नाग पंचमी व्रत की व्रत कथा
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नाग पंचमी व्रत की व्रत कथा

कालसर्प दोष से पाएं मुक्ति


नाग पंचमी की व्रत कथा (Nag Panchami Vrat Katha)

आमतौर लोगों को सांपों से बहुत डर लगता है, लेकिन क्या आपको पता है कि हमारे हिंदू धर्म में सांपों को भाई मानकर उनकी पूजा करने की परंपरा चली आ रही है। जितनी रोचक यह बात है, उतनी ही रोचक इससे जुड़ी हुई कहानी भी। आज हम वही कहानी आपके लिए लेकर आए हैं। तो चलिए सुनते हैं, नाग पंचमी से जुड़ी हुई पौराणिक कथा।

प्राचीन काल में किसी नगर में एक सेठ जी रहा करते थे। उनके 7 पुत्र थे और सबका विवाह हो चुका था। सेठ जी के सबसे छोटे पुत्र की पत्नी काफी सुशील थी लेकिन उसका कोई भाई नहीं था।

एक दिन घर की बड़ी बहू ने सभी बहुओं को घर लीपने के लिए पीली मिट्टी लाने के लिए कहा। जब मिट्टी लाने के लिए उन्होंने खुरपी से खुदाई शुरू की तो एक सांप वहां निकल आया। यह देखकर बड़ी बहू घबरा गई और खुरपी से उस सांप को मारने लगी।

इसे देखकर सबसे छोटी बहू ने कहा कि यह जीव तो निर्दोष है, आप कृप्या करके इसकी हत्या न करें। छोटी बहू की बात सुनकर बड़ी बहू ने उस सांप को छोड़ दिया और छोटी बहू ने सर्प से एक जगह बैठकर उसका इंतज़ार करने के लिए कहा।

छोटी बहू इसके बाद घर के कामों में व्यस्त हो गई और सांप को बोली हुई बात भूल गई। अगले दिन जब उसे याद आया तो वह सांप के पास दूध लेकर गई और बोली, “मुझे माफ कर दो भैया, मुझसे भूल हो गई”। यह सुनकर सांप बोला कि “तूमने मुझे भैया बोला है, इसलिए मैं तुम्हे छोड़ रहा हूं, वरना झूठ बोलने के लिए अभी डस लेता”।

ऐसा कहकर सांप ने दूध पिया और बोला कि आज से तुम मेरी बहन हुई, तुम्हें जो चाहिए मांग लो। छोटी बहू बोली, “भैया मेरा कोई भाई नहीं है, आपने मुझे अपनी बहन बना लिया, यही मेरे लिए सबसे बड़ा उपहार है, मुझे कुछ और नहीं चाहिए। बस मैं जब भी आपको मन से याद करूं, आप मेरे पास आ जाना”।

कुछ दिनों के बाद सावन का महीना आया और सेठ जी की सभी बहुएं अपने-अपने मायके जाने लगीं। जाने से पहले वह छोटी बहू से बोलीं कि तेरा तो कोई पीहर नहीं है, तू कहां जाएगी?

इस बात से छोटी बहू को बहुत दुख हुआ और रोते हुए उसने अपने सर्प भाई को याद किया। सर्पदेव ने अपने कहे अनुसार, मनुष्य का रूप धारण किया और उसके घर पहुंच गए। वहां पहुंचकर सर्प ने छोटी बहू के ससुराल वालों से आग्रह किया कि वे छोटी बहू को उसके साथ भेज दें। इस पर सेठ जी बोले, लेकिन इसका तो कोई भी भाई नहीं है, तुम कहां से आए हो?

