भगवान शिव के पंच केदार में एक तुंगनाथ मंदिर है, जो विश्व का सबसे ऊंचा शिव मंदिर भी है। जानिए 2026 में मंदिर के कपाट खुलने की तिथि और दर्शन की जानकारी।
उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले में स्थित तुंगनाथ मंदिर भगवान शिव को समर्पित एक बहुत ही पुराना और पवित्र मंदिर है। यह मंदिर एक ऊंचे पहाड़ पर स्थित है और इसे पंच केदारों में से एक माना जाता है। चारों ओर से बर्फ से ढका यह मंदिर बहुत ही शांत और सुंदर वातावरण में स्थित है। आइए जानते हैं कि साल 2016 में इस मंदिर के कपाट कब खुलेंगे?
भगवान शिव का यह मंदिर लगभग 3640 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है, जो इसे पंच केदारों में सबसे ऊंचा बनाता है। हिमालय की गोद में बसा यह स्थान प्रकृति की सुंदरता से भरपूर है और यहाँ आकर मन को शांति मिलती है। हर साल सावन के महीने में, जब भगवान शिव की पूजा का विशेष महत्व होता है, तब यहां हजारों श्रद्धालु दर्शन के लिए आते हैं। भक्त यहां बहुत मुश्किल चढ़ाई पार करके भगवान भोलेनाथ के दर्शन करते हैं और आशीर्वाद पाते हैं।
भोलेनाथ का मंदिर गढ़वाल क्षेत्र के हिमालय में स्थित है और चारों ओर ऊंचे-ऊंचे पहाड़, हरियाली और बर्फ की चादर इसकी सुंदरता को और भी बढ़ा देते हैं। यहां की यात्रा ना केवल धार्मिक होती है, बल्कि प्रकृति प्रेमियों के लिए भी एक खास अनुभव होती है।
पवित्र धाम तुंगनाथ मंदिर के कपाट 2 मई 2025 से भक्तों के लिए खुल चुके हैं और दर्शन भी शुरू हो चुके हैं। इस मंदिर को भगवान शिव का सबसे ऊँचा मंदिर माना जाता है, जो समुद्र तल से 3680 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है। इस दिन मंदिर के कपाट सुबह 10:15 बजे खोले गए थे। हालांकि अगले साल यानी 2026 में तुंगनाथ के कपाट 2 मई को खुलने की उम्मीद है।
भगवान शिव के पंच केदारों में से एक, तुंगनाथ मंदिर, श्रद्धालुओं की आस्था का प्रमुख केंद्र है। खासकर सावन का महीना यहां विशेष पूजा-अर्चना के लिए जाना जाता है। वर्ष 2025 में सावन मास की शुरुआत 11 जुलाई से होगी और यह पावन माह 9 अगस्त तक चलेगा। इस दौरान भक्त बड़ी संख्या में तुंगनाथ पहुंचकर भोलेनाथ का जलाभिषेक करते हैं।
सावन के प्रत्येक सोमवार का अत्यधिक महत्व होता है, क्योंकि ऐसा माना जाता है कि इस दिन शिवजी पर जल चढ़ाने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं और जीवन में सुख-शांति आती है। इस बार सावन में कुल चार सोमवार आएंगे, जिन पर व्रत, पूजा और विशेष शिव आराधना का विशेष फल प्राप्त होता है।
तुंगनाथ मंदिर हर साल ठंड में बर्फबारी के कारण बंद कर दिया जाता है और गर्मियों की शुरुआत में दोबारा खोला जाता है। कपाट खुलने और बंद होने की एक खास धार्मिक परंपरा होती है।
अक्षय तृतीया के दिन या आसपास मंदिर के कपाट खोले जाते हैं।
कपाट खोलने से पहले भगवान शिव की पूजा और मंत्रोच्चारण के साथ धार्मिक अनुष्ठान किया जाता है।
भगवान तुंगनाथ की डोली को मक्कू गांव से मंदिर तक लाया जाता है।
यात्रा के दौरान भक्त ढोल-नगाड़ों और भजनों के साथ भगवान की डोली को मंदिर तक लेकर जाते हैं।
डोली के मंदिर पहुंचने के बाद कपाट खोले जाते हैं और भक्तों को दर्शन का अवसर मिलता है।
तुंगनाथ के कपाट दीपावली के बाद बंद कर दिए जाते हैं।
इसके बाद भगवान तुंगनाथ की डोली को फिर से मक्कू गांव लाया जाता है, जहां सर्दियों में उनकी पूजा होती है।
भोलेनाथ के तुंगनाथ मंदिर पहुंचने के लिए यात्री उखीमठ के रास्ते से जा सकते हैं। यहां से जो सड़क मार्ग जाता है वहां से मंदाकिनी घाटी में प्रवेश किया जाता है। वहीं के रास्ते में अगस्त्यमुनि नाम का एक छोटा सा कस्बा आता है, जहां से हिमालय की नंदा खाट चोटी का सुंदर नज़ारा देखने को मिलता है।
चोपता से तुंगनाथ मंदिर की दूरी सिर्फ 3 किलोमीटर है। यात्री बस या गाड़ी से चोपता तक पहुंच सकते हैं, फिर वहां से मंदिर तक पैदल यात्रा करनी होती है।
नवंबर के बाद इस क्षेत्र में बर्फ गिरने लगती है और मंदिर पूरी तरह बर्फ से ढक जाता है।
तुंगनाथ जाने का सबसे अच्छा समय जुलाई से अगस्त के बीच होता है। इस समय यहां की प्राकृतिक सुंदरता और भी बढ़ जाती है। चारों ओर हरियाली होती है और बुरांश के लाल फूल पर्यटकों को आकर्षित करते हैं।
स्थानीय लोग ऐसा मानते हैं माता पार्वती ने भगवान शिव को पाने के लिए यहीं पर कठोर तपस्या की थी। मंदिर से जुड़ी एक और कथा है कि भगवान राम ने रावण का वध करने के बाद ब्रह्महत्या के दोष से मुक्ति पाने के लिए इसी जगह पर तप किया था। इसी वजह से इस स्थान को चंद्रशिला कहा जाता है।हिंदू सनातन धर्म में ऐसी मान्यता है कि तुंगनाथ मंदिर को पांडवों ने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए बनया था। ऐसा भी कहा जाता है कि कुरुक्षेत्र में जो युद्ध हुआ और उसमें हुए नरसंहार से भगवान शिव पांडवों से नाराज़ हो गए थे। उन्हें प्रसन्न करने के लिए पांडवों ने इस सुंदर और शांत जगह पर शिव जी का यह मंदिर बनवाया।हिन्दू धर्म और भोलेनाथ को मानने वालों के लिए तुंगनाथ मंदिर केवल भगवान शिव का पवित्र स्थान नहीं है, बल्कि यह आस्था, पुरानी कहानियों और सुंदर प्रकृति का मिलन है। यहां आने पर भक्तों को मन की शांति और भगवान शिव का आशीर्वाद मिलता है।
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