क्या आप जानते हैं माँ कात्यायनी का प्रिय भोग कौन सा है और इसे अर्पित करने से भक्तों को क्या फल प्राप्त होते हैं? यहाँ पढ़ें पूरी जानकारी सरल शब्दों में।
नवरात्रि के छठे दिन मां दुर्गा के छठे स्वरूप, मां कात्यायनी की पूजा होती है। सिंह पर सवार मां कात्यायनी की पूजा से रोग, भय और शोक का नाश होता है। ऐसे में आइए जानते हैं मां कात्यायनी की कौन है, पूजा विधि, भोग आदि के बारे में।
मां कात्यायनी, मां दुर्गा का छठा स्वरूप मानी जाती हैं, जिनकी पूजा नवरात्रि के छठे दिन की जाती है। शास्त्रों के अनुसार, ऋषि कात्यायन ने मां भगवती की घोर तपस्या की थी। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर आदिशक्ति ने उनके घर पुत्री रूप में जन्म लिया। इसी कारण इन्हें कात्यायनी कहा गया।
मां कात्यायनी का स्वरूप अत्यंत तेजस्वी और दिव्य है। उनका रंग सुनहरा है, वे चार भुजाओं वाली हैं। उनके दाहिने हाथों में अभय और वरमुद्रा होती है, जबकि बाएं हाथों में तलवार और कमल का पुष्प सुशोभित होता है। वे सिंह पर सवार होकर महिषासुर का वध करती हैं, इसलिए इन्हें युद्ध की देवी भी कहा जाता है। जानकारी के अनुसार, महिषासुर से युद्ध के दौरान जब मां थक गईं, तो उन्होंने शहद युक्त पान ग्रहण किया जिससे उनकी थकान दूर हो गई और उन्होंने महिषासुर का वध कर धरती पर धर्म की स्थापना की।मां कात्यायनी की उपासना से आत्मविश्वास, शक्ति और साहस की प्राप्ति होती है तथा जीवन में सुख, शांति और समृद्धि आती है।
नवरात्रि के छठे दिन माँ कात्यायनी की पूजा विशेष फलदायी मानी जाती है। उनकी कृपा पाने के लिए भोग में विशेष चीज़ें अर्पित करनी चाहिए। शास्त्रों के अनुसार, माँ कात्यायनी को शहद युक्त पान अत्यंत प्रिय है। ऐसा माना जाता है कि इससे मां प्रसन्न होती हैं और भक्तों के जीवन में मधुरता आती है, विशेषकर वैवाहिक जीवन में। शहद न केवल भोग के रूप में दिया जा सकता है, बल्कि इसे किसी मिठाई या व्यंजन में मिलाकर भी अर्पित किया जा सकता है।
अन्य भोग विकल्प
माँ कात्यायनी को शहद से बनी मिठाइयाँ भी बहुत प्रिय हैं। आप शहद डालकर खीर या बादाम का हलवा बना सकते हैं, जो स्वाद में भी समृद्ध होते हैं और माँ को बहुत भाते हैं। इसके अलावा, पीले रंग की मिठाइयाँ जैसे बेसन के लड्डू, केसरिया भात या केसरयुक्त खीर भी चढ़ाई जा सकती हैं, क्योंकि माँ को पीला रंग प्रिय है। माँ को लाल रंग की वस्तुएँ भी पसंद हैं, इसलिए आप पूजा में लाल फूल, लाल चुनरी और लाल मिठाइयाँ शामिल कर सकते हैं। इसके अलावा, माँ को फल अर्पित करना भी शुभ माना जाता है। विशेष रूप से जयफल जैसे फल माँ को प्रिय हैं, जिन्हें आप पूजा में शामिल कर सकते हैं।
माँ कात्यायनी को प्रिय भोग अर्पित करना भक्त की श्रद्धा और समर्पण का प्रतीक होता है। देवी को प्रसन्न करने के लिए शहद, शहद से बनी मिठाइयाँ, पीले व लाल रंग की मिठाइयाँ, तथा खास फल जैसे जयफल अर्पित किए जाते हैं। शास्त्रों के अनुसार, जब कोई भक्त देवी को उनकी प्रिय वस्तुएँ अर्पित करता है, तो यह उनके प्रति भक्ति भाव की सर्वोच्च अभिव्यक्ति होती है। ऐसा करने से मां जल्दी प्रसन्न होती हैं और अपने भक्तों को विशेष कृपा प्रदान करती हैं। यह भी मान्यता है कि मनचाही वस्तु अर्पित करने से मनोकामनाएं शीघ्र पूर्ण होती हैं। विशेषकर कुंवारी कन्याओं को विवाह संबंधी बाधाओं से मुक्ति मिलती है और घर-परिवार में शांति और समृद्धि आती है। इसलिए भोग केवल एक परंपरा नहीं, बल्कि आध्यात्मिक संबंध का माध्यम होता है।
