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मेष संक्रांति कब है?

मेष संक्रांति 2025 में कब है? इस साल का विशेष समय कब है और क्यों है यह दिन इतना खास? जानें तिथि, महत्व और कैसे इस दिन का लाभ उठाकर आप अपना जीवन बेहतर बना सकते हैं।

मेष संक्रांति के बारे में

मेष संक्रांति हिंदू नववर्ष का प्रारंभ और सौर वर्ष का पहला दिन होता है। इस दिन सूर्य मेष राशि में प्रवेश करता है, जिससे खरमास समाप्त होता है और शुभ कार्यों की शुरुआत होती है। इसे विभिन्न राज्यों में बैसाखी, पोइला बोइशाख, विशु आदि के रूप में मनाया जाता है।

मेष संक्रांति कब है?

हिन्दू कैलेंडर के अनुसार मेष संक्रांति हिन्दू वर्ष की पहली संक्रांति होती है। पूरे वर्ष में 12 मास की तरह ही 12 संक्रांति होती हैं। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार सूर्यदेव के एक राशि से दूसरी राशि में गोचर अर्थात प्रवेश की तिथि को संक्रान्ति के नाम से जाना जाता है।

इस माह 14 अप्रैल 2025, सोमवार को सूर्य मीन राशि से निकल कर मेष राशि में गोचर करेंगे। आइये जानते हैं मेष संक्रांति के शुभ मुहूर्त -

मेष संक्रान्ति पुण्य काल मुहूर्त

2025 मेष संक्रान्ति फलम्

  • मेष संक्रान्ति 14 अप्रैल 2025, सोमवार को है।
  • मेष संक्रान्ति पुण्य काल - 05:36 से 11:58
  • अवधि - 06 घण्टे 22 मिनट्स
  • मेष संक्रान्ति महा पुण्य काल - 05:36 से 07:44
  • अवधि - 02 घण्टे 07 मिनट्स
  • मेष संक्रान्ति का क्षण - 03:30

मेष संक्रान्ति मुहूर्त

  • संक्रान्ति करण: कौलव
  • संक्रान्ति दिन: Sunday / रविवार
  • संक्रान्ति अवलोकन दिनाँक: 14 अप्रैल 2025
  • संक्रान्ति गोचर दिनाँक: 14 अप्रैल 2025
  • संक्रान्ति का समय: 03:30, 14 अप्रैल 2025
  • संक्रान्ति घटी: 54 (रात्रिमान)
  • संक्रान्ति चन्द्रराशि: तुला
  • संक्रान्ति नक्षत्र: स्वाती (चर संज्ञक)

मेष संक्रांति मुहूर्त

मुहूर्त

समय

ब्रह्म मुहूर्त  

04:06 ए एम से 04:51 ए एम तक

प्रातः सन्ध्या 

04:29 ए एम से 05:36 ए एम तक

अभिजित मुहूर्त 

11:33 ए एम से 12:24 पी एम तक

विजय मुहूर्त 

02:06 पी एम से 02:57 पी एम तक

गोधूलि मुहूर्त 

06:19 पी एम से 06:42 पी एम तक

सायाह्न सन्ध्या 

06:20 पी एम से 07:28 पी एम तक

अमृत काल 

02:18 पी एम से 04:07 पी एम तक

निशिता मुहूर्त 

11:35 पी एम से 12:20 ए एम, (15 अप्रैल) तक

मेष संक्रांति क्या है? जानें महत्व एवं लाभ

साल के प्रत्येक महीने में आने वाली संक्रांति का अपना विशेष महत्व होता है। मेष संक्रांति भी उन्हीं में से एक है, जो हिन्दू धर्म की प्रमुख तिथि मानी जाती है।

चलिए जानते हैं,

  • मेष संक्रांति क्या है, और क्यों मनाई जाती है?
  • मेष संक्रांति का महत्व क्या है?
  • इस संक्रांति के लाभ क्या हैं?

मेष संक्रांति क्या है, और क्यों मनाई जाती है?