इस पर सर्पदेव ने कहा कि मैं इसका दूर का भाई हूं और इसे घर ले जाने आया हूं। यह सुनकर घरवालों ने छोटी बहू को सर्पदेव के साथ भेज दिया।

रास्ते में सर्पदेव ने छोटी बहू को बताया कि वह उसे नागलोक ले जा रहा है, अगर उसे डर लगे तो वह उसकी पूंछ पकड़ ले। इस तरह वह दोनों नाग लोक पहुंच गए। नाग लोक में धन, ऐश्वर्य और रत्नों को देखकर छोटी बहू चकित रह गई।

वहां सर्पदेव ने उसका परिचय अपनी माँ से करवाया और कहा, माँ इसने मेरी जान बचाई थी और मैंने इसे अपनी छोटी बहन माना है, यह हमारे साथ यहां कुछ दिनों तक रहेगी। यह जानकर सर्पदेव की माँ ने छोटी बहू का स्वागत सत्कार किया और छोटी बहू वहां आरामपूर्वक रहने लगी।

नागलोक में शेषनाग के छोटे-छोटे बच्चे भी रहते थे, जिन्हें सर्प की माँ रोज़ दूध पिलाया करती थीं। वह पहले दूध को ठंडा करती थीं और फिर घंटी बजाकर उन नन्हें-नन्हें सापों को दूध पीने के लिए बुलाती थीं।

एक दिन छोटी बहू ने माँ से कहा कि वो उन छोटे सांपों को दूध पिला देगी। उसने एक पात्र में दूध डाला और जल्दबाज़ी में दूध के ठंडा होने से पहले ही घंटी बजा दी, घंटी की आवाज़ सुनते ही छोटे सांप दूध पीने आ गए और गरम दूध पीने से उनके फन जल गए। इस पर वह क्रोधित हो गए और बोले हम इसे डसेंगे, यह सुनकर छोटी बहू ने उनसे माफी मांगी और सर्पदेव की माँ ने उन्हें ऐसा करने से मना कर दिया।

इसके पश्चात् जब छोटी बहू का वहां रहने का समय पूरा हो गया तो सर्पदेव और उसकी माँ ने उसे बहुत सारा धन, दौलत, रत्न और आभूषण देकर विदा कर दिया।

जब इतना सारा धन लेकर वह अपने ससुराल पहुंची तो उसकी जेठानियों को जलन होने लगी। बड़ी बहू ने उससे कहा कि तुम्हारे भाई ने इतना कुछ दिया तो साथ में सोने का झाड़ू भी देता।

यह सुनकर सर्पदेव वहां मनुष्य के रूप में आए और अपनी बहन को सोने की झाड़ू भी दे दी। साथ में उसने अपनी बहन को मणि और हीरों से सुसज्जित एक बेहद खूबसूरत हार भी उपहार में दिया। वह हार इतना अनोखा और खूबसूरत था कि उसकी चर्चा पूरे गांव में होने लगी।

धीरे-धीरे यह बात राजा के महल में रानी तक पहुंच गई। रानी ने राजा से उस हार को मंगवाने के लिए कहा। राजा ने अपने सिपाही भेजकर वह हार मंगवा लिया। सेठ जी भी राजा के आदेश के समाने कुछ नहीं बोल पाए और इससे छोटी बहू को बहुत दुख हुआ। दुखी मन से उसने अपने भाई सर्पदेव को याद किया और उन्होंने वहां आकर यह आश्वासन दिया कि राजा स्वयं उसे वह हार लौटाएंगे।

वहीं दूसरी ओर, जैसे ही रानी ने वह हार पहना, वह सांप में बदल गया। रानी ने डरकर उसे उताकर फेंक दिया। यह देखकर राजा ने छोटी बहू और सेठ जी को दरबार में बुलाया और पूछा कि तुमने इस हार पर क्या काला जादू किया है। छोटी बहू बोली, “हे राजन, यह एक विशेष प्रकार का हार है और यह मुझे मेरे भाई सर्पदेव ने दिया है।”

इतनी देर में सर्पदेव वहां खुद प्रकट हुए और बोले कि मैंने इसे अपनी बहन माना है और यह हार मैंने इसे उपहार में दिया है। यह देखकर सभी लोगों ने नाग देवता को प्रणाम किया। ऐसा माना जाता है कि उस दिन पंचमी तिथी थी, इसलिए तब से नाग पंचमी का त्योहार मनाया जाता है और नाग देवता को भाई के रूप में पूजा जाता है।

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