छठ पूजा का अनोखा महत्व और इसकी शुरुआत के बारे में जानें।
श्रद्धा, स्वच्छता और पर्यावरण के प्रति किया जाने वाला छठ बिहार का एक महापर्व है, जो आज बिहार समेत देश के कई हिस्सों में भी मनाया जाने लगा है। इस पर्व में उगते सूर्य को अर्घ दी जाती है और अर्घ के बाद आटे के बने ठेकुए और फलों को प्रसाद के रूप में वितरण किया जाता है। माना जाता है कि छठ का प्रसाद जो कोई भी खाता है तो भगवान सूर्य उनकी सारी मुराद को पूरी करते हैं।
छठ पूजा कब कहां से शुरू हुई, इस पावन पर्व के संदर्भ में पौराणिक ग्रंथों में कई कहानियां मिलती हैं। इसका वर्णन रामायण में भी है और महाभारत में भी। वहीं कलयुग में भी इस व्रत की शुरुआत की कहानी मिलती है। लेकिन मान्यता के अनुसार छठ पूजा सबसे पहले महाभारत काल में शुरू हुई थी, पूजा की शुरुआत सूर्यपुत्र कर्ण ने की थी। कर्ण भगवान सूर्य के परम भक्त थे, और प्रतिदिन पानी में खड़े होकर उन्हें अर्घ्य दिया करते थे। इसी उपासना के फल स्वरुप सूर्य देव की कृपा से कर्ण एक महान धनुर्धर बने। मान्यता है कि तभी से छठ पर्व पर जल में खड़े होकर सूर्य को अर्घ्य देने की परंपरा शुरू हुई।
एक पौराणिक कथा के अनुसार पांडवों और उनकी पत्नी द्रौपदी ने अपना खोया हुआ राज्य वापस पाने के लिए छठ पूजा की थी। जब पांडवों को हस्तिनापुर से निकाल दिया गया था, तब उन्होंने द्रोपदी के साथ मिलकर ये व्रत किया और सूर्य देव के प्रभाव से उनका खोया हुआ राज्य व मान सम्मान पुनः वापस मिल गया।
रामायण काल में भी छठ पूजा किए जाने का वर्णन मिलता है। कहा जाता है कि जब भगवान राम माता सीता और लक्ष्मण 14 वर्षों की वनवास के बाद वापस अयोध्या लौटे थे, तब उन्होंने ऋषियों के आदेश पर सूर्य देव की उपासना की थी। माता सीता ने कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि पर यह अनुष्ठान किया था, जिसे छठ पर्व के रूप में मनाया जाता है
छठ पर्व के इतिहास को देखें तो एक और पौराणिक कथा मिलती है, जिसके अनुसार, एक निःसंतान राजा थे, जिनका नाम प्रियव्रत था। कोई संतान न होने के कारण वे और उनकी पत्नी मालिनी बहुत दुखी रहते थे। ऐसे में एक दिन माता षष्ठी ने उन्हें दर्शन देकर छठ व्रत करने का निर्देश दिया। राजा ने माता के कहे अनुसार विधि विधान से यह अनुष्ठान किया और उन्हें उत्तम संतान की प्राप्ति हुई। मान्यता है कि उनके कारण ही छठ पूजा का प्रचार-प्रसार हुआ।
बिहार के गया ज़िले के ‘देव’ नामक स्थान से छठ पूजा का आरंभ माना जाता है। कलयुग में छठ पूजा के आरंभ को लेकर यह कथा प्रचलित है, कि एक व्यक्ति को कुष्ठ रोग हो गया था, और उसने कार्तिक मास की षष्ठी तिथि पर भगवान सूर्य की उपासना की। इस उपासना के प्रभाव से उसे कुष्ठ रोग से मुक्ति मिली, तभी से बिहार व देश के अन्य राज्यों में पूरी आस्था के साथ छठ पर्व मनाया जाने लगा।
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