हिन्दू कैलेंडर में मेष संक्रांति को वर्ष में आने वाली पहली संक्रांति माना जाता है। हर माह सूर्य देवता अपना स्थान परिवर्तन कर एक नई राशि में प्रवेश करते हैं। इसी तरह वैशाख माह में सूर्य मेष राशि में प्रवेश करेंगे, जिसे मेष संक्रांति के नाम से मनाया जाएगा। मेष संक्रांति को खरमास/मलमास के अंत के रूप में देखा जाता है, इसीलिए इस तिथि का महत्व और भी बढ़ जाता है।

मेष संक्रांति का महत्व क्या है?

हिंदू शास्त्रों में मेष संक्रांति बहुत महत्वपूर्ण मानी गई है। इस दिन व्रत रखना, सूर्यदेव की पूजा अर्चना करना और दान करना अत्यंत फलदाई होता है। कई अन्य भारतीय कैलेंडर जैसे कि तमिल, बंगाली, ओड़िआ, पंजाबी मलयालम आदि में नए साल का पहला दिन मेष संक्रांति को ही माना जाता है। यह भी मान्यता है कि मेष संक्रांति के दिन सूर्य की उत्तरायण यात्रा पूरी होती है। मीन संक्रांति से खरमास/मलमास शुरू होकर मेष संक्रांति पर ख़त्म होता है, इसलिए मेष संक्रांति से शुभ और मांगलिक कार्यों की शुरुआत की जा सकती है।

इस संक्रांति के लाभ क्या हैं?

इस दिन प्रातःकाल स्नान के उपरांत सूर्य भगवान को जल अर्पित करने एवं सूर्य मंत्रों का जाप करने से अक्षय पुण्यफल की प्राप्ति होती है। इस संक्रांति पर भगवान मधुसूदन की पूजा से मनवांछित फल मिलता है, एवं जीवनभर उनका आशीर्वाद बना रहता है। मेष संक्रांति पर भगवान सूर्य की अराधना करने से शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य उत्तम होता है। इस दिन गौ माता को भरपेट चारा खिलाने से धनधान्य व सुख सौभाग्य की प्राप्ति होती है। मेष संक्रांति के पुण्यकाल में स्नान-दान, पितरों का तर्पण आदि करने से घर परिवार में सुख-शांति और समृद्धि का वास होता है।

तो ये थी मेष संक्रांति के महत्व एवं लाभ से जुड़ी जानकारी। इस पर्व की पूजा विधि सहित इस दिन से जुड़ी अन्य जानकारियों के लिए जुड़े रहिये श्री मंदिर के साथ!

मेष संक्रान्ति व्रत की पूजा विधि

हिन्दू कैलेंडर की पहली संक्रांति मेष संक्रांति होती है। इस दिन सूर्य अपनी उत्तरायण यात्रा पूरी करके मेष राशि में प्रवेश करते हैं। इस संक्रांति पर पूरी सृष्टि में ऊर्जा के स्रोत माने जाने वाले भगवान सूर्य की विधि-विधान से पूजा की जाती है। साथ ही इस दिन पूजा के बाद दान-पुण्य करने से व्यक्ति के जीवन में सुख समृद्धि का वास होता है।

मेष संक्रांति पर ऐसे करें सूर्यदेव की पूजा

  • इस दिन सुबह ब्रह्म मुहूर्त में उठकर नित्यकर्मों से निवृत्त हो जाएं, और पास के किसी जलाशय या नदी में स्नान करें।
  • अगर ऐसा संभव न हों तो आप घर पर ही पानी में ही लाल चन्दन, गुलाब की पंखुड़ी और गंगाजल मिलाकर स्नान कर सकते हैं।
  • स्नान करते समय मन ही मन भगवान सूर्य का स्मरण करें, स्नान के बाद साफ वस्त्र पहनें।
  • यदि आप इस दिन व्रत रखना चाहते हैं, तो सूर्यदेव को नमन करके व्रत का संकल्प लें, और तांबे के कलश में जल, लाल चन्दन और लाल फूल मिलाकर सूर्य भगवान को अर्घ्य दें।
  • अर्घ्य देते समय ‘ॐ सूर्याय नमः’ मंत्र का जाप करते रहें।
  • इसके बाद पूजा स्थल को साफ करके, यहां नियमित रूप से की जाने वाली पूजा करें और सभी देवों को रोली, हल्दी, कुमकुम, धूप-दीप, पुष्प, अक्षत, भोग समेत संपूर्ण पूजा सामग्री अर्पित करें।
  • अब सर्वदेवों को नमन करके अपने घर परिवार के लिए सुख- समृद्धि और शांति की कामना करें।
  • इस दिन आप उत्तम फल के लिए भगवान विष्णु और भगवान शिव जी की भी पूजा-अर्चना कर सकते हैं।
  • इसके बाद आप अपनी क्षमता के अनुसार किसी ब्राम्हण एवं निर्धन जनों को अन्न (धान और गेहूं) और वस्त्र आदि का दान करके अपने व्रत को पूर्ण करें।

