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व्यास पूजा 2025

व्यास पूजा 2025 में गुरु की कृपा पाने का सुनहरा अवसर! जानिए इस शुभ दिन की तिथि, आध्यात्मिक महत्व, ऐतिहासिक पृष्ठभूमि और पूजन विधि—और करें अपने जीवन में ज्ञान, श्रद्धा और सफलता का स्वागत

व्यास पूजा 2025

व्यास पूजा, गुरु पूर्णिमा के दिन मनाई जाती है, जो आषाढ़ मास की पूर्णिमा तिथि को पड़ती है। पौराणिक मान्यता के अनुसार आषाढ़ मास की पूर्णिमा तिथि पर महर्षि व्यास का जन्म हुआ था, इसलिए ये पूर्णिमा तिथि हर वर्ष गुरु पूर्णिमा या व्यास पूर्णिमा के नाम से मनायी जाती है। इस दिन व्यास पूजा का विशेष महत्व है। यह दिन गुरु के प्रति श्रद्धा और महर्षि वेदव्यास के अद्वितीय योगदान को स्मरण करने का पर्व है। इस दिन, भारतभर में गुरुजनों का सम्मान किया जाता है और व्यास जी की पूजा कर उनके ज्ञान को नमन किया जाता है।

इस लेख में आप जानेंगे

  • व्यास पूजा 2025
  • व्यास पूजा का शुभ मुहूर्त क्या है
  • व्यास पूजा क्या है
  • व्यास पूजा का महत्व
  • व्यास पूजा क्यों मनाते हैं?
  • व्यास पूजा के दिन किसकी पूजा करें
  • व्यास पूजा के दिन पूजा कैसे करें?
  • आषाढ़ पूर्णिमा के दिन व्यास पूजा या गुरु पूजा के अनुष्ठान
  • व्यास पूजा के लाभ क्या हैं
  • वेद व्यास के बारे में जानें
  • आषाढ़ पूर्णिमा व व्यास पूजा का संबंध

व्यास पूजा कब है?

  • व्यास पूजा 10 जुलाई 2025, बृहस्पतिवार को की जाएगी।
  • पूर्णिमा तिथि 10 जुलाई 2025, बृहस्पतिवार को मध्यरात्रि 01 बजकर 36 मिनट पर प्रारंभ होगी।
  • पूर्णिमा तिथि का समापन 11 जुलाई, शुक्रवार को मध्यरात्रि 02 बजकर 06 मिनट पर होगा।

व्शुयास पूजा के शुभ मुहूर्त

मुहूर्त

समय

ब्रह्म मुहूर्त

03:52 ए एम से 04:33 ए एम तक

प्रातः सन्ध्या

04:12 ए एम से 05:15 ए एम तक

अभिजित मुहूर्त

11:36 ए एम से 12:31 पी एम तक

विजय मुहूर्त

02:20 पी एम से 03:14 पी एम तक

गोधूलि मुहूर्त

06:51 पी एम से 07:11 पी एम तक

सायाह्न सन्ध्या

06:52 पी एम से 07:54 पी एम तक

अमृत काल

12:55 ए एम, जुलाई 11 से 02:35 ए एम, जुलाई 11 तक

निशिता मुहूर्त

11:43 पी एम से 12:24 ए एम, जुलाई 11 तक

व्यास पूजा क्या है?

व्यास पूजा का तात्पर्य है— महर्षि वेदव्यास की पूजा करना। वेदव्यास जी को हिंदू धर्म के ज्ञान-विज्ञान का आधार स्तंभ माना जाता है। उन्होंने न केवल वेदों का विभाजन किया बल्कि 18 पुराण, महाभारत तथा ब्रह्मसूत्र की भी रचना की। इसलिए उन्हें "अवतरित ज्ञान का स्रोत" कहा जाता है।

व्यास पूजा का महत्व

  • व्यास जी समस्त गुरु परंपरा के आदि स्तंभ हैं।
  • उनके कारण ही आज वेद, पुराण और शास्त्रों का स्वरूप उपलब्ध है।
  • वेदव्यास जी का पूजन कर हम गुरु तत्व का सम्मान करते हैं।
  • यह दिन गुरु-शिष्य परंपरा की महिमा का उत्सव है।

व्यास पूजा क्यों मनाते हैं?

हिंदू धर्म में गुरु को सर्वोच्च स्थान प्राप्त है। शास्त्रों में कहा गया है

"गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः।

गुरुः साक्षात् परब्रह्म तस्मै श्रीगुरवे नमः॥"

अर्थात, गुरु ही ब्रह्मा हैं, गुरु ही विष्णु हैं और गुरु ही महेश्वर हैं। गुरु ही साक्षात् परब्रह्म हैं। ऐसे गुरु को शत्-शत् नमन। व्यास पूजा का आयोजन इसलिए किया जाता है क्योंकि महर्षि वेदव्यास को गुरु परंपरा का प्रवर्तक माना जाता है। वे न केवल ब्रह्मज्ञान के ज्ञाता थे, बल्कि उन्होंने उस ज्ञान को व्यवस्थित रूप में समाज के हर वर्ग तक पहुँचाने का कार्य किया।

उनका सबसे बड़ा योगदान यह रहा कि उन्होंने वेदों को चार भागों में विभाजित कर जनसाधारण के लिए उसे ग्रहण योग्य बनाया। यदि वेदव्यास न होते, तो वेद आज भी केवल स्मृति में सीमित होते। इसके अतिरिक्त उन्होंने महाभारत, ब्रह्मसूत्र और अठारह पुराणों की रचना कर सनातन धर्म की गहराइयों को सामान्य जीवन से जोड़ दिया।

इसीलिए उनके जन्मदिवस, आषाढ़ पूर्णिमा को ही हम गुरु पूर्णिमा के रूप में मनाते हैं, और उसी दिन व्यास पूजा का आयोजन करते हैं। यह पूजा केवल एक व्यक्ति विशेष की नहीं, बल्कि गुरुत्व की पूजा है उस दिव्य तत्व की, जो अंधकार से निकालकर ज्ञान की ओर ले जाता है।

व्यास पूजा के दिन किसकी पूजा करें?

  • महर्षि वेदव्यास जी
  • भगवान शिव (जिन्हें आदिगुरु माना जाता है)
  • दत्तात्रेय भगवान (तीनों देवों का संयुक्त स्वरूप, गुरु के रूप में पूजनीय)
  • गुरु परंपरा के प्रतीक: ब्रह्मा, शंकराचार्य, शुकदेव, गोविंदस्वामी आदि
  • अपने जीवन के गुरु (चाहे वे आध्यात्मिक हों, शैक्षणिक हों।)
  • माता-पिता जीवन के सबसे बड़े गुरु होते हैं इसलिए इस दिन उन्हें विशेष रूप से नमन किया जाता है।

व्यास पूजा के दिन पूजा कैसे करें?

  • आषाढ़ पूर्णिमा पर अपने गुरु के साथ-साथ महर्षि वेद व्यास की पूजा का भी विधान है।
  • व्यास पूजा के दिन प्रातः उठकर घर की साफ़ सफाई करें, उसके बाद स्नान कर स्वच्छ कपड़े पहनें।
  • इसके बाद व्यासपीठ या व्यास का आसन बनाएं। इसके लिए भूमि पर एक धुला हुआ सफेद वस्त्र बिछाएं और उस पर उत्तर से दक्षिण और पूर्व से पश्चिम तक गंध से बारह रेखाएँ खींचें।
  • फिर, 'गुरुपरम्परा सिद्धार्थ व्यास पूजां करिश्येस्य' मंत्र का पाठ करें। इसका अर्थ है कि मैं गुरु वंश की स्थापना के लिए गुरु महर्षि वेद व्यास की पूजा करता हूं।
  • पूजा के समय भगवान ब्रह्मा, व्यास, शुकदेव, गौपाद, गोविंदस्वामी जी और गुरु शंकराचार्य का आह्वान करें।
  • इसके बाद षोडशोपचार पूजा करें।
  • महर्षि व्यास की शिक्षाओं का पालन करने का संकल्प लें।
  • ये सभी अनुष्ठान करने के बाद अपने माता-पिता और से आशीर्वाद लें।
  • व्यास पूर्णिमा के दिन आप व्यास जी द्वारा लिखित वेद या अन्य शास्त्र भी पढ़ सकते हैं

आषाढ़ पूर्णिमा के दिन व्यास पूजा या गुरु पूजा के अनुष्ठान

  • व्रत रखना (निर्जला या फलाहार)
  • गुरु चरण वंदना, गुरु उपदेश का श्रवण
  • दान पुण्य, अन्न, वस्त्र का वितरण
  • सद्ग्रंथों का पठन और शांति पाठ
  • सत्संग, भजन और सामूहिक पूजा का आयोजन

व्यास पूजा के लाभ क्या हैं?

