इस व्रत से जुड़ी सम्पूर्ण जानकारी प्राप्त करें और पूजा की तैयारी करें
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार रोहिणी 27 नक्षत्रों में से एक नक्षत्र है। इस नक्षत्र में किया जाने वाला व्रत रोहिणी व्रत कहलाता है। जैन धर्म के अनुयायी, विशेषकर महिलाएं रोहिणी व्रत का पालन करती हैं।
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार रोहिणी 27 नक्षत्रों में से एक नक्षत्र है। इस नक्षत्र में किया जाने वाला व्रत रोहिणी व्रत कहलाता है। जैन धर्म के अनुयायी, विशेषकर महिलाएं रोहिणी व्रत का पालन करती हैं। हर माह रोहिणी नक्षत्र की निश्चित अवधि होती है। इस हिसाब से प्रत्येक वर्ष में बारह रोहिणी व्रत होते हैं। जैन समुदाय द्वारा इसे एक त्योहार के रूप में मनाया जाता है।
मुहूर्त | समय |
ब्रह्म मुहूर्त | 03:46 ए एम से 04:27 ए एम तक |
प्रातः सन्ध्या | 04:06 ए एम से 05:08 ए एम तक |
अभिजित मुहूर्त | 11:32 ए एम से 12:27 पी एम तक |
विजय मुहूर्त | 02:17 पी एम से 03:12 पी एम तक |
गोधूलि मुहूर्त | 06:50 पी एम से 07:10 पी एम तक |
सायाह्न सन्ध्या | 06:51 पी एम से 07:53 पी एम तक |
अमृत काल | 07:30 पी एम से 09:00 पी एम तक |
निशिता मुहूर्त | 11:39 पी एम से 12:20 ए एम, 21 जुलाई तक |
सर्वार्थ सिद्धि योग | पूरे दिन |
अमृत सिद्धि योग | 05:08 ए एम से 09:45 पी एम तक |
जब उदियातिथि अर्थात सूर्योदय के बाद रोहिणी नक्षत्र प्रबल होता है, उस दिन रोहिणी व्रत किया जाता है। इस दिन जैन समुदाय के लोग भगवान वासुपूज्य की पूजा करते हैं। सामान्यतः इस व्रत को 3, 5 या 7 वर्षों तक करने के बाद ही उद्यापन किया जा सकता है, लेकिन रोहिणी व्रत की उचित अवधि पाँच वर्ष, पाँच महीने है।
रोहिणी व्रत जैन धर्म और हिंदू परंपरा में अत्यंत पवित्र माना जाता है। विशेष रूप से जैन समुदाय के लोग इसे श्रद्धा से करते हैं। यह व्रत चंद्रमा की रोहिणी नक्षत्र में आता है और इसे धार्मिक अनुशासन, आत्म-शुद्धि और कर्म-निर्मूलन के उद्देश्य से रखा जाता है। मान्यता है कि इस व्रत को करने से आत्मा को शुद्धि, कष्टों से मुक्ति, और मोक्ष मार्ग की प्राप्ति होती है।
इसी तरह इस व्रत का पालन करने वाले स्त्री और पुरुष अपनी आत्मा के विकारों को दूर करते हैं, और इस संसार की मोह माया से दूर रहते हैं। ऐसे ही व्रत, त्यौहार व अन्य धार्मिक जानकारियों के लिए जुड़े रहिए 'श्री मंदिर' के साथ। आपका दिन मंगलमय हो।
जैन धर्म में यह व्रत 5 वर्ष और 5 महीने तक प्रति रोहिणी नक्षत्र पर किया जाता है। व्रत का समापन "उद्यापन" विधि से किया जाता है, जिसमें विशेष पूजा और दान होता है
हम आशा करते हैं आपको यह जानकारी पसंद आई होगी, इसी तरह की अन्य जानकारियों के लिए जुड़े रहिए श्री मंदिर के साथ।
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