क्या आप जानते हैं माँ कूष्माण्डा किसकी प्रतीक मानी जाती हैं और उनके स्वरूप का क्या महत्व है? यहाँ पढ़ें माँ कूष्माण्डा के प्रतीकात्मक अर्थ की विस्तृत जानकारी।
मां कूष्माण्डा नवदुर्गा का चौथा स्वरूप हैं, जिन्हें सृष्टि की जननी और ऊर्जा का प्रतीक माना जाता है। उन्होंने अपने दिव्य हास्य से ब्रह्मांड की रचना की थी। तेजस्वी और अष्टभुजाधारी यह देवी शक्ति और सकारात्मक ऊर्जा का प्रतीक मानी जाती हैं। इस लेख में जानिए मां कूष्माण्डा के प्रतीक का महत्व और उससे जुड़ी खास मान्यताएँ।
नवरात्रि के चौथे दिन, एक ऐसी देवी की पूजा की जाती है, जिनकी एक मंद मुस्कान ने पूरे ब्रह्मांड को जन्म दिया। यह देवी हैं माँ कूष्माण्डा, जिनका स्वरूप न केवल तेजस्वी है बल्कि वे सृष्टि, ऊर्जा और जीवन शक्ति का भी प्रतीक हैं। जब चारों ओर अंधकार और शून्य था, तब उन्होंने अपनी दैवीय शक्ति से इस ब्रह्मांड की रचना की। उनकी महिमा और महत्व को समझना, नवरात्रि की आध्यात्मिक यात्रा का एक महत्वपूर्ण पड़ाव है।
माँ कूष्माण्डा का नाम ही उनके विराट स्वरूप को परिभाषित करता है। यह नाम तीन संस्कृत शब्दों से मिलकर बना है:
इस प्रकार, ‘कूष्माण्डा’ का अर्थ है ‘वह देवी जिसने अपने भीतर एक छोटे से ब्रह्मांडीय अंडे को धारण किया और अपनी ऊष्मा से उसे उत्पन्न किया’। वह सृष्टि की आदि शक्ति हैं और सभी ऊर्जाओं का स्रोत हैं।
माँ कूष्माण्डा कई महत्वपूर्ण बातों का प्रतीक हैं, जो उनके स्वरूप और कार्यों में दिखाई देती हैं:
माँ कूष्माण्डा से जुड़ी सबसे प्रमुख पौराणिक कथा सृष्टि की रचना की है। यह कथा बताती है कि कैसे उन्होंने शून्य से जीवन का सृजन किया:
जब ब्रह्मांड का अस्तित्व नहीं था, हर तरफ केवल अंधकार और शून्य था, तब देवी आदिशक्ति ने अपनी मंद मुस्कान से इस ब्रह्मांड की रचना की। उन्होंने स्वयं को कूष्माण्डा के रूप में प्रकट किया। उनकी हंसी से ही ब्रह्मांड का निर्माण हुआ, और उनकी ऊर्जा से ही सूर्य को प्रकाश मिला। इस प्रकार, वह ब्रह्मांड को संचालित करने वाली आदि शक्ति बनीं।
एक अन्य मान्यता के अनुसार, जब सभी देवता और ऋषि राक्षस कुष्मांडा से त्रस्त थे, तब देवी ने अपना कूष्माण्डा स्वरूप धारण किया और उस राक्षस का वध कर सभी को भय से मुक्त किया।
नवरात्रि के चौथे दिन माँ कूष्माण्डा की पूजा विधि-विधान से करनी चाहिए। उनकी पूजा से कई लाभ मिलते हैं:
पूजा विधि
1. सफाई और स्नान
प्रातः स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें। पूजा स्थल पर लाल या पीले रंग का स्वच्छ कपड़ा बिछाकर माँ की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें। कलश स्थापना करें और उसमें जल, सुपारी, अक्षत, आम के पत्ते तथा नारियल रखें।
2. आवाहन
हाथ में अक्षत और फूल लेकर माँ कूष्माण्डा का ध्यान करें। मंत्र जपते हुए देवी का आवाहन करें – “ॐ ऐं ह्रीं क्लीं कूष्माण्डायै नमः।”
3. अर्चन और भोग
माँ को धूप, दीप, पुष्प, रोली, चंदन और सिंदूर अर्पित करें। देवी को गंध, अक्षत और वस्त्र चढ़ाएँ। माँ कूष्माण्डा को मालपुआ अति प्रिय है, अतः भोग में इसे अर्पित करना अत्यंत शुभ माना जाता है। इसके अतिरिक्त नारंगी या हरे फल भी अर्पित किए जा सकते हैं।
4. मंत्र जाप और आरती
घी का दीपक जलाकर उनके मंत्रों का जाप करें। यह जाप मन की एकाग्रता बढ़ाता है। अंत में, श्रद्धापूर्वक उनकी आरती करें। मुख्य मंत्र: "ॐ देवी कूष्माण्डायै नमः।" ध्यान मंत्र: "सुरासंपूर्णकलशं रुधिराप्लुतमेव च। दधाना हस्तपद्माभ्यां कूष्माण्डा शुभदास्तु मे।"
पूजा के लाभ
माँ कूष्माण्डा का स्वरूप हमें यह सिखाता है कि सृष्टि का सृजन और जीवन का विकास एक दिव्य ऊर्जा का परिणाम है। उनकी पूजा करके हम न केवल अपनी रचनात्मकता और ज्ञान को बढ़ाते हैं, बल्कि जीवन की सभी बीमारियों और कष्टों से भी मुक्ति पाते हैं। नवरात्रि का चौथा दिन हमें यह स्मरण कराता है कि जीवन में हर नई शुरुआत, चाहे वह कितनी भी छोटी क्यों न हो, एक ब्रह्मांडीय ऊर्जा का हिस्सा है।
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