क्या आप जानते हैं माँ स्कंदमाता को कौन सा फल सबसे प्रिय है और इसे अर्पित करने से भक्तों को क्या लाभ मिलता है? यहाँ पढ़ें पूरी जानकारी सरल शब्दों में।
नवरात्रि के पाँचवें दिन माँ स्कंदमाता की पूजा होती है। वे भगवान कार्तिकेय की माता और करुणामयी स्वरूप हैं। उनकी उपासना से बुद्धि, विवेक और संतान सुख प्राप्त होता है। भक्त उन्हें पुष्प, दीप और प्रिय भोग अर्पित कर प्रसन्न करते हैं।
माँ स्कंदमाता, दुर्गा जी का पाँचवा स्वरूप है, जिनकी पूजा नवरात्रि के पाँचवे दिन विशेष रूप से की जाती है। इन्हें भगवान कार्तिकेय (स्कंद) की माता होने के कारण यह नाम प्राप्त हुआ। माँ स्कंदमाता का स्वरूप अत्यंत शांत और करुणामयी है। इनकी साधना करने से बुद्धि, विवेक और संतानों का सुख प्राप्त होता है। भक्त माँ को प्रसन्न करने के लिए पूजन में पुष्प, दीप और विशेष भोग अर्पित करते हैं। माना जाता है कि यदि प्रिय फल अर्पित किया जाए तो देवी और अधिक प्रसन्न होती हैं।
धार्मिक मान्यताओं और परंपराओं के अनुसार माँ स्कंदमाता को केला विशेष रूप से प्रिय है। नवरात्रि के पाँचवे दिन जब भक्त उनकी पूजा करते हैं, तो भोग के रूप में केला अर्पित करते हैं। केला साधारण और आसानी से उपलब्ध होने वाला फल है, जिसे अर्पित करना माँ की सरलता और मातृत्व की भावना का प्रतीक माना जाता है।
उनके पसंदीदा फल का महत्व
केला फल सिर्फ भोग का हिस्सा नहीं है, बल्कि इसका धार्मिक महत्व भी है। सरलता और भक्ति का प्रतीक - केला बहुत साधारण फल है। इसे अर्पित करने से यह भाव व्यक्त होता है कि माँ को दिखावा नहीं, बल्कि शुद्ध भक्ति प्रिय है।
सुख-समृद्धि का संकेत - पीले रंग का यह फल सूर्य और ऊर्जा का प्रतीक है। यह घर में समृद्धि और सकारात्मकता लाता है।
संतान सुख से जुड़ा महत्व - माँ स्कंदमाता को संतान सुख की दात्री माना जाता है। केले का भोग अर्पित करने से संतान की उन्नति और मंगल की कामना पूरी होती है।
ज्ञान और विवेक की प्राप्ति - पीला रंग बुद्धि और ज्ञान का प्रतीक है। केले का अर्पण करके साधक विवेक और आंतरिक शक्ति प्राप्त करता है।
माँ स्कंदमाता को उनका प्रिय फल अर्पित करने के लिए कुछ नियम और विधियाँ होती हैं। यदि इन्हें श्रद्धा और शुद्ध भाव से किया जाए तो पूजा का फल और अधिक श्रेष्ठ मिलता है।
स्वच्छता और तैयारी
पूजा से पहले स्नान करके स्वच्छ वस्त्र पहनना आवश्यक है। पूजा स्थल को साफ करें और वहाँ पीला या सफेद कपड़ा बिछाएँ। स्वच्छता देवी की आराधना का प्रथम नियम है।
मूर्ति या चित्र की स्थापना
माँ स्कंदमाता की प्रतिमा या चित्र को पूजा स्थान पर स्थापित करें। इसे पीले फूलों, सिंदूर और चावल से सजाएँ। दीपक और धूप प्रज्वलित कर वातावरण को पवित्र बनाएँ।
फल का शुद्धिकरण
केले को अच्छे से धोकर स्वच्छ थाल में रखें। यह प्रक्रिया प्रतीक है कि भक्त अपनी अर्पित वस्तु को निर्मल और पवित्र बनाकर माँ को समर्पित कर रहा है।
मंत्र जप और अर्पण
मंत्रों का उच्चारण करते हुए केले को माँ के चरणों में अर्पित करें। भक्ति भाव से बोले गए मंत्र साधना को पूर्णता देते हैं।
