गौरी हब्बा 2025 की तिथि, पूजन विधि, कर्नाटक की परंपराएं, व्रत के नियम और शुभ मुहूर्त की सम्पूर्ण जानकारी। यह दिन विवाहित महिलाओं के लिए विशेष फलदायक माना जाता है।
गौरी हब्बा दक्षिण भारत का प्रमुख त्योहार है, जिसमें महिलाएं माता गौरी की पूजा करती हैं। यह पर्व सौभाग्य, समृद्धि और परिवार की मंगलकामना के लिए मनाया जाता है। सुहागिन महिलाएं व्रत रखकर विधिवत पूजा-अर्चना करती हैं।
श्रावण मास शिव उपासना के लिए विशेष माना जाता है, तो भाद्रपद मास में कृष्ण जन्माष्टमी पड़ने के कारण ये मास भगवान श्रीकृष्ण जी को समर्पित होता है। लेकिन भाद्रपद मास में शिव परिवार की उपासना के भी कुछ पर्व मनाए जाते हैं, जैसे कि गणेश चतुर्थी, जो कि दस दिनों तक चलता है। वहीं, गणेश चतुर्थी से एक दिन पहले यानि शुक्लपक्ष की तृतीया को माता पार्वती को समर्पित पर्व गौरी हब्बा मनाया जाता है।
गौरी हब्बा 26 अगस्त 2025, मंगलवार को मनाया जाएगा।
गौरी हब्बा, दक्षिण भारत विशेषकर कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु में मनाया जाने वाला एक प्रमुख स्त्री-प्रधान पर्व है। यह पर्व देवी पार्वती के ‘गौरी’ स्वरूप को समर्पित होता है, जो सौंदर्य, पवित्रता, शक्ति और स्त्रीत्व की प्रतीक मानी जाती हैं। यह पर्व भाद्रपद मास की शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाया जाता है, जो हरतालिका तीज के दिन ही पड़ता है। इसे गणेश चतुर्थी से एक दिन पहले मनाया जाता है।
गौरी हब्बा का मुख्य उद्देश्य देवी गौरी (पार्वती) की कृपा प्राप्त करना होता है। विवाहित स्त्रियाँ इस दिन अपने पति की लंबी उम्र, परिवार की समृद्धि और सौभाग्य के लिए व्रत करती हैं। वहीं कुंवारी कन्याएं देवी गौरी से सुयोग्य वर प्राप्ति की प्रार्थना करती हैं। यह पर्व मातृशक्ति को सम्मान देने और नारी जीवन की आध्यात्मिक गरिमा को प्रतिष्ठित करने का माध्यम भी है।
गौरी हब्बा न केवल एक धार्मिक अनुष्ठान है, बल्कि यह स्त्रियों के पारिवारिक, सामाजिक और सांस्कृतिक सशक्तिकरण का पर्व भी है। इसे मनाने से स्त्री को आंतरिक शक्ति, धैर्य और संतुलन प्राप्त होता है। इस दिन देवी गौरी की मूर्ति को घर लाया जाता है, उनका भव्य श्रृंगार किया जाता है, और स्त्रियाँ 'मंगल्या धारणे' (सौभाग्य चिन्ह) पहनकर पूजा करती हैं। साथ ही, यह पर्व महिलाओं के बीच आपसी मेलजोल और आध्यात्मिक संवाद को भी बढ़ावा देता है।
गौरी हब्बा मुख्य रूप से कर्नाटक में अत्यंत श्रद्धा और भक्ति भाव से मनाया जाता है। इसके अलावा, यह पर्व आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और तमिलनाडु में भी विभिन्न नामों से लोकप्रिय है। दक्षिण भारत की महिलाओं के लिए यह पर्व हरतालिका तीज की तरह विशेष महत्व रखता है।
गौरी हब्बा के दिन महिलाएं स्नान कर साफ-सुथरे वस्त्र पहनती हैं और देवी गौरी की मूर्ति को पीले या हरे वस्त्रों में सजाकर घर लाया जाता है। पूजा स्थल को रंगोली, पुष्प और दीपों से सजाया जाता है। देवी को हल्दी-कुमकुम, चूड़ियाँ, काजल, सिंदूर, फूल, नारियल व फल आदि अर्पित किए जाते हैं। इसके बाद कथा सुनकर आरती की जाती है और प्रसाद बांटा जाता है।
इस दिन विशेष रूप से देवी गौरी (पार्वती जी) की पूजा की जाती है। वे सौभाग्य, समृद्धि और पतिव्रता धर्म की प्रतीक मानी जाती हैं। विवाहित महिलाएं गौरी मां से पति की लंबी उम्र की कामना करती हैं, जबकि अविवाहित कन्याएं सुयोग्य वर की प्राप्ति के लिए पूजा करती हैं
गौरी पूजा में निम्न मंत्रों का उपयोग किया जा सकता है:
1. आवाहन मंत्र:
2. स्तुति मंत्र:
3. जप मंत्र:
गौरी हब्बा पर्व से जुड़ी एक मान्यता के अनुसार, इस दिन देवी गौरी एक साधारण विवाहित स्त्री की तरह अपने माता-पिता के घर आती हैं, और अगले दिन भगवान गणेश अपनी माता गौरी को कैलाश पर्वत पर वापस ले जाने आते हैं। आपको बता दें कि गौरी हब्बा पर्व महाराष्ट्र व उत्तर भारतीय राज्यों में हरतालिका तीज के रूप में मनाया जाता है।
पौराणिक मान्यता के अनुसार भाद्रपद मास की चतुर्थी तिथि पर माता गौरी ने अपने शरीर की मैल से भगवान गणेश को अवतरित किया था, इस कारण भी गणेश चतुर्थी के एक दिन पहले, यानि तृतीया तिथि पर गौरी हब्बा पर मनाने का विधान है।
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