
क्या आप जानते हैं शाकंभरी पूर्णिमा 2026 कब है? जानिए इस पवित्र तिथि, पूजा विधि, मुहूर्त और मां शाकंभरी देवी की कृपा पाने का रहस्य – सब कुछ एक ही जगह!
हिंदू धर्म के पावन पर्वों में से एक है ‘शाकंभरी पूर्णिमा’, जिसे ‘शाकंभरी जयंती’ के नाम से भी जाना जाता है। यह पर्व हर वर्ष पौष माह की पूर्णिमा तिथि को मनाया जाता है। इस दिन श्रद्धालु ‘देवी शाकंभरी’ की पूजा-अर्चना करके उनसे आशीर्वाद प्राप्त करते हैं और जीवन में समृद्धि, स्वास्थ्य और सुख-शांति की कामना करते हैं।
शाकंभरी पूर्णिमा हर वर्ष पौष मास की पूर्णिमा तिथि को मनाई जाती है। यह तिथि चंद्र कैलेंडर पर आधारित होती है। इस दिन देवी शाकंभरी की पूजा करना विशेष लाभकारी माना गया है।
2026 में शाकंभरी जयंती 3 जनवरी, शनिवार को मनाई जाएगी।
पूर्णिमा का दिन चंद्रमा की पूर्णता का प्रतीक है और इसे विशेष पवित्र दिन माना जाता है। मान्यता है कि इस दिन देवी शाकंभरी की पूजा करने से जातक की सभी मनोकामनाओं की पूर्ति होती है और जीवन में संतुलन आता है।
शाकंभरी देवी को शक्ति और प्रकृति की देवी माना जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, एक समय पृथ्वी पर अकाल पड़ा और जीव-जंतु तथा मानव भूख से पीड़ित थे। तब देवी शाकंभरी ने अपनी दिव्य शक्ति से फल, अन्न और सब्जियां प्रदान कीं। यही कारण है कि उनका नाम शाक (सब्जी) + अंभरी (भरने वाली) पड़ा। शाकंभरी देवी को कृषि और प्रकृति की देवी भी कहा जाता है। वे हर प्रकार की प्राकृतिक आपदा को दूर करने वाली और समृद्धि लाने वाली मानी जाती हैं।
आठ दिन तक चलने वाली शाकंभरी नवरात्रि का समापन भी शाकंभरी पूर्णिमा पर होता है। आपको बता दें कि ये नवरात्रि पौष शुक्ल अष्टमी से आरम्भ होकर पौष पूर्णिमा पर समाप्त होती है। इन दिनों में देवी को विशेष रूप से ताजे फल, हरी सब्जियां और शाक अर्पित किए जाते हैं।
माँ शाकंभरी को “अन्नपूर्णा स्वरूपा” कहा गया है, जो जीवों को अन्न और स्वास्थ्य प्रदान करती हैं। इस दिन श्रद्धा से पूजा करने से रोगों से मुक्ति मिलती है, शरीर में स्फूर्ति आती है और मानसिक शांति बनी रहती है। माना जाता है कि देवी की कृपा से परिवार के सभी सदस्यों का स्वास्थ्य स्थिर रहता है।
शाकंभरी पूर्णिमा की पूजा करने से घर में धन, अन्न और समृद्धि की वृद्धि होती है। विशेषकर जो लोग कृषि, खेती या अन्न व्यापार से जुड़े हैं, उन्हें इस दिन माँ की विशेष कृपा प्राप्त होती है। देवी शाकंभरी को प्रसन्न करने से अन्न भंडार कभी खाली नहीं रहते और आर्थिक स्थिति मजबूत होती है।
जो भक्त सच्चे मन से व्रत और पूजा करते हैं, उनकी सभी मनोकामनाएँ पूर्ण होती हैं। विशेष रूप से किसान, गृहस्थ और अन्न से जुड़े कार्य करने वाले लोग इस दिन देवी से अपनी उन्नति की प्रार्थना करते हैं। देवी की कृपा से कार्य में सफलता और परिवार में खुशहाली आती है।
शाकंभरी पूर्णिमा का व्रत व्यक्ति के अंदर शुद्धता और भक्ति की भावना बढ़ाता है। स्नान, दान और पूजन करने से मन की अशुद्धियाँ दूर होती हैं और आत्मिक शांति प्राप्त होती है। इस दिन देवी मंत्रों का जाप करने से साधक के अंदर सकारात्मक ऊर्जा और भक्ति का संचार होता है।
पूजा करने से घर के वातावरण में सकारात्मक ऊर्जा फैलती है। परिवार के सदस्यों के बीच प्रेम और सामंजस्य बढ़ता है। देवी शाकंभरी की कृपा से गृहकलह, तनाव और नकारात्मकता समाप्त होती है तथा घर में सुख, शांति और समृद्धि स्थायी रूप से बसती है।
शाकंभरी देवी की पूजा में हरी सब्जियाँ, फल और अनाज अर्पित किए जाते हैं। यह कर्म हमें प्रकृति की देन को आदर देने और पर्यावरण के प्रति कृतज्ञता प्रकट करने की प्रेरणा देता है। इस दिन किया गया यह अनुष्ठान मनुष्य को धरती, जल और अन्न के महत्व का बोध कराता है।
इस दिन भोजन, फल या वस्त्र का दान करने से अनेक गुना पुण्य मिलता है। दान से व्यक्ति के पिछले कर्मों के दोष कम होते हैं और जीवन में शुभ फल प्राप्त होते हैं। यह माँ शाकंभरी को प्रसन्न करने का सबसे सरल और श्रेष्ठ माध्यम माना जाता है।
साल 2026 में 2026 में शाकंभरी जयंती 3 जनवरी, शनिवार को मनाई जाएगी।
शाकंभरी जयंती पौष माह की पूर्णिमा को मनाई जाती है, जो हर वर्ष जनवरी माह में आती है।
शाकंभरी देवी विशेष रूप से कृषक और कृषि से जुड़े लोगों की कुलदेवी मानी जाती हैं।
उत्तर प्रदेश के सहारनपुर जिले में शाकंभरी देवी मंदिर पर शाकंभरी मेला लगता है।
शाकंभरी देवी को 'शताक्षी देवी’ भी कहा जाता है।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, शाकंभरी देवी मंदिर में माता सती का शीश यानि सिर गिरा था।
हां, मां शाकंभरी देवी के तीन प्रमुख शक्तिपीठ हैं - राजस्थान के सीकर में सकराय माताजी मंदिर, सांभर झील के पास शाकंभरी धाम, और उत्तर प्रदेश के मेरठ के निकट सहारनपुर से लगभग 40 किलोमीटर दूर स्थित शाकंभरी देवी मंदिर।
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