माँ कात्यायनी की पूजा करने से पहले स्नान करके स्वच्छ और शुद्ध वस्त्र पहनने चाहिए।
पूजा स्थान को अच्छे से साफ करके वहां आसान बिछाएं।
पूजा के समय हरे या नारंगी रंग के वस्त्र पहनना शुभ माना जाता है। फिर माँ की प्रतिमा या चित्र को स्थापित कर उन्हें फूल, धूप, दीप, और कुमकुम अर्पित करें।
मंत्र जाप के साथ पूजा प्रारंभ करें। “ॐ देवी कात्यायन्यै नमः” इस बीज मंत्र का 108 बार जाप करें और साथ ही दुर्गा सप्तशती या देवी स्तुति का पाठ करें।
इसके बाद माँ को शहद, शहद की खीर, बादाम का हलवा, या पीले-लाल रंग की मिठाई अर्पित करें।
भोग को एक स्वच्छ थाल में रखकर देवी को अर्पित करें। दीपक जलाकर माँ से आशीर्वाद मांगें और फिर उस भोग को प्रसाद के रूप में सब में बाँटें।
यह विधि घर में सकारात्मकता और शांति लाने वाली मानी जाती है।
भोग लगाने के नियम
भोग लगाने से पहले कुछ आवश्यक नियमों का पालन करना जरूरी है ताकि पूजा का पूर्ण फल प्राप्त हो।
सबसे पहले, भक्त को प्रातः स्नान कर शुद्ध वस्त्र पहनने चाहिए। इसके बाद पूजा स्थान को अच्छे से साफ करना चाहिए। क्योंकि देवी को स्वच्छता बहुत प्रिय है।
पूजा करते समय मां के प्रिय रंग का वस्त्र धारण करना शुभ माना गया है।
पूजा शुरू करने से पहले दीपक और धूप जलाएं। देवी की मूर्ति या तस्वीर के समक्ष बैठकर उनका बीज मंत्र ॐ देवी कात्यायन्यै नमः108 बार जपें।
इसके साथ दुर्गा सप्तशती और देवी स्तुति का पाठ करें।
भोग को हमेशा स्वच्छ थाल में रखें और सीधे माँ के सामने अर्पित करें।
बिना दीप-धूप के भोग अर्पण अधूरा माना जाता है।
भोग अर्पित करने के बाद उसे सभी परिजनों में प्रसाद रूप में बांटना भी आवश्यक होता है, जिससे देवी की कृपा सब पर बनी रहती है।
माँ कात्यायनी को प्रिय भोग अर्पण करने से भक्तों को कई आध्यात्मिक और सांसारिक लाभ प्राप्त होते हैं।
सबसे प्रमुख लाभ यह होता है कि जीवन में सुख, शांति और समृद्धि का वास होता है।
माँ की कृपा से जीवन में नकारात्मक ऊर्जा का नाश होता है और परिवार में सौहार्द बना रहता है।
विशेष रूप से जिन कन्याओं के विवाह में बाधाएँ आती हैं, उनके लिए माँ कात्यायनी की पूजा और प्रिय भोग अत्यंत लाभकारी माने गए हैं।
आर्थिक समस्याएं दूर होती हैं, ऋण से मुक्ति मिलती है और स्वास्थ्य में सुधार आता है।
भोग लगाने से भय और मानसिक तनाव दूर होते हैं और साधक को अपने जीवन में सकारात्मक परिवर्तन अनुभव होता है।
देवी के आशीर्वाद से हर कार्य में सफलता मिलती है और जीवन में स्थिरता आती है।
माँ कात्यायनी की पूजा और उन्हें प्रिय भोग अर्पित करना सिर्फ एक धार्मिक कर्तव्य नहीं, बल्कि आध्यात्मिक शक्ति का आह्वान है। यह साधक को आंतरिक शक्ति, साहस और विश्वास प्रदान करता है। विशेष रूप से कुंवारी कन्याओं को विवाह संबंधी समस्याओं से मुक्ति और परिवार को सुख-समृद्धि प्राप्त होती है।
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