चली आ रही है और आज भी लोगों की श्रद्धा इससे जुड़ी हुई है।
नाग पंचमी के दिन पूजा में फूल और दूर्वा का भी खास महत्व होता है। खासतौर पर दूर्वा नाग देवता को बहुत प्रिय मानी जाती है। लोग पाँच या सात दूर्वा को एक साथ बांधकर नाग देवता को चढ़ाते हैं और सुख-शांति की कामना करते हैं। फूलों में अक्सर सफेद या पीले फूलों का उपयोग होता है क्योंकि ये शांति और समर्पण के प्रतीक माने जाते हैं।
नाग देवता की पूजा करते समय हल्दी, चंदन और अक्षत का उपयोग शुभ माना गया है। हल्दी शुद्धता की प्रतीक होती है और चंदन शीतलता और शांति का भाव लाता है। पूजा के आरम्भ में नाग देवता की प्रतिमा या चित्र पर चंदन और हल्दी से तिलक किया जाता है। इसके बाद अक्षत चढ़ाए जाते हैं। ऐसा करने से पूजा पूर्ण और फलदायी मानी जाती है।
नाग पंचमी की पूजा में बनने वाला प्रसाद इस पर्व का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, तो चलिए विभिन्न जगहों पर बनने वाले नाग पंचमी के प्रसाद के बारे में विस्तार से जानते हैं -
मध्य प्रदेश में नाग पंचमी का त्योहार बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। इस दिन नाग देवता को भोग लगाने के लिए विशेष तौर पर ‘खीर-पूरी’ बनाई जाती है। मान्यता है, कि खीर पूरी का भोग लगाने से नागदेवता प्रसन्न होते हैं और भक्तों पर अपनी कृपा की दृष्टि बनाए रखते हैं।
राजस्थान और दाल बाटी चूरमा का रिश्ता बेहद खास और गहरा है। ऐसा माना जाता है कि अगर कोई राजस्थान जाए और वहाँ का प्रसिद्ध दाल बाटी चूरमा न खाए, तो उसकी यात्रा अधूरी मानी जाती है। ऐसे में राजस्थान में नाग पंचमी का उद्यापन भी नाग देवता को इसी पकवान का भोग लगाकर किया जाता है।
इन दोनों राज्यों में नाग पंचमी के अवसर पर नाग देवता को मालपुए का भोग अर्पित करने की परंपरा है। ऐसी मान्यता है कि इस मीठे व्यंजन का भोग लगाने से नाग देवता प्रसन्न होते हैं और भक्तों को धन, सुख-शांति और सौभाग्य का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
नाग पंचमी के दिन चांदी के नाग-नागिन का जोड़ा मंदिर में चढ़ाना या ब्राह्मण को दान करना बहुत ही शुभ माना जाता है। ऐसा करने से घर में धन धान्य व सुख-शांति बनी रहती है। माना जाता है कि इससे सर्पदंश का भय नहीं रहता और वंश वृद्धि में भी शुभ फल मिलता है।
यह थी ‘नाग पंचमी के धार्मिक महत्व व इस दिन किए जाने वाले विशेष अनुष्ठान’ से जुड़ी पूरी जानकारी, हमारी कामना है कि आपका ये व्रत व पूजा अर्चना सफल हो, और भगवान शिव व नाग देवता की कृपा आप पर सदैव बनी रहे। ऐसे ही व्रत, त्यौहार व अन्य धार्मिक जानकारियों के लिए जुड़े रहिए 'श्री मंदिर' पर।
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