तो यह थी मेष संक्रांति की पूजा विधि, आप भी इस दिन सूर्यदेव की भक्ति से अपने दिन को मंगलकारी बना सकते हैं, ऐसी ही अन्य पूजा विधियों को जानने के लिए आप श्री मंदिर के साथ बनें रहें।

मेष संक्रांति पर क्या करें, क्या न करें?

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार सूर्य का किसी राशि में प्रवेश करना संक्रांति कहलाता है। इस प्रकार सूर्य के मेष राशि में प्रवेश करने को मेष संक्रांति कहते हैं। इस संक्रांति से मलमास या खरमास का भी समापन भी होता है, इसलिए इस दिन जहां सूर्य देव की पूजा अर्चना करने से अनेकों फल प्राप्त होते हैं, वहीं कुछ ऐसे कार्य हैं, जिन्हें मेष संक्रांति में करना वर्जित माना जाता है।

मेष संक्रांति पर क्या करें?

  • मेष संक्रान्ति के दिन प्रातः काल ब्रह्म मुहूर्त में स्नान करना चाहिए। इस दिन यदि आप गंगाजी या किसी अन्य पवित्र नदी में स्नान कर सकते हैं, तो आपको असंख्य शुभ फलों की प्राप्ति होगी।
  • यदि आप इस दिन किसी पवित्र नदी में स्नान करने में असमर्थ हैं, तो अपने नहाने के पानी में गंगा जल और लाल चन्दन मिलाकर स्नान करे। इससे आपको गंगा स्नान के समान फल प्राप्त होगा।
  • स्नानादि से निवृत्त होने के पश्चात् सूर्य देवता को अर्घ्य देकर उनका पूजन करें।
  • सूर्य पूजन के उपरांत जूते-चप्पल, वस्त्र एवं अन्न दान करें। इस दिन स्नान और दान करने से ग्रह दोष एवं असाध्य रोगों से छुटकारा मिलता है।
  • मेष संक्रांति के दिनों में सूर्य भगवान की उपासना अत्यंत फलदाई मानी जाती है, इसलिए जिन लोगों की कुंडली में सूर्य शुभ नहीं हैं, उन्हें इस सक्रांति काल के दौरान सूर्य पूजा अवश्य करनी चाहिए।

मेष संक्रांति पर क्या न करें?

  • वैसे तो मेष संक्रांति से सभी मांगलिक कार्यों की शुरुआत हो जाती है। फिर भी शुभ-अशुभ मुहूर्त और पंचांग देखे बिना किसी भी शुभ कार्य की शुरुआत न करें।
  • हिन्दू धर्म में अपने पिता का सम्मान करना श्रेष्ठकर माना जाता है, खासकर मेष संक्रांति के दिन इस बात का ध्यान जरूर रखें। पिता का अपमान करने वालों का सूर्य ग्रह कमजोर होता है।
  • इस दिन भूल से भी किसी जरूरतमंद को ठेस न पहुंचाएं और अपनी क्षमता के अनुसार दान करना न भूलें।
  • मेष संक्रांति के दिन सूर्योदय के बाद देर तक सोना अशुभ फलों की प्राप्ति और बाधा का कारक बनता है। इस शुभ दिन पर देर तक न सोने से बचें।

ये थी मेष संक्रांति से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारी। इसी ही धार्मिक जानकारियों के लिए जुड़े रहिए 'श्री मंदिर' पर।

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Published by Sri Mandir·March 18, 2025

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