क्या आप जानना चाहते हैं कि कोकिला व्रत 2025 कब है और इसे क्यों रखा जाता है? सुहाग की लंबी उम्र और वैवाहिक सुख के लिए रखें ये खास व्रत
कोकिला व्रत आषाढ़ शुक्ल पूर्णिमा को मनाया जाता है। यह व्रत सुहागिन महिलाएं पति की लंबी आयु और सुखद दांपत्य जीवन के लिए करती हैं। इस दिन कोयल के प्रतीक रूप में देवी की पूजा की जाती है।
आषाढ़ पूर्णिमा पर रखा गया कोकिला व्रत कुंवारी कन्याओं और विवाहित स्त्रियों दोनों के लिए विशेष फलदाई होता है। कोकिला व्रत का संबंध इस मान्यता से है कि माता सती जी ने भगवान शिव को पाने के लिए वर्षों तक कोयल रूप में तपस्या की थी। वैसे तो गुरु पूर्णिमा और कोकिला व्रत एक ही दिन होता है, लेकिन कभी-कभी चतुर्दशी तिथि के प्रारंभ होने के आधार पर कोकिला व्रत, गुरु पूर्णिमा से एक दिन पहले भी पड़ सकता है।
मुहूर्त | समय |
ब्रह्म मुहूर्त | 03:52 ए एम से 04:33 ए एम तक |
प्रातः सन्ध्या | 04:12 ए एम से 05:15 ए एम तक |
अभिजित मुहूर्त | 11:36 ए एम से 12:31 पी एम तक |
विजय मुहूर्त | 02:20 पी एम से 03:14 पी एम तक |
गोधूलि मुहूर्त | 06:51 पी एम से 07:11 पी एम तक |
सायाह्न सन्ध्या | 06:52 पी एम से 07:54 पी एम तक |
अमृत काल | 12:55 ए एम, जुलाई 11 से 02:35 ए एम, 11 जुलाई तक |
निशिता मुहूर्त | 11:43 पी एम से 12:24 ए एम, 11 जुलाई तक |
कोकिला व्रत एक धार्मिक व्रत है जो आषाढ़ शुक्ल पूर्णिमा के दिन रखा जाता है। यह विशेष रूप से महिलाओं द्वारा किया जाने वाला व्रत है, जिसका उद्देश्य आध्यात्मिक शुद्धता, सौभाग्य और इच्छित वर की प्राप्ति होता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, देवी सती ने कोयल (कोकिला) रूप धारण करके इस दिन कठोर तपस्या की थी ताकि वे शिव जी को पति रूप में प्राप्त कर सकें। तभी से इस व्रत को “कोकिला व्रत” के नाम से जाना जाता है।
इस व्रत को रखने का मुख्य उद्देश्य ईश्वर की कृपा प्राप्त करना और सांसारिक जीवन में सुख-समृद्धि लाना होता है। विवाहित महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र और सुखद दांपत्य जीवन के लिए इसे करती हैं, जबकि कुंवारी कन्याएं शिव जैसे सुयोग्य वर की प्राप्ति की कामना से यह व्रत रखती हैं। इसके अलावा, यह व्रत मन, वाणी और कर्म की शुद्धि के लिए भी किया जाता है।
कोकिला व्रत करने से जहां विवाहित जोड़े का दांपत्य जीवन सुखमय होता है, वहीं यदि ये व्रत कुंवारी कन्याएं रखती हैं, तो उन्हें शिव जी के समान सुयोग्य वर मिलता है। पौराणिक मान्यता के अनुसार देवी सती ने भी इसी व्रत के प्रभाव से भोलेनाथ को पाया था।
कुछ मान्यताएं ये भी कहती हैं कि ये व्रत करने से रूप व सुंदरता की प्राप्ति होती है। इसके अलावा कोकिला व्रत पर कोयल का चित्र या मूर्ति स्वरुप को किसी ब्राह्मण को भेंट करने का भी विधान है।
कोकिला व्रत रखने वाले भक्त एक बार ही भोजन करें, भूमि पर सोएं, ब्रम्हचर्य का पालन करें और दूसरों की बुराई करने से बचें। इस व्रत के दौरान गंगा, यमुना या किसी भी पवित्र नदी में किया गया स्नान बहुत पुण्य देने वाला माना जाता है।
कोकिला व्रत के दिन विशेष रूप से भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा की जाती है। इसके अतिरिक्त एक कोयल की मूर्ति या चित्र का भी पूजन किया जाता है, जो प्रतीकात्मक रूप से देवी सती के कोकिला रूप का प्रतिनिधित्व करता है। कोयल को स्त्रियों की इच्छाओं की पूर्ति करने वाली देवी के रूप में देखा जाता है।
इस व्रत को विवाहित महिलाएं, कुंवारी कन्याएं, और इच्छुक भक्तजन रख सकते हैं। विशेष रूप से वे महिलाएं जो पारिवारिक सुख, पति की दीर्घायु या अच्छा जीवनसाथी चाहती हैं, उनके लिए यह व्रत अत्यंत प्रभावशाली माना गया है। हालांकि यह व्रत केवल महिलाओं तक सीमित नहीं है – इच्छुक पुरुष भक्त भी श्रद्धा से इसे कर सकते हैं।
यदि आप कोकिला व्रत 2025 श्रद्धा और नियमपूर्वक करते हैं, तो यह निश्चित ही आपके जीवन में सौभाग्य, सुंदरता, शांति और शिव कृपा लेकर आएगा। तो यह थी कोकिला व्रत से जुड़ी पूरी जानकारी, हमारी कामना है कि आपका ये व्रत व पूजा अर्चना सफल हो, और भोलेनाथ आपकी मनोकामना शीघ्र पूर्ण करें।
हर हर महादेव!
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