भाद्रपद अमावस्या 2025 कब है? क्या आप जानते हैं इस दिन पितृ शांति और दान-पुण्य का कितना महत्व है? जानें तिथि, पूजा विधि, उपाय और शुभ मुहूर्त
भाद्रपद अमावस्या हिन्दू पंचांग के अनुसार भाद्रपद माह की अमावस्या तिथि को कहते हैं। यह दिन पितरों की शांति और तर्पण के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है। इस दिन स्नान, दान, पितृ पूजन और धार्मिक कार्य करने से पितृ दोष का निवारण होता है और घर में शांति आती है।
पूर्णिमा तिथि की तरह, हिंदू धर्म में अमावस्या तिथि को भी अत्यंत पवित्र माना गया है। भाद्रपद माह में आने वाली अमावस्या कि पावन तिथि को भाद्रपद या भादो अमावस्या कहा जाता है। तो आइए, आज हम आपको भाद्रपद अमावस्या तिथि के महत्व और इस दिन किए जाने वाले शुभ कार्यों से अवगत कराते हैं।
मुहूर्त | समय |
ब्रह्म मुहूर्त | 04:06 ए एम से 04:50 ए एम तक |
प्रातः सन्ध्या | 04:28 ए एम से 05:34 ए एम तक |
अभिजित मुहूर्त | 11:35 ए एम से 12:26 पी एम तक |
विजय मुहूर्त | 02:09 पी एम से 03:01 पी एम तक |
गोधूलि मुहूर्त | 06:27 पी एम से 06:49 पी एम तक |
सायाह्न सन्ध्या | 06:27 पी एम से 07:34 पी एम तक |
अमृत काल | 10:40 पी एम से 12:16 ए एम, 23 अगस्त तक |
निशिता मुहूर्त | 11:39 पी एम से 12:23 ए एम, 23 अगस्त तक |
भाद्रपद अमावस्या, भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अंतिम तिथि होती है, जिसे हिन्दू पंचांग में विशेष धार्मिक महत्व प्राप्त है। यह अमावस्या न केवल पितरों की शांति के लिए महत्वपूर्ण मानी जाती है, बल्कि इसे स्नान, दान, जप, यज्ञ और तर्पण जैसे कर्मों के लिए भी अत्यंत शुभ माना गया है। इस दिन सूर्य और चंद्रमा दोनों की किरणें धरती पर नहीं पड़तीं, जिससे इसे आत्मचिंतन और आध्यात्मिक शुद्धि का दिन माना जाता है।
भाद्रपद अमावस्या पितृ कार्यों और पूर्वजों को श्रद्धांजलि देने के लिए मनाई जाती है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन पिंडदान, तर्पण और श्राद्ध कर्म करने से पितर प्रसन्न होकर आशीर्वाद देते हैं और वंशजों की बाधाएं दूर होती हैं।
साथ ही, इस दिन भगवान शिव और श्रीकृष्ण दोनों की पूजा का भी विधान है क्योंकि यह मास स्वयं भगवान श्रीकृष्ण को समर्पित होता है। इस तिथि पर कुशा नामक पवित्र पौधे को एकत्रित किया जाता है, जिसे यज्ञों और श्राद्ध कर्मों में उपयोग किया जाता है। इस कारण यह दिन "कुशग्रहणी अमावस्या" के नाम से भी जाना जाता है।
भाद्रपद अमावस्या का धार्मिक और आध्यात्मिक दृष्टि से अत्यंत महत्व है। इस दिन किए गए तर्पण और दान-पुण्य का फल अनेक गुना बढ़ जाता है।
भाद्रपद अमावस्या पर किए गए उपायों से पितृ दोष, पूर्वजों के कष्ट, और ग्रह बाधाओं से मुक्ति मिल सकती है। इस दिन किए गए धार्मिक उपायों का विशेष फल मिलता है:
भाद्रपद अमावस्या न केवल पितृ तर्पण और श्रद्धा का पर्व है, बल्कि यह आत्मशुद्धि, दान-पुण्य और आध्यात्मिक साधना का एक पवित्र अवसर भी है। इस दिन पूर्वजों को स्मरण कर उनके प्रति कृतज्ञता प्रकट की जाती है और उनके आशीर्वाद से जीवन के कष्टों से मुक्ति की कामना की जाती है।
कुश एकत्र करने की परंपरा, शिव और श्रीकृष्ण की आराधना, व्रत और ब्राह्मण सेवा जैसे कार्य इस दिन को और भी पुण्यदायी बना देते हैं। यदि श्रद्धा और नियमपूर्वक इस तिथि का पालन किया जाए, तो यह न केवल पितरों को संतुष्टि देता है, बल्कि जीवन में सुख-शांति और समृद्धि भी प्रदान करता है।
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