
क्या आप जानते हैं स्कंद षष्ठी 2026 कब है? यहां जानिए तिथि, पूजा-विधि, व्रत नियम, शुभ मुहूर्त और भगवान कार्तिकेय (मुरुगन) की आराधना से जुड़ी सभी धार्मिक परंपराओं की संपूर्ण जानकारी एक ही स्थान पर
स्कंद षष्ठी भगवान कार्तिकेय या स्कंद जी की विशेष पूजा का पर्व है, जो आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी को मनाया जाता है। इस दिन भक्त उपवास रखते हैं और भगवान की आराधना करते हैं। विशेष रूप से उनके सम्मान में दुर्गा माता और शिवजी की भी पूजा होती है। यह दिन वीरता, शक्ति और ज्ञान प्राप्ति का प्रतीक माना जाता है।
स्कंद षष्ठी के दिन मां पार्वती और शिव जी के पुत्र कार्तिकेय जी की आराधना की जाती है। कुमार कार्तिकेय का नाम स्कंद भी है। इसलिए इसे स्कंद षष्ठी के नाम से भी जाना जाता है। मान्यता है कि परिवार में सुख-शांति और संतान प्राप्ति के लिए स्कंद षष्ठी का व्रत बेहद खास महत्व रखता है।
स्कंद षष्ठी का व्रत प्रत्येक माह के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को रखा जाता है।
हालाँकि, सबसे प्रमुख और महत्वपूर्ण स्कंद षष्ठी का पर्व कार्तिक मास में मनाया जाता है। इसे ‘कंद षष्ठी’ भी कहते हैं। यह आमतौर पर दिवाली के लगभग एक सप्ताह बाद आता है
आगामी स्कंद षष्ठी तिथियाँ (वर्ष 2025 के अनुसार):
स्कंद षष्ठी का यह व्रत दक्षिण भारत के प्रमुख त्योहारों में अपना विशेष स्थान रखता है। इस क्षेत्र में, भगवान कार्तिकेय को श्रद्धापूर्वक कुमार, मुरुगन और सुब्रह्मण्यम जैसे अनेक नामों से जाना और पूजा जाता है। उत्तर भारत में कार्तिकेय को गणेश का बड़ा भाई माना जाता है लेकिन दक्षिण भारत में कार्तिकेय गणेश जी के छोटे भाई माने जाते हैं। इसलिए हर महीने की षष्ठी को स्कंद षष्ठी मनाई जाती है। षष्ठी तिथि कार्तिकेय जी की तिथि होने के कारण इसे कौमारिकी भी कहा जाता है।
स्कंद षष्ठी के दिन व्रत और पूजा इस विधि से की जाती है:
व्रत का संकल्प: सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें। हाथ में जल लेकर व्रत का संकल्प करें। पूजा की तैयारी: घर के मंदिर में या पूजा स्थान पर भगवान कार्तिकेय की मूर्ति या चित्र स्थापित करें। (दक्षिण भारत में मुरुगन की पूजा का विशेष महत्व है)। पूजन: भगवान कार्तिकेय को पंचामृत (दूध, दही, घी, शहद, शक्कर) से स्नान कराएँ। उन्हें पुष्प, चंदन, हल्दी, कुमकुम, वस्त्र (पीले या लाल रंग के) और विशेष रूप से मोर पंख (जो उनका वाहन है) अर्पित करें। भोग: उन्हें फल, मिठाई, और विशेष रूप से मिष्ठान का भोग लगाएँ। कई लोग इस दिन केवल फल या दूध का सेवन करते हैं। मंत्र जाप: ‘ॐ कार्तिकेयाय नमः’ या ‘ॐ शरवणभवाय नमः’ मंत्र का जाप करें। इस दिन ‘कंद षष्ठी कवचम्’ का पाठ करना अत्यंत फलदायी माना जाता है। व्रत का नियम: भक्त सूर्योदय से लेकर सूर्यास्त तक पूर्ण या आंशिक उपवास रखते हैं। कुछ लोग बिना जल के भी उपवास करते हैं, जबकि कुछ लोग केवल फल और दूध ग्रहण करते हैं। समापन: शाम को पूजा और आरती के बाद, तारों को देखकर या चंद्र दर्शन के बाद व्रत का पारण किया जाता है
स्कंद षष्ठी का व्रत रखने से भक्तों को निम्नलिखित लाभ प्राप्त होते हैं:
संतान सुख: यह व्रत संतानहीन दंपतियों को योग्य और तेजस्वी संतान की प्राप्ति का वरदान देता है। शत्रुओं पर विजय: भगवान कार्तिकेय की कृपा से सभी विरोधी और शत्रु कमजोर पड़ते हैं और भक्त को हर क्षेत्र में विजय प्राप्त होती है। उत्तम स्वास्थ्य: यह व्रत रोगों से मुक्ति दिलाता है और उत्तम स्वास्थ्य तथा दीर्घायु प्रदान करता है। ज्ञान और बुद्धि: भगवान मुरुगन की पूजा से ज्ञान और विवेक में वृद्धि होती है, जिससे सही निर्णय लेने की क्षमता बढ़ती है। समृद्धि: यह व्रत जीवन में सुख, शांति और भौतिक समृद्धि लाता है।
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