प्रसाद का वितरण
पूजा पूर्ण होने पर अर्पित फल को प्रसाद स्वरूप परिवार और अन्य भक्तों में बाँट दें। इसे कभी व्यर्थ न करें, क्योंकि यह अब साधारण फल नहीं बल्कि देवी का आशीर्वाद बन चुका है।
माँ स्कंदमाता को उनका प्रिय फल अर्पित करने से भक्त को कई प्रकार के आध्यात्मिक और सांसारिक लाभ प्राप्त होते हैं।
सुख-समृद्धि की प्राप्ति
केले का भोग अर्पित करने से घर में शांति, समृद्धि और खुशहाली आती है। जीवन की बाधाएँ धीरे-धीरे दूर होती हैं।
संतान सुख की प्राप्ति
स्कंदमाता संतान सुख देने वाली मानी जाती हैं। उनके प्रिय भोग के रूप में केले का अर्पण संतान की उन्नति और सुख-समृद्धि का कारण बनता है।
आत्मबल और साहस में वृद्धि
देवी सिंहवाहिनी हैं। भोग अर्पित करने वाले भक्त को साहस और आत्मविश्वास मिलता है, जिससे कठिन परिस्थितियों में धैर्य बना रहता है।
मन की शुद्धि और भक्ति में वृद्धि
श्रद्धा से फल अर्पित करने पर भक्त का मन पवित्र होता है और भक्ति भाव प्रबल होता है। यह साधना को प्रभावी बनाता है।
ज्ञान और विवेक की प्राप्ति
पीले रंग के फल का अर्पण बुद्धि और ज्ञान का प्रतीक है। इससे साधक के भीतर विवेक और निर्णय लेने की शक्ति बढ़ती है।
पूजा का फल तभी पूर्ण होता है जब साधक पूरी निष्ठा और सही नियमों का पालन करता है।
ताजे और शुद्ध फल का उपयोग
सड़े-गले या कीड़े लगे फल कभी अर्पित न करें। केवल ताजे और पके केले ही भोग के लिए उपयोग करें।
पूजा से पहले स्वच्छता
फल अर्पित करने से पहले हाथ-पाँव अच्छी तरह धोएँ और पूजा स्थल को साफ-सुथरा रखें।
मन की स्थिति
क्रोध, उदासी या विचलित मन से पूजा न करें। माँ को फल चढ़ाते समय मन शांति और भक्ति से भरा होना चाहिए।
फल का अपमान न करें
अर्पित किए गए फल को कभी फेंकें नहीं। इसे प्रसाद मानकर ग्रहण करें या दूसरों में बाँट दें।
समय और विधि का पालन
नवरात्रि के पाँचवें दिन प्रातःकाल या शुभ मुहूर्त में ही फल अर्पित करना सबसे उत्तम माना जाता है। जल्दबाज़ी या लापरवाही से पूजा अधूरी मानी जाती है।
लोक मान्यता है कि एक भक्त ने नवरात्रि के दौरान माँ को भक्ति भाव से सिर्फ केला अर्पित किया। उसकी सच्ची श्रद्धा से प्रसन्न होकर माँ ने उसकी सभी इच्छाएँ पूरी कर दीं। तभी से यह मान्यता और भी प्रचलित हो गई कि माँ स्कंदमाता को केले का भोग चढ़ाने से वे शीघ्र प्रसन्न होती हैं। एक अन्य मान्यता के अनुसार संतान सुख की इच्छा रखने वाले दंपत्ति यदि नवरात्रि में माँ को केले का भोग अर्पित करें तो उन्हें विशेष आशीर्वाद मिलता है।
माँ स्कंदमाता की पूजा नवरात्रि के पाँचवें दिन अत्यंत शुभ मानी जाती है। उनके प्रिय फल केले का भोग चढ़ाने से भक्तों को सुख, शांति, समृद्धि और संतान सुख की प्राप्ति होती है। पूजा करते समय शुद्धता और भक्ति भाव का ध्यान रखना सबसे आवश्यक है। फल केवल भौतिक अर्पण नहीं, बल्कि हमारी श्रद्धा और विश्वास का प्रतीक है। इसलिए माँ को केला अर्पित करना सरलता और सच्चे प्रेम से किया गया वह समर्पण है, जो साधक के जीवन को मंगलमय बना देता है।
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