क्या आप जानते हैं माँ शैलपुत्री को कौन सा फल सबसे प्रिय है? नवरात्रि में सही फल का भोग अर्पित करने से माँ की विशेष कृपा प्राप्त होती है।
माँ शैलपुत्री को केला अत्यंत प्रिय फल माना जाता है। नवरात्रि के प्रथम दिन उन्हें केले का भोग अर्पित करने से घर में सुख-शांति, समृद्धि और आरोग्य का आशीर्वाद प्राप्त होता है। साथ ही साधक की मनोकामनाएँ भी पूर्ण होती हैं।
मां शैलपुत्री देवी दुर्गा के नौ स्वरूपों में प्रथम मानी जाती हैं। पर्वतराज हिमालय की पुत्री होने के कारण इन्हें शैलपुत्री कहा जाता है। यही देवी आगे चलकर पार्वती के रूप में जन्म लेकर भगवान शिव की अर्धांगिनी बनीं। मां शैलपुत्री का वाहन वृषभ (बैल) है, इस कारण इन्हें वृषारूढ़ा भी कहा जाता है। इस देवी के दाहिने हाथ में त्रिशूल और बाएँ हाथ में सुंदर कमल की शोभा विराजमान है। नवरात्रि के पहले दिन घटस्थापना के साथ इनकी विधिवत पूजा का विशेष महत्व होता है। श्रद्धा और भक्ति से मां शैलपुत्री की आराधना करने पर भक्तों की सभी मनोकामनाएँ पूरी होती हैं और जीवन के कष्ट दूर होकर सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है।
माँ शैलपुत्री नवदुर्गाओं का प्रथम स्वरूप हैं और शक्ति, धैर्य व भक्ति की प्रतीक मानी जाती हैं। उनकी आराधना से जीवन के दुख-दर्द दूर होते हैं, मनोकामनाएँ पूर्ण होती हैं और साधक को आध्यात्मिक उन्नति प्राप्त होती है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, माँ शैलपुत्री की पूजा से ग्रह संबंधी कष्ट समाप्त होते हैं और सभी इच्छाएँ पूरी होती हैं। माना जाता है कि पूजन के समय यदि माँ शैलपुत्री की कथा का पाठ न किया जाए तो साधक को पूर्ण फल प्राप्त नहीं होता, इसलिए कथा का पाठ अवश्य करना चाहिए।
मां शैलपुत्री को खीर, दूध से बनी मिठाइयाँ जैसे बर्फी और रबड़ी बहुत प्रिय हैं। इसके अलावा नारियल का पानी, नारियल का बुरादा, मावे के लड्डू और सफेद रंग की मिठाइयाँ भी मां को अर्पित की जा सकती हैं। विशेष रूप से खीर और रबड़ी का भोग लगाना अत्यंत शुभ माना जाता है। मान्यता है कि इन प्रसादों को अर्पित करने से घर में सुख-शांति बनी रहती है और जीवन के भय तथा कष्टों से मुक्ति मिलती है।
स्नान और शुद्धता - सुबह स्नान करके साफ-सुथरे वस्त्र धारण करें और पूजा स्थल को गंगाजल या स्वच्छ जल से शुद्ध करें।
आसन और संकल्प - माँ शैलपुत्री की प्रतिमा या चित्र को स्वच्छ स्थान पर स्थापित करें। उन्हें लाल या सफेद फूलों की माला अर्पित करें। घी/तेल का दीपक जलाएं और धूप-अगरबत्ती अर्पित करें। संकल्प लें कि आप श्रद्धा से भोग अर्पित कर रहे हैं।
भोग का चयन - मां शैलपुत्री को शुद्ध और सात्विक भोग अर्पित करना शुभ माना जाता है। खीर, दूध से बनी मिठाइयाँ जैसे बर्फी और रबड़ी, मावे के लड्डू तथा सफेद रंग की मिठाइयाँ मां को विशेष रूप से प्रिय हैं।
भोग अर्पण की विधि - खीर, रबड़ी, बर्फी या चुने हुए भोग को स्वच्छ पात्र में सजाकर मां को अर्पित करें। भोग को ताम्बे/पीतल या साफ चांदी/स्टील की थाली में रखें। थाली को माँ के चरणों में रखें और “ॐ देवी शैलपुत्र्यै नमः” मंत्र का जप करें।
भोग का नियम - भोग अर्पित करने के बाद पूजा पूर्ण करें। भोग अर्पित करने के बाद उसे प्रसाद के रूप में ग्रहण करें और परिवारजनों को भी बाँटें।
इसी कारण माँ शैलपुत्री को उनका प्रिय भोग अर्पित करना मनोकामना सिद्धि और ग्रहदोष शांति के लिए अत्यंत शुभ माना गया है। माना जाता है कि माँ को प्रिय भोग अर्पित करने से साधक को मानसिक शांति, पारिवारिक सुख-समृद्धि और जीवन की सभी इच्छाओं की पूर्ति होती है। सच्ची श्रद्धा से चढ़ाया गया यह भोग भक्त को सुख, समृद्धि और आध्यात्मिक उन्नति की ओर अग्रसर करता है।
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