  • गुरु कृपा से जीवन में आत्मिक उन्नति होती है।
  • ज्ञान, विवेक और निर्णयशक्ति बढ़ती है।
  • मानसिक अशांति दूर होती है।
  • धर्म, भक्ति और तप का समन्वय प्राप्त होता है।
  • जीवन में मार्गदर्शन और चित्त की स्थिरता मिलती है।

वेद व्यास जी के बारे में जानें

महर्षि वेदव्यास, जिन्हें बादरायण और कृष्ण द्वैपायन भी कहा जाता है, सनातन धर्म के सबसे महान ऋषियों में माने जाते हैं। उनका जन्म द्वापर युग के अंत में हुआ था। उनके पिता महर्षि पराशर, एक महान तपस्वी थे, और माता सत्यवती, जो निषाद वंश की थीं।

वेदव्यास जी का जन्म यमुना नदी के द्वीप पर हुआ था, इसलिए उन्हें "कृष्ण द्वैपायन" कहा गया। कहा जाता है कि उनका रंग सांवला था और उन्होंने गहन तपस्या कर असीम ज्ञान की प्राप्ति की थी।

उनका सबसे महान कार्य यह था कि उन्होंने चारों वेदों को अलग-अलग भागों में बाँटकर शिष्य परंपरा के माध्यम से व्यवस्थित किया।

  • ऋग्वेद (ज्ञान का स्रोत)
  • यजुर्वेद (कर्म और यज्ञ विधि)
  • सामवेद (संगीतमय स्तुति)
  • अथर्ववेद (जीवनोपयोगी विद्या और तंत्र)

इसके अलावा उन्होंने लिखा महाभारत, जिसमें श्रीमद्भगवद्गीता का ज्ञान निहित है

  • श्रीमद्भागवत पुराण, जो भक्ति और वैराग्य का मर्म है
  • ब्रह्मसूत्र, जो वेदान्त दर्शन का मूल है
  • 18 प्रमुख पुराण, जिनमें हिन्दू धर्म के विभिन्न आयामों की विस्तृत व्याख्या है

वेदव्यास जी को केवल लेखक नहीं, बल्कि ज्ञान का साक्षात् स्वरूप माना गया है। उनका उद्देश्य केवल ग्रंथ लेखन नहीं, बल्कि मनुष्य को धर्म, सत्य, ज्ञान और मोक्ष की ओर प्रेरित करना था।

उनका नाम “व्यास” इसीलिए पड़ा क्योंकि उन्होंने वेदों का “विभाजन” किया — और वही ज्ञान आज भी सनातन धर्म का स्तंभ बना हुआ है।

आषाढ़ पूर्णिमा व व्यास पूजा का संबंध

आषाढ़ मास की पूर्णिमा तिथि पर महर्षि व्यास का जन्म हुआ था, इसलिए ये पूर्णिमा तिथि हर वर्ष गुरु पूर्णिमा या व्यास पूर्णिमा के नाम से मनायी जाती है।

  • इस दिन गुरु तत्व का जागरण और आध्यात्मिक यात्रा की शुरुआत मानी जाती है।
  • शिव से लेकर बुद्ध तक, सभी परंपराओं में यह तिथि गुरु की महानता का दिन मानी गई है।

तो यह थी व्यास पूजा से जुड़ी पूरी जानकारी। व्यास पूजा का सार यही है कि हम गुरु तत्व का सम्मान करें, ज्ञान की ज्योति जलाएं और जीवन को धर्म, ज्ञान व सेवा से ओतप्रोत करें। आप भी इस व्यास पूर्णिमा पर महर्षि वेदव्यास की पूजा करें। हमारी कामना है कि आपको सदैव गुरुओं का सानिध्य व आशीर्वाद मिलता रहे। ऐसे ही व्रत, त्यौहार व अन्य धार्मिक जानकारियों के लिए जुड़े रहिए 'श्री मंदिर' पर

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Published by Sri Mandir·July 2, 2025

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