व्यास पूजा 2025 में गुरु की कृपा पाने का सुनहरा अवसर! जानिए इस शुभ दिन की तिथि, आध्यात्मिक महत्व, ऐतिहासिक पृष्ठभूमि और पूजन विधि—और करें अपने जीवन में ज्ञान, श्रद्धा और सफलता का स्वागत
व्यास पूजा गुरुओं के सम्मान में की जाने वाली एक पवित्र परंपरा है, जो आषाढ़ पूर्णिमा के दिन मनाई जाती है। यह दिन महर्षि वेदव्यास को समर्पित होता है, जिन्होंने वेदों और पुराणों का संकलन किया था।
व्यास पूजा, गुरु पूर्णिमा के दिन मनाई जाती है, जो आषाढ़ मास की पूर्णिमा तिथि को पड़ती है। पौराणिक मान्यता के अनुसार आषाढ़ मास की पूर्णिमा तिथि पर महर्षि व्यास का जन्म हुआ था, इसलिए ये पूर्णिमा तिथि हर वर्ष गुरु पूर्णिमा या व्यास पूर्णिमा के नाम से मनायी जाती है। इस दिन व्यास पूजा का विशेष महत्व है। यह दिन गुरु के प्रति श्रद्धा और महर्षि वेदव्यास के अद्वितीय योगदान को स्मरण करने का पर्व है। इस दिन, भारतभर में गुरुजनों का सम्मान किया जाता है और व्यास जी की पूजा कर उनके ज्ञान को नमन किया जाता है।
मुहूर्त | समय |
ब्रह्म मुहूर्त | 03:52 ए एम से 04:33 ए एम तक |
प्रातः सन्ध्या | 04:12 ए एम से 05:15 ए एम तक |
अभिजित मुहूर्त | 11:36 ए एम से 12:31 पी एम तक |
विजय मुहूर्त | 02:20 पी एम से 03:14 पी एम तक |
गोधूलि मुहूर्त | 06:51 पी एम से 07:11 पी एम तक |
सायाह्न सन्ध्या | 06:52 पी एम से 07:54 पी एम तक |
अमृत काल | 12:55 ए एम, जुलाई 11 से 02:35 ए एम, जुलाई 11 तक |
निशिता मुहूर्त | 11:43 पी एम से 12:24 ए एम, जुलाई 11 तक |
व्यास पूजा का तात्पर्य है— महर्षि वेदव्यास की पूजा करना। वेदव्यास जी को हिंदू धर्म के ज्ञान-विज्ञान का आधार स्तंभ माना जाता है। उन्होंने न केवल वेदों का विभाजन किया बल्कि 18 पुराण, महाभारत तथा ब्रह्मसूत्र की भी रचना की। इसलिए उन्हें "अवतरित ज्ञान का स्रोत" कहा जाता है।
हिंदू धर्म में गुरु को सर्वोच्च स्थान प्राप्त है। शास्त्रों में कहा गया है
"गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः।
गुरुः साक्षात् परब्रह्म तस्मै श्रीगुरवे नमः॥"
अर्थात, गुरु ही ब्रह्मा हैं, गुरु ही विष्णु हैं और गुरु ही महेश्वर हैं। गुरु ही साक्षात् परब्रह्म हैं। ऐसे गुरु को शत्-शत् नमन। व्यास पूजा का आयोजन इसलिए किया जाता है क्योंकि महर्षि वेदव्यास को गुरु परंपरा का प्रवर्तक माना जाता है। वे न केवल ब्रह्मज्ञान के ज्ञाता थे, बल्कि उन्होंने उस ज्ञान को व्यवस्थित रूप में समाज के हर वर्ग तक पहुँचाने का कार्य किया।
उनका सबसे बड़ा योगदान यह रहा कि उन्होंने वेदों को चार भागों में विभाजित कर जनसाधारण के लिए उसे ग्रहण योग्य बनाया। यदि वेदव्यास न होते, तो वेद आज भी केवल स्मृति में सीमित होते। इसके अतिरिक्त उन्होंने महाभारत, ब्रह्मसूत्र और अठारह पुराणों की रचना कर सनातन धर्म की गहराइयों को सामान्य जीवन से जोड़ दिया।
इसीलिए उनके जन्मदिवस, आषाढ़ पूर्णिमा को ही हम गुरु पूर्णिमा के रूप में मनाते हैं, और उसी दिन व्यास पूजा का आयोजन करते हैं। यह पूजा केवल एक व्यक्ति विशेष की नहीं, बल्कि गुरुत्व की पूजा है उस दिव्य तत्व की, जो अंधकार से निकालकर ज्ञान की ओर ले जाता है।
महर्षि वेदव्यास, जिन्हें बादरायण और कृष्ण द्वैपायन भी कहा जाता है, सनातन धर्म के सबसे महान ऋषियों में माने जाते हैं। उनका जन्म द्वापर युग के अंत में हुआ था। उनके पिता महर्षि पराशर, एक महान तपस्वी थे, और माता सत्यवती, जो निषाद वंश की थीं।
वेदव्यास जी का जन्म यमुना नदी के द्वीप पर हुआ था, इसलिए उन्हें "कृष्ण द्वैपायन" कहा गया। कहा जाता है कि उनका रंग सांवला था और उन्होंने गहन तपस्या कर असीम ज्ञान की प्राप्ति की थी।
उनका सबसे महान कार्य यह था कि उन्होंने चारों वेदों को अलग-अलग भागों में बाँटकर शिष्य परंपरा के माध्यम से व्यवस्थित किया।
इसके अलावा उन्होंने लिखा महाभारत, जिसमें श्रीमद्भगवद्गीता का ज्ञान निहित है
वेदव्यास जी को केवल लेखक नहीं, बल्कि ज्ञान का साक्षात् स्वरूप माना गया है। उनका उद्देश्य केवल ग्रंथ लेखन नहीं, बल्कि मनुष्य को धर्म, सत्य, ज्ञान और मोक्ष की ओर प्रेरित करना था।
उनका नाम “व्यास” इसीलिए पड़ा क्योंकि उन्होंने वेदों का “विभाजन” किया — और वही ज्ञान आज भी सनातन धर्म का स्तंभ बना हुआ है।
आषाढ़ मास की पूर्णिमा तिथि पर महर्षि व्यास का जन्म हुआ था, इसलिए ये पूर्णिमा तिथि हर वर्ष गुरु पूर्णिमा या व्यास पूर्णिमा के नाम से मनायी जाती है।
तो यह थी व्यास पूजा से जुड़ी पूरी जानकारी। व्यास पूजा का सार यही है कि हम गुरु तत्व का सम्मान करें, ज्ञान की ज्योति जलाएं और जीवन को धर्म, ज्ञान व सेवा से ओतप्रोत करें। आप भी इस व्यास पूर्णिमा पर महर्षि वेदव्यास की पूजा करें। हमारी कामना है कि आपको सदैव गुरुओं का सानिध्य व आशीर्वाद मिलता रहे। ऐसे ही व्रत, त्यौहार व अन्य धार्मिक जानकारियों के लिए जुड़े रहिए 'श्री मंदिर